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40 वर्षीय पादरी नंदू नथानिएल सिंह (Pastor Nandu Nathaniel Singh) को अक्सर आजमगढ़ के लोगों से उनके घरों पर प्रेयर सर्विस करने के फोन आते थे. इसकी वजह, परिवार में मौत, बीमारी, माली हालत में उतार-चढ़ाव, या कोई दूसरी समस्या भी हो सकती है.
पादरी नथानिएल उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ में पिछले 15 वर्षों से रह रहे हैं, उनके बारे में सभी जानते हैं. वह लोगों के घर जाते हैं और गुजारिश के हिसाब से प्रेयर सर्विस करते हैं.
साल 2021 में उन्होंने बहादुर मौर्य के अनुरोध पर हर रविवार उनके घर पर ऐसा करना शुरू किया था. मौर्य पादरी नथानिएल से मुलाकात से कम से कम एक दशक पहले ईसाई धर्म अपना चुके थे.
मौर्य ने बताया, “हमें बहुत दिक्कतें हो रही थीं. हमारे बच्चे अक्सर बीमार रहते थे. इसलिए, हमने सोचा कि ईश्वर का आशीर्वाद हमेशा बने रहने के लिए हमें अपने घर पर हर हफ्ते प्रेयर करने की जरूरत है.”
पादरी नथानिएल ने मौर्य के घर पर प्रेयर करना शुरू किया तो आस-पास के इलाकों के दूसरे ईसाई भी उसमें शामिल होने लगे.
लेकिन उस साल साप्ताहिक प्रेयर सेशन के कुछ महीने बीतने के बाद आजमगढ़ पुलिस ने पादरी नथानिएल पर जबरन धर्म परिवर्तन का आरोप लगाते हुए 3 अक्टूबर को अचानक गिरफ्तार कर लिया.
पादरी नथानिएल बताते हैं, “मुझे समझ नहीं आया कि क्या हो रहा है. मेरी प्रेयर सर्विस में शामिल सभी लोग पहले से ईसाई थे, तो मैं किसका जबरदस्ती धर्मांतरण करा रहा था? मेरे खिलाफ शिकायत किसने दी? मैं अचंभित था.” उनके अगले पांच महीने जेल में बीते.
बाद में पता चला कि पादरी के खिलाफ शिकायत प्रेयर सर्विस में मौजूद लोगों में से किसी ने नहीं, बल्कि बहादुर मौर्य के एक पड़ोसी ने की थी. पड़ोसी सुधीर गुप्ता मौर्य के घर से बमुश्किल 100 फुट की दूरी पर रहते हैं और स्थानीय बीजेपी नेता हैं. नथानिएल को गिरफ्तार कराने वाली FIR में गुप्ता के शिकायतकर्ता होने में सिर्फ एक समस्या थी. कानून के मुताबिक वह शिकायतकर्ता नहीं हो सकते थे.
उत्तर प्रदेश अवैध धर्म परिवर्तन रोकथाम कानून (Uttar Pradesh Prohibition of Unlawful Conversion of Religion Act ) नवंबर 2020 में एक अध्यादेश के रूप में लाया गया था और फिर मार्च 2021 में अधिनियम के रूप में लागू किया गया. अधिनियम की धारा 4 में कहा गया है, “कोई भी प्रभावित व्यक्ति, उसके माता-पिता, भाई, बहन, या कोई अन्य व्यक्ति जो रक्त, विवाह या गोद लेने से संबंधित है, ऐसे धर्मांतरण की FIR दर्ज करा सकता है.”
इस तरह धारा साफ तौर पर कहती है कि जबरन या धोखाधड़ी के मामले में शिकायतकर्ता या तो वह हो सकता है जिसे धर्मांतरण के लिए मजबूर किया गया, या उनके रक्त संबंधी या परिवार के सदस्य.
इस मामले में सुधीर गुप्ता इनमें से किसी भी वर्ग में नहीं आते हैं. इसके अलावा गुप्ता एक बार भी उस प्रेयर सर्विस में शामिल नहीं हुए, जहां उनका आरोप है कि जबरन धर्मांतरण हो रहा था.
बीजेपी किसान मोर्चा के आजमगढ़ जिला अध्यक्ष गुप्ता ने अपने घर पर द क्विंट से बात करते हुए कहा कि पिछले कुछ महीनों से हर रविवार को मौर्य के घर पर लोगों की खासी भीड़ देखी जा रही थी.
