advertisement
9 अगस्त 2017, रात के एक बजे, जगह गुजरात विधानसभा. ऐलान होता है कि कांग्रेस के चाणक्य अहमद पटेल ने 0.48 वोट से राज्यसभा सीट जीत ली है. ये शायद भारत के इतिहास में पहली बार हुआ होगा जब राज्यसभा चुनाव का रिजल्ट इतनी देर रात आया, वो भी जीत का मार्जिन आधा वोट हो. शायद ऐसी ही ना को हां में बदलने वाले का नाम अहमद पटेल था.
कांग्रेस के सीनियर लीडर और सोनिया गांधी के राजनीतिक सलाहकार अहमद पटेल का निधन हो गया है. अभी हाल ही में उन्हें कोरोना हुआ था जिसके बाद उनकी तबीयत बिगड़ती चली गई.
3 बार लोकसभा और 4 बार राज्यसभा से सांसद अहमद पटेल को कांग्रेस पार्टी की ढाल माना जाता था, जो बुरे से लेकर अच्छे दौर में पार्टी को ताकतवर बनाने की कोशिश में लगे रहते. लेकिन एक सवाल बार-बार आता है कि अहमद पटेल को कांग्रेस का चाणक्य क्यों कहते थे? इस सवाल को समझने के लिए ही साल 2017 की बात से आर्टिकल शुरू किया गया था.
दरअसल, 2017 में गुजरात की 3 सीटों के लिए राज्यसभा चुनाव हुए, जिसमें बीजेपी की तरफ से अमित शाह, समृति ईरानी और कांग्रेस से बीजेपी में आए बलवंत राजपूत मैदान में थे, वहीं कांग्रेस की तरफ से अहमद पटेल चुनाव लड़ रहे थे.
इन तीन सीटों में से दो पर बीजेपी की जीत तय थी, लेकिन तीसरी सीट के लिए पेंच फंसा था. तीसरी सीट के लिए कांग्रेस नेता अहमद पटेल और बलवंत पटेल आमने-सामने थे. जीत के लिए भी 45 विधायकों के वोटों की जरूरत थी. लेकिन कांग्रेस की परेशानी ये थी उसके कई विधायकों ने पार्टी से बगावत कर पहले ही इस्तीफा दे दिया था. साथ ही कई विधयकों के चुनाव में क्रॉस वोटिंग की उम्मीद लगाई जा रही थी. हुआ भी कुछ ऐसा ही.
कांग्रेस के दो बागी विधायकों ने बीजेपी के सपोर्ट में वोट डाला लेकिन वोट देने के बाद उन्होंने कथित तौर पर बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह को इशारों से जीत का साइन दिखा दिया. जबकि राज्यसभा चुनाव में मत्रपत्र अधिकृत एजेंट को दिखाया जाता है. कांग्रेस ने विधायक के इस इशारे की शिकायत चुनाव आयोग को की. कांग्रेस से लेकर बीजेपी के दिग्गज नेताओं की भीड़ चुनाव आयोग के दफ्तर पहुंच गई. कांग्रेस ने दोनों विधायक के वोट को रद्द करने की मांग उठाई. और आखिर में रात करीब 11:30 बजे चुनाव आयोग ने कांग्रेस के दोनो बागी विधायकों के वोट रद्द करते हुए वोटों की गिनती शुरू करने के आदेश दिए.
अपनी जीत के बाद अहमद पटेल ने कहा था, "यह सिर्फ मेरी जीत नहीं है. यह धन शक्ति, बल शक्ति और राज्य मशीनरी के दुरुपयोग की हार है."
यही नहीं जो कांग्रेस पिछले 15 सालों में गुजरात में बीजेपी के सामने ढेर हो चुकी थी उसे भी फिर से जीवनदान देने और 2017 के विधानसभा चुनाव में पार्टी के बेहतर परफॉर्मेंस के लिए भी अहमद पटेल का नाम लिया जाता है.
26 साल की उम्र में सासंद बनने वाले अहमद पटेल कांग्रेस के सबसे बुरे दौर में भी चैंपियन बनकर निकलने वाले नेताओं में से रहे हैं. इसका उदाहरण 1977 में भी दिखा था. जब इमरजेंसी के बाद 1977 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को करारी हार मिली थी तब उस वक्त अहमद पटेल उन चंद लोगों में एक थे, जो कांग्रेस की तरफ से संसद पहुंचे थे.
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)