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देश के अहमदिया मुसलमानों (Ahmaddiya Muslim) को लेकर वक्फ बोर्ड ने एक प्रस्ताव पारित किया. इस प्रस्ताव में अहमदिया मुसलमानों को काफिर बताया गया है. इस प्रस्ताव के बाद केंद्र सरकार के अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय (Ministry Of Minority Affairs) ने कड़ी आपत्ति दर्ज कराते हुए आंध्र प्रदेश सरकार को पत्र लिखा है और इस मामले हस्तक्षेप करने की मांग की है. ऐसे में आइए जानते हैं कि पूरा मामला क्या है? और अहमदिया मुसलमान कौन होते हैं? आखिर वक्फ बोर्ड ने उन्हें 'काफिर' और 'मुस्लमान नहीं' हैं क्यों कहा?
दरअसल, वक्फ बोर्ड ने इस साल फरवरी, 2023 में एक प्रस्ताव पारित किया, जिसमें कहा गया कि "जमीयत उलेमा, आंध्र प्रदेश के 26 मई, 2009 के फतवे के परिणामस्वरूप, 'कादियानी समुदाय' (अहमदिया) को 'काफिर' घोषित किया जाता है. इन्हें मुस्लिम नहीं माना जाएगा."
वक्फ बोर्ड के इसी प्रस्ताव पर केंद्र सरकार ने आपत्ति जताते हुए आंध्र प्रदेश सरकार से हस्तक्षेप करने की मांग की है. मंत्रालय ने कहा कि उच्च न्यायालय के आदेशों के बावजूद, आंध्र प्रदेश वक्फ बोर्ड ने फिर ऐसा प्रस्ताव पारित किया है.
आंध्र प्रदेश सरकार को अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालयल ने एक पत्र में लिखा कि
केंद्र सरकार की तरफ से ये पत्र आंध्र प्रदेश के मुख्य सचिव केएस जवाहर रेड्डी को भेजा गया था और कहा गया कि वे मामले में हस्तक्षेप करें.
मंत्रालय द्वारा राज्य सरकार को सौंपे गए पत्र में कहा गया है कि, वक्फ अधिनियम, 1995 मुख्य रूप से भारत में वक्फ संपत्तियों के प्रशासन और प्रबंधन के लिए एक कानून है और “राज्य वक्फ बोर्डों को किसी को गैर-मुस्लिम घोषित करने के लिए कोई शक्ति नहीं देता है.”
मंत्रालय ने कहा है कि...
अहमदिया मुस्लिम जमात इंडिया ने केंद्र को दिए अपने ज्ञापन में कहा कि यह प्रस्ताव "हमारे अधिकारों का स्पष्ट उल्लंघन है और वक्फ बोर्डों की ऐसी गतिविधियां भेदभावपूर्ण और वक्फ अधिनियम और भारतीय कानून का गंभीर उल्लंघन हैं और हमारे खिलाफ एक तरह से नफरती अभियान है."
बता दें, ये फतवे तब जारी हुए थे जब तेलंगाना नहीं बना था.
साल 2012 में, आंध्र प्रदेश राज्य वक्फ बोर्ड ने एक प्रस्ताव पारित कर पूरे अहमदिया समुदाय को गैर-मुस्लिम घोषित कर दिया था. जब इस प्रस्ताव को आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय में चुनौती दी गई तो अदालत ने इस प्रस्ताव को अंतरिम रूप से निलंबित करने का आदेश जारी किया था.
दरअसल, अहमदिया, सुन्नी मुसलमानों का एक उप-संप्रदाय है, जो 19वीं शताब्दी में पंजाब में एक इस्लामी आंदोलन के बाद उभरा था. इसे अक्सर 'कादियानिस' (एक अपशब्द) कहा जाता है. ये विशेष रूप से पाकिस्तान में कहा जाता है, जहां उन्हें गैर-मुस्लिम घोषित किया गया है.
अहमदिया मुस्लिम समुदाय मिर्जा गुलाम अहमद के विचारों को मानता है. मिर्जा गुलाम अहमद ने 1889 में इस्लाम में एक पुनरुत्थान आंदोलन के बाद अहमदिया समुदाय की स्थापना की थी. मिर्जा गुलाम अहमद का जन्म ब्रिटिश भारत के पंजाब प्रांत में 13 फरवरी 1835 को हुआ था. अहमदिया समुदाय में सबसे ऊंचा स्थान खलीफा का है और मिर्जा गुलाम अहमद ही अपने समुदाय के पहले खलीफा थे.
इन्हीं विचारों की वजह से पाकिस्तान आधिकारिक रूप से अहमदिया को मुसलमान नहीं है मानते. एक नियम के तहत ये निर्धारित किया गया है, अहमदिया पाकिस्तान में अपने धर्म का प्रचार भी नहीं कर सकते है और ना ही खुद को मुस्लिम बुला सकते हैं. अगर वे ऐसा करते हैं तो उनके लिए सजा का भी प्रावधान है.
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