सुधीर गुप्ता ने द क्विंट को बताया, “पहले मुझे लगा कि कोई पूजा-पाठ चल रही होगी. लेकिन फिर मैंने सोचा कि कौन सी पूजा हर रविवार को होती है. मुझे उत्सुकता हुई लेकिन चूंकि मैं पड़ोसी हूं, इसलिए अंदर नहीं जा सकता था, क्योंकि इससे बखेड़ा पैदा हो जाता. मैं बजरंग दल का भी सदस्य हूं, इसलिए मैंने एक साथी कार्यकर्ता को फोन किया और उसे अंदर जाने और पता लगाने को कहा कि क्या हो रहा है.”
बजरंग दल (Bajrang Dal) का कार्यकर्ता अंदर गया और प्रेयर की रिकॉर्डिंग शुरू कर दी. पादरी नथानिएल का कहना है कि उन्हें फौरन शक हो गया क्योंकि उस आदमी ने चेहरा ढका हुआ था, और उसने शॉर्ट्स पहने थे, जो कि आमतौर पर प्रेयर के दौरान मौजूद लोगों के पहनावे से अलग था. नथानिएल उस दिन की घटना को याद करते हुए बताते हैं, “जब मैंने उस आदमी से पूछा कि वह कौन है और रिकॉर्डिंग क्यों कर रहा है, तो वह फौरन भाग गया. कुछ मिनट बाद दरवाजे पर पुलिस थी.”
मौर्य कहते हैं कि तब तक उनके घर के बाहर “भारी भीड़” जुट गई थी, और वे सभी “सुधीर गुप्ता के निर्देश पर अमल कर रहे थे.”
द क्विंट ने सुधीर गुप्ता से पूछा कि क्या उन्होंने कभी अपनी आंखों से कथित जबरन धर्मांतरण देखा था, तो उनका जवाब ना में था. द क्विंट ने पूछा कि क्या पादरी नथानिएल ने खुद गुप्ता का कथित रूप से जबरन धर्मांतरण कराया था, तो उन्होंने ना में जवाब दिया. उन्होंने कहा, “किसी ने मेरा जबरन धर्मांतरण कराने की कोशिश नहीं की. सिर्फ इतना है कि यह पड़ोस में हो रहा था.”
मामले में दर्ज FIR में कहा गया है कि पादरी नथानिएल और उनकी पत्नी लोगों को ईसाई धर्म के लिए लुभाने की कोशिश कर रहे थे और “जब हमने इसका विरोध किया, तो नंदू नथानिएल, उनकी पत्नी और बहादुर मौर्य के बेटे ने हमें गाली और धमकी देना शुरू कर दिया.” FIR में कहीं यह नहीं कहा गया है कि सुधीर गुप्ता के धर्मांतरण की कोशिश की गई थी.
सुधीर गुप्ता पादरी नथानिएल की किसी भी प्रेयर सेशन में शामिल नहीं हुए थे, मगर आजमगढ़ निवासी श्याम सुंदर सोनकर नियमित रूप से मौजूद रहते थे. द क्विंट ने सोनकर से मुलाकात की, जिन्होंने दावा किया कि प्रेयर में “धर्मांतरण की कोई बात नहीं” हुई थी. सोनकर ने द क्विंट को बताया, “पादरी नथानिएल की प्रेयर में शामिल होने से बहुत पहले मैंने और मेरे परिवार ने ईसाई धर्म अपना लिया था. जो लोग भी शामिल थे, वह पहले से ही ईसाई थे. उन्होंने वहां किसी का धर्मांतरण नहीं कराया था.”
पादरी नथानिएल के वकील गिरीश चंद्र मौर्य के इलाहाबाद हाई कोर्ट में दलील देने के बाद कहा कि शिकायतकर्ता के पास FIR दर्ज करने का कोई अधिकार नहीं है, उन्हें फरवरी 2022 में जमानत मिली.
उन्होंने द क्विंट को बताया, “वह (शिकायतकर्ता) शिकायत दर्ज करने का अधिकार रखने वाली किसी भी वर्ग में नहीं आता है और जिनकी तरफ से वह आरोप लगा रहा है कि उनका जबरन धर्मांतरण किया गया, वे भी ऐसा कोई आरोप नहीं लगा रहे हैं.”
