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‘तुम चले गए मुकुल द्विवेदी...तुम्हारी याद नहीं जाएगी’

मथुरा कांड में शहीद एसपी सिटी मुकुल द्विवेदी को हिंदी ब्लॉगर आदित्य चौधरी का खुला पत्र.

आदित्य चौधरी
भारत
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अतिक्रमणकारियों की गोली का  शिकार बने एसपी सिटी मुकुल द्विवेदी अपने परिवार के साथ (फाइल फोटोः द क्विंट)
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अतिक्रमणकारियों की गोली का शिकार बने एसपी सिटी मुकुल द्विवेदी अपने परिवार के साथ (फाइल फोटोः द क्विंट)
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मैं जानता हूं कि तुम इस खत को अब कभी नहीं पढ़ पाओगे लेकिन न जाने क्यों फिर भी लग रहा है ये खत तुमको लिखना ज़रूर चाहिए. तुम सोच रहे होगे कि मेरी और तुम्हारी तो कभी मुलाकात भी नहीं हुई फिर ये आदित्य चौधरी कौन और क्यों चिट्ठी लिखी?…

बात ये है कि आज की तारीख में तो मथुरा का कोई परिवार ऐसा नहीं है कि जिसके तुम अपने नहीं हो. सभी तुमको अपने सगे-संबंधी की ही तरह जानते हैं. यदि मौत को पहले से यह पता चल जाता कि तुम्हारे चाहने वाले इतनी अधिक संख्या में हैं और पूरा मथुरा ही तुम्हारा कुनबा है तो शायद मौत भी रहम करके तुमको हमसे छीनकर न ले जाती. मौत भी तुमको मारकर शर्मिंदा हुई होगी.

लेकिन तुम नहीं जानते कि तुम्हारे प्रियजनों के साथ-साथ मथुरा की जनता भी तुम्हें असमय खोने के दुख को आंसू बहा-बहा कर सहन करने की कोशिश कर रही है. इस अनाचारी युद्ध में तुमको अभिमन्यु की तरह घेरकर मारा जाना उन दरिंदों की मानसिकता को जाहिर करता है.

मुकुल! ऐसा शायद ही कभी हुआ हो कि पुलिस वालों के मरने पर जनता ने आंसू बहाए हों. लोग नेताओं, सेना के सिपाहियों, खिलाड़ियों और फिल्मी एक्टरों के मरने पर दुखी होते हैं, आंसू बहाते हैं. इस बार तुम्हारे और तुम्हारी टीम के कारण यह सौभाग्य पुलिस को भी प्राप्त हुआ है.

हमारे देश में किसी भी सेना या बल के जवान की जान की कीमत कितनी कम है इसका अंदाज़ा तुमको बखूबी होगा. हमारे जवान, सन् 62 की चीन की लड़ाई में बिना रसद और हथियारों के लड़ते रहे, मिग-21 जैसे कबाड़ा विमानों में एयरफोर्स के पायलट बेमौत मरते रहे, पड़ोसी देश के दरिंदे हमारे सिपाहियों के सर काटकर ले जाते रहे, कश्मीर के साथ न्याय करने के बहाने भयानक अन्याय को सहते रहे, घटिया स्तर के नेताओं की जान बचाने के लिए अपनी जानें कुर्बान करते रहे, इन जवानों की शहादत इस बात का सबसे बड़ा प्रमाण था कि हमारी सरकारें देश के नौनिहालों को लेकर किस कदर लापरवाह है.

तुम तो जानते ही हो मुकुल, कि पुलिस के अच्छे अधिकारियों की स्थिति बहुत अजीब होती है. कभी जनता की दोस्ती और सहानुभूति नहीं मिल पाती तो कभी नेताओं का विश्वास नहीं जीत पाते. पुलिस और जनता का रिश्ता भी बहुत अजीब होता है. पुलिस जनता को अभय प्रदान करने के लिए होती है लेकिन जनता के भयभीत रहने का एक कारण पुलिस भी होती है. पुलिस का व्यवहार जनता के प्रति सामान्यत: रूखा ही होता है. इसलिए जनता में पुलिस को लेकर कभी हमदर्दी की भावना नहीं रहती. कभी किसी गांव में पुलिस की पिटाई या खदेड़ने की खबर अखबार में आती है तो लोग बड़े मजे से उसे पढ़कर सुनाते हैं. अब तो जैसे तुमने नजरिया ही बदल दिया.. मथुरा के लोगों में चर्चा है तुम्हारी शहादत की और तुम्हारी उस चुनौती की, जो तुमने कुछ समय पहले दी थी, जिसमें तुमने कहा था कि “मथुरा में या तो ये लोग (अवैध कब्जाधारी) रहेंगे या मुकुल द्विवेदी रहेगा” तुमने जो कहा वो कर भी दिखाया…लेकिन ये तो तय नहीं था कि तुम भी हमें छोड़कर चले जाओगे?

तुम्हारे साथ अनेक पुलिसकर्मी घायल हुए. जिनमें से करीब 20-25 तो नयति अस्पताल में ही भर्ती हुए. इतने ही लगभग जनता के लोग थे जो घायल थे. वैसे भी एक साथ इतने घायलों को संभालना नयति जैसे अस्पताल के ही बस की बात है. हृदयविदारक दृश्य था वह. कठोर से कठोर हृदय का व्यक्ति भी उस दृश्य को देख कांप जाता. मेरे एक मित्र ने मुझे जब पूरा हाल सुनाया तो में बेहद बेचैन हो गया. तुमको तो डॉक्टर नहीं बचा पाए लेकिन बाकी सुरक्षित हैं और उनका अभी भी इलाज ही चल रहा है.

…खैर मुझे बताया गया है कि मथुरा में जो अच्छे पुलिस कर्मी हैं उनमें से एक संतोष भी था. ये बात मुझसे ज्यादा तो तुम्हें मालूम होगी. जहां तक मेरे व्यक्तिगत संबंधों की बात है तो मेरी मुलाकात न तो कभी संतोष यादव से हुई और न ही तुमसे. मैं अधिकारियों से बहुत ही कम मिलता-जुलता हूं। हां इतना मुझे पता है कि अगर मेरी मुलाकात तुमसे हुई होती तो हम दोस्त बन गए होते.

यह घटना क्यों घटी और किसकी क्या गलती रही इसकी समीक्षा और जांच तो सालों साल चलती रहेगी. सरकारें बदलती रहती हैं सब कुछ वैसा ही चलता रहता है. थोड़ा बहुत बदलाव दिखाई देता है बस.

बदलाव होगा बस मौसम में, कुछ दिन बाद बरसात आएगी। जवाहर बाग में पड़े बहुत सारे निशान खत्म हो जाएंगे. जले पेड़ों पर फिर कोंपलें फूट पड़ेंगी. बहुत सारे बदलाव होंगे...

लेकिन एक बात है जो नहीं बदलेगी - तुम्हारे चले जाने के बाद से, जवाहर बाग के पास की सड़क से गुजरने वाला हर शख्स तुमको याद करता हुआ गुजरेगा और साथ ही संतोष यादव और उन सभी को जिन्होंने इस मुकाबले में तुम्हारे साथ हिस्सा लिया…ये यादें कभी कम नहीं होंगी…कभी कम नहीं होंगी.

(लेखक आदित्य चौधरी एक हिंदी ब्लॉगर हैं और भारतकोष.कॉम के संस्थापक हैं)

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Published: 04 Jun 2016,09:56 PM IST

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