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महाराष्ट्र सरकार के मंत्रियों पर लगातार घोटाले के आरोप लग रहे हैं. ऐसे में सवाल ये है कि ये सब होता देख सामाजिक कार्यकर्ता अन्ना हजारे चुप क्यों हैं?
1995 में शिवसेना-बीजेपी ने एलायंस के जरिए महारष्ट्र में पहली बार सरकार बनाई थी. उस सरकार के वक्त जब शिवसेना और बीजेपी के मंत्रियों पर घोटाले के आरोप लगे थे, तब अन्ना हजारे ने सरकार के खिलाफ बड़ा आंदोलन खड़ा किया था. उस वक्त अन्ना हजारे भ्रष्ट मंत्रियों के खिलाफ अनशन पर बैठ गए . जिसने सरकार की नींद उड़ा दी थी.
हर मोर्चे पर सरकार को घेरा गया था. ये अन्ना हजारे के आंदोलन और सच्चाई को सामने लाने की ललक का ही असर था कि शिवसेना प्रमुख बाला साहब ठाकरे ने भी आंदोलन के आगे घुटने टेक दिए थे.
शिवसेना प्रमुख बाला साहब ठाकरे और उस वक्त महाराष्ट्र बीजेपी के ताकतवर नेता प्रमोद महाजन, दोनो को कुछ कड़े फैसले लेने पर मजबूर होना पड़ा . जिसके चलते अपने मंत्री पद का दुरुपयोग करने वाले कई नेताओं को घर वापस जाना पड़ा था.
1995 में महाराष्ट्र के तीन ‘भ्रष्ट‘ को मंत्री पद से हटा दिया गया था . जिसमें - शशिकांत सुतार, महादेवराव शिवंकर और बबनराव घोलप शामिल थे . हजारे का दावा था की घोलप ने ज्ञात स्त्रोतों से ज्यादा अनुपात में रकम जुटाई थी. हांलांकि अन्ना कोर्ट में अपना दावा साबित नही कर सके थे . जिसके बाद उन्हें कोर्ट ने तीन महीने की सजा सुनाई थी.
तत्कालीन मुख्यमंत्री मनोहर जोशी को भी पुणे में इमारत निर्माण के मामले में अपने दामाद को फायदा पहुंचाने के आरोप में बाला साहब के घर ‘मातोश्री’ से आई एक चिट्ठी के बाद अपना मुख्यमंत्री पद छोड़ना पड़ा था.
आज बाला साहब, प्रमोद महाजन और गोपीनाथ मुंडे नहीं हैं. सेना - बीजेपी की दूसरी जनरेशन काम कर रही है .लेकिन दूसरी जनरेशन पर भी भ्रष्टाचार के आरोपों की कमी नहीं है.
बीजेपी के मंत्री - प्रकाश मेहता हों या शिवसेना के मंत्री सुभाष देसाई. दोनों इन दिनो पद का दुरपयोग कर घोटाले के आरोप में घिरे हैं. लेकिन आज इनके साथ पार्टी खड़ी हुई है.
जमाना बदल गया है, जब विपक्ष में थे, तब कांग्रेस-एनसीपी के मंत्रियों के इस्तीफे की मांग करते थे . आज अपने मंत्रियों को बचाने में लगे है . वो भी तब, जब मोदी कह रहे है कि ना खाऊंगा, ना खाने दूंगा?
लेकिन आखिर में एक सवाल मेरे मन में फिर उठता है- आखिर अन्ना हजारे क्यों चुप हैं.
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