लेकिन नथानिएल को गिरफ्तार करने वाली आजमगढ़ पुलिस कानून के प्रावधानों से अनजान बनी हुई है. जिस कोतवाली में नथानिएल के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की गई है, उसके प्रभारी इंस्पेक्टर राज कुमार सिंह कहते हैं, “शिकायतकर्ता कोई भी हो सकता है.” उन्होंने अपनी बात पर जोर देते हुए कहा, “शिकायत कोई भी केस दर्ज करा सकता है, जरूरी नहीं कि प्रभावित ही हो.”
यह ध्यान देने वाली बात है कि सुधीर गुप्ता ऐसा नहीं मानते कि केवल जबरन धर्मांतरण पर कार्रवाई की जानी है, बल्कि उनकी नजर में सभी धर्म परिवर्तनों पर कार्रवाई होनी चाहिए. सुधीर गुप्ता कहते हैं, “धर्म परिवर्तन पूरी तरह से गलत है. इसमें जबरदस्ती की गई हो या नहीं. लोगों को उस धर्म से जुड़े रहना चाहिए जिसमें वे पैदा हुए हैं.”
वह एक चेतावनी भी जोड़ देते हैं, “जो हिंदू दूसरे धर्म में चले गए हैं, उनका वापस धर्म परिवर्तन किया जा सकता है.” वह स्वयंभु भगवान धीरेंद्र शास्त्री, जिन्हें बागेश्वर धाम सरकार के नाम से भी जाना जाता है, का उदाहरण पेश करते हैं, जिन्होंने फरवरी में कथित तौर पर 200 से अधिक ईसाइयों को हिंदू धर्म में “वापस” लाया था
उत्तर प्रदेश का कानून सिर्फ जबरन या धोखे से धर्मांतरण पर रोक लगाता है, भारतीय संविधान का अनुच्छेद 25 सभी नागरिकों को अपने धर्म को मानने, पालन करने और प्रचार करने की आजादी देता है.
नथानिएल का मामला उत्तर प्रदेश में जबरन धर्मांतरण विरोधी कानून के तहत दर्ज किए गए कई मामलों में से एक है, जिसमें शिकायतकर्ता कानून की धाराओं से मेल नहीं खाता है. कानून के लागू होने के दो साल बाद नवंबर 2022 तक 291 मामलों में कानून के तहत 507 आरोपियों को गिरफ्तार किया गया था.
पादरी नील दुरई को अगस्त 2021 में वाराणसी में एक प्रेयर सर्विस के बाद गिरफ्तार किया गया था, जिसमें आजमगढ़ और आसपास के जिलों के हिंदू जागरण मंच के सचिव गौरीश सिंह ने हंगामा किया था.
हंगामे के वीडियो में गौरीश को पादरी नील दुरई के बैग से बाइबिल निकालते और उनसे पूछते देखा जा सकता है कि वह क्यों इसे लेकर चल रहे हैं. FIR में भी धर्मग्रंथ की मौजूदगी का हवाला दिया गया है.
पादरी नील ने कहा, “सिर्फ धर्म ग्रंथ ले जाने को जबरन धर्मांतरण के सबूत के रूप में नहीं पेश किया जा सकता है.”
द क्विंट ने गौरीश सिंह से मुलाकात की जिन्होंने बताया कि किस तरह उन्होंने इस कार्यक्रम को रोका. “मुझे कहीं से जानकारी मिली थी कि वहां धर्म परिवर्तन हो रहा है. मैं पहुंचा तो पाया कि सच में वह आदमी धर्मांतरण करा रहा है. क्योंकि हमें वहां क्रॉस और धर्मांतरण संबंधी दूसरे साहित्य मिले.”
नथानिएल और सुधीर गुप्ता के मामले की तरह यहां भी FIR में यह नहीं कहा गया है कि शिकायतकर्ता (गौरीश सिंह) का जबरन धर्मांतरण कराया गया था.
यह पूछे जाने पर कि क्या खुद उनका भी जबरन धर्मांतरण कराया गया था, गौरीश सिंह का जवाब था नहीं. लेकिन उनका दावा है कि कुछ स्थानीय लोगों का जबरन धर्मांतरण कराया गया था. हालांकि, कथित स्थानीय लोगों में से किसी ने भी पादरी नील के खिलाफ कोई शिकायत नहीं दर्ज कराई. गौरीश सिंह कहते हैं, “हमारी पुलिस का इतना खौफ है कि आम आदमी कभी भी शिकायत दर्ज कराने पुलिस स्टेशन नहीं जाना चाहता है.”
