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20 दिसंबर 2019 को मेरठ में CAA/NRC के खिलाफ प्रदर्शन के दौरान भड़की हिंसा में 6 लोगों की मौत हो गई थी. मरने वाले सारे लोग अल्पसंख्यक समुदाय से थे. इस घटना को 2 साल से ज्यादा का वक्त हो गया है. लेकिन पीड़ित परिवारों का कहना है कि अभी तक इंसाफ तो दूर उनकी तहरीर पर FIR तक दर्ज नहीं हुई है.
वहीं पीड़ित परिवार वालों का आरोप है कि उनके घर वालों की मौत पुलिस की फायरिंग में हुई थी, मृतक आसिफ के पिता ईद उल हसन का कहना है कि इंसाफ तो यहां मिलना चाहिए कि जैसे हम अपना समय काट रहे हैं. जो हमारे जी पर बीत रही है, उनको भी पता चलना चाहिए. उनका कहना है कि गोली पुलिस वालों ने ही मारी थी.
हम वहां पर थे नहीं, लेकिन जो उसको उठा कर ले गया वह भी कहा कि पुलिस वाले ने ही गोली मारी थी. एक 9 नंबर गली का लड़का मारा था. उसके सिर में गोली लगी थी. एक लड़के ने उसके हाथ पकड़ कर वीडियो बनाई थी. उनका कहना है कि पुलिस वाले ने कहा कि जो लोग मरे हैं उनका नोटिस आयेगा, लेकिन हमारे पास नोटिस नहीं आया लेकिन औरों के वालिदों के पास आया है.
पोस्टमार्टम रिपोर्ट का हवाला देते हुए स्थानीय पुलिस ने घटना की जांच के दौरान पुलिस फायरिंग में मौत को सिरे से नकार दिया था. वहीं मृतक के घर वालों का कहना है कि हिंसा के दौरान पुलिस ने निशाना लगाकर लोगों को मारा.
इंसाफ के लिए दर-दर भटकते परिवार जन अब कोर्ट की चौखट पर पहुंचे हैं. मोहम्मद सलाउद्दीन मृतक अलीम के भाई का कहना है कि मानवाधिकार अयोग, उच्च न्यायालय, डीजीपी और जिला पुलिस अधीक्षक को उस दिन की वारदात को एप्लीकेशन के साथ सीडी सबूत के तौर पर भेज दी है. हमारे भाई को गोली पुलिस वालों ने ही मारी है. इनके खिलाफ एफआईआर हो और मुकदमा लिखा जाए.
अभी तक कोर्ट के अंदर कोई सुनवाई नहीं हुई है. मजबूरी में 156 तीन में कोर्ट के अंदर जाना पड़ा, लकिन 156 में भी दो साल हो गए, लेकिन वहां भी सिर्फ तारीख पर तारीख मिल रही है, इंसाफ का कई उम्मीद नहीं दिख रही.
हिंसा में मृत लोगों के परिजनों के वकील का कहना है कि, पुलिस खुद कातिल है, उन लोगों की तलाश कहां कर पाएगी. उनके वकील का कहना है कि 6 लोग मारे गए हैं, लेकिन अब तक एफआईआर पुलिस ने दर्ज नहीं की है. जबकि कानून यह है कि अगर कोई रिपोर्ट दर्ज नहीं करने आता है, तो पुलिस को खुद अपनी तरफ से एफआईआर करनी होती है. लेकिन पुलिस खुद इसमें शामिल है.
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