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समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव और बीएसपी अध्यक्ष मायावती नागरिकता कानून पर बहस के लिए तैयार हैं. दरअसल, 21 जनवरी को अमित शाह ने लखनऊ में विपक्ष के सभी नेताओं को नागरिकता कानून पर बहस की चुनौती दी थी. अब 22 जनवरी को यूपी के दो बड़े नेताओं ने ये चुनौती स्वीकार कर ली है और दोनों ने ही कहा है कि वो हर मंच पर बहस के लिए तैयार हैं.
अखिलेश यादव ने अमित शाह के कहे शब्द 'डंके की चोट' पर तंज कसते हुए कहा कि ये राजनेताओं की भाषा नहीं हो सकती. बुधवार को जनेश्वर मिश्र की पुण्यतिथि पर जनेश्वर मिश्र पार्क में आयोजित कार्यक्रम में अखिलेश ने कहा कि बहुमत के कारण बीजेपी आम लोगों की आवाज नहीं दबा सकती. उन्होंने कहा कि बीजेपी जब चाहे तब, सीएए और विकास के मुद्दे पर उनसे बहस करने को वह तैयार हैं. वह उन्हें सिर्फ जगह और मंच के बारे में बता दे.
वहीं बीएसपी की अध्यक्ष मायावती ने बुधवार को CAA और NRC के मुद्दे पर बहस करने की सत्तापक्ष की चुनौती को मंजूर करते हुए कहा है कि उनकी पार्टी सीएए और एनआरसी के मुद्दे पर किसी भी मंच पर बहस करने को तैयार है. मायावती ने ट्वीट कर कहा,
अखिलेश बोले,
पूर्व मुख्यमंत्री ने कहा, "डंके की चोट पर.. यह राजनेताओं की भाषा नहीं हो सकती. कितनी अफसोस की बात है कि मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम व श्रीकृष्ण की धरती पर, हमारे प्रदेश में आज राजनेता ठोक दिया जाएगा, जबान खींच ली जाएगी.. जैसी भाषा का इस्तेमाल कर रहे हैं."
इसी के साथ अखिलेश ने जातीय जनगणना की मांग करते हुए कहा कि जातीय जनगणना से बीजेपी डर क्यों रही है? अगर जातीय जनगणना हो जाए तो हिंदू-मुस्लिम का झगड़ा ही खत्म हो जाएगा. उन्होंने कहा, "तीन साल से जो बाबा मुख्यमंत्री बने बैठे हैं, भी कुछ नहीं कर पाए. बाबा किसानों को जानवरों से नहीं बचा पाए. अब तो किसानों के बाद नौजवान आत्महत्या कर रहे हैं. सबसे ज्यादा किसानों की जान महोबा में गई."
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