दिलचस्प बात यह है कि गौरीश सिंह मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के कट्टर समर्थक हैं, जिनकी सरकार सख्त और तेजी से पुलिस कार्रवाई के दावे करती रहती है. यह पूछे जाने पर कि क्या उन्हें लगता है कि ऐसा नहीं है, गौरीश सिंह ने फौरन अपना बयान दुरुस्त किया. “मोदी जी और योगी जी के सत्ता में आने के बाद से बहुत सुधार हुआ है. हालांकि, कुछ चीजें अभी ठीक होना बाकी हैं.”
वाराणसी के फूलपुर थाने के पुलिस इंचार्ज, जहां यह FIR दर्ज की गई थी, ने द क्विंट से बात करते हुए कहा, “कोई भी शिकायत दर्ज करा सकता है. लेकिन हम जांच करते हैं कि शिकायत सबूतों पर आधारित है या नहीं.”
द क्विंट ने पाया कि यह नजरिया किसी एक शहर या जिले तक सीमित नहीं है, बल्कि कई जिलों में एक ही पैटर्न है. जौनपुर में अखिल भारतीय हिंदू गौरव महासभा नाम के एक संगठन के अध्यक्ष प्रमोद शर्मा की शिकायत पर दिनेश मौर्य को अपने घर पर प्रेयर सर्विस रखने करने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था.
प्रमोद शर्मा द क्विंट को बताते हैं, “उस दिन, मैंने अपने भाई को वहां भेजा, वह मुझे सारी जानकारी दे रहा था. उसे धर्म परिवर्तन करने के लिए कहा गया था.” शर्मा स्वीकार करते हैं कि उनका जबरन धर्मांतरण नहीं हुआ था. FIR में भी ऐसा नहीं लिखा है.
जौनपुर पुलिस अपनी बात पर कायम है कि, “कोई भी शिकायत दर्ज करा सकता है.”
जौनपुर के DSP कुलदीप गुप्ता कहते हैं, “जिसे भी लगता है कि कुछ गलत हो रहा है, वह शिकायत दर्ज करा सकता है.”
वकीलों का कहना है कि इस तरह की गिरफ्तारियां असल में गैरकानूनी हैं.
सुप्रीम कोर्ट की वकील वृंदा ग्रोवर द क्विंट से बात करते हुए कहती हैं, “उत्तर प्रदेश का कानून बताता है कि जबरन या धोखे के मामले में शिकायतकर्ता कौन हो सकता है. जब कानून तय करता है कि शिकायत कौन दर्ज कर सकता है, तो उस वर्ग के बाहर किसी के FIR या शिकायत दर्ज करने की गुंजाइश नहीं है.
वृंदा ग्रोवर कहती हैं, “इसलिए, अगर शिकायत के आधार पर गिरफ्तारी और पूछताछ की कानूनी प्रक्रिया शुरू होती है, जिसकी अनुमति उस कानून में नहीं दी गई है, तो पूरी प्रक्रिया अवैध और कानून के अधिकार के बिना है. एक शिकायतकर्ता के आधार पर गिरफ्तारी की पूरी कानूनी प्रक्रिया, जो उस कानून द्वारा मान्यता प्राप्त नहीं है, उसमें कानून के अधिकार का अभाव होगा और इसलिए गिरफ्तारी अवैध होगी.”
ऊपर बताए गए आरोपियों के वकीलों का कहना है कि वे इस आधार पर FIR को रद्द करने के लिए हाई कोर्ट में जाने पर विचार कर रहे हैं कि इन्हें कानून का पालन करते हुए नहीं दर्ज किया गया है.
बता दें कि उत्तर प्रदेश गैरकानूनी धर्म परिवर्तन रोकथाम कानून के उलट 2022 में बनाए गए हरियाणा गैरकानूनी धर्मांतरण रोकथाम कानून में एक अध्याय है, जिसमें कहा गया है कि ऐसे मामलों में प्रभावित शख्स, उनका परिवार या “सरकार की तरफ से तय अधिकारी” द्वारा शिकायत की जा सकती है.”
पुलिस की लापरवाही दूसरे तरीकों से भी सामने आती है. नवंबर 2022 में आजमगढ़ के गोबरहा गांव के हरकू राम नाम के शख्स के खिलाफ जबरन धर्मांतरण विरोधी कानून के तहत एक FIR दर्ज की गई थी. द क्विंट ने हरकू राम के परिवार का पता लगाया तो पता चला कि वह करीब दो दशक पहले मर चुका है.
द क्विंट द्वारा हासिल किए हरकू राम के डेथ सर्टिफिकेट से पता चलता है कि उनका निधन 2005 में नहीं बल्कि 2010 में हुआ था. लेकिन बात तो वही है. कोई शख्स अपनी मौत के 12 साल बाद अपराध कैसे कर सकता है?
चंद्रेश कुमार के दादा हरकू राम का कई साल पहले निधन हो गया था. उनको भी जबरन धर्मांतरण के एक मामले में आरोपी बनाया गया.
जब यह पता चला कि हरकू राम मर चुके हैं तो पुलिस ने FIR में चंद्रेश का नाम जोड़ दिया और हरकू राम के बदले उन्हें गिरफ्तार कर लिया.
लेकिन बाद में जमानत पर छूटे चंद्रेश का कहना है कि जब प्रेयर चल रही थी तब वह अपने घर पर मौजूद नहीं थे. “हमारे परिवार की महिलाएं ईसाई हैं और वे प्रेयर सर्विस कर रही थीं. मैं उस समय अपने घर पर मौजूद भी नहीं था. मैं आस्तिक ईसाई नहीं हूं; असल में मैं किसी ईश्वर को नहीं मानता. और उन्होंने मुझ पर जबरन दूसरों का धर्म परिवर्तन कराने का आरोप लगा दिया है.
इस मामले पर काम करने वाले वकील राजीव सिंह ने कहा कि पुलिस ने बिना किसी जांच पड़ताल के FIR दर्ज की.
वह कहते हैं, “मुखबिर/शिकायतकर्ता के दबाव में पुलिस ने हरकू राम के खिलाफ सिर्फ इसलिए FIR दर्ज कर ली क्योंकि वह घर के मालिक थे. उन्हें FIR दर्ज करने और आरोपी बनाने से पहले पूछताछ करनी चाहिए थी.”
कानून के प्रावधानों का पालन न करने के नतीजे में कुछ ‘सीरियल शिकायतकर्ताओं’ का भी जन्म हुआ है, जो अब खुद को ईसाई कार्यक्रमों का “पर्दाफाश” करने के लिए समर्पित बताते हैं.
जीतू सोनकर आजमगढ़ में एक फल विक्रेता हैं, लेकिन पिछले दो सालों से “साइड बिजनेस” के तौर पर ईसाई आयोजनों पर “छापा" डलवा रहे हैं.
जीतू सोनकर बताते हैं कि वो यह कैसे करते हैं, “मैं कुछ हफ्तों या महीनों तक वहां (किसी भी ईसाई कार्यक्रम में) जाता हूं, पागल होने का नाटक करता हूं. पूरी जानकारी मिल जाने के बाद मैं पुलिस को फोन करता हूं और उनके घर पर छापा डलवाता हूं.”
सोनकर आजमगढ़ में जबरन धर्मांतरण की दो FIR में शिकायतकर्ता हैं, और बताते हैं कि वह, “5-7 और मामलों पर छापा मारने की तैयारी में हैं.”
लेकिन जो बातें सोनकर को उनके मिशन के लिए प्रेरित करती हैं, उनमें से ज्यादातर तथ्यात्मक रूप से गलत हैं. वह कहते हैं, “मैं हिंदू आबादी में कमी से लड़ने के लिए ऐसा कर रहा हूं. सरकार हिंदू मंदिरों पर टैक्स लगाती है, लेकिन मुस्लिम और ईसाई पूजा स्थलों पर टैक्स नहीं लगाती.”
इस दावे का अतीत में कई बार फैक्ट-चेक किया जा चुका है कि भारत में सिर्फ मंदिर ही टैक्स चुकाते हैं और अन्य धार्मिक स्थल नहीं.
द क्विंट ने धर्मांतरण विरोधी कानून लागू किए पर प्रतिक्रिया के लिए उत्तर प्रदेश के डीजीपी से संपर्क किया, लेकिन अभी तक कोई जवाब नहीं आया है. प्रतिक्रिया मिलने पर रिपोर्ट को अपडेट किया जाएगा.
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Published: 11 Apr 2023,03:39 AM IST