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1965 के भारत-पाक युद्ध के दौरान दुश्मन के दांत खट्टे करने वाले मार्शल ऑफ द एयरफोर्स अर्जन सिंह का निधन हो गया है. 98 साल के अर्जन सिंह दिल्ली के आर्मी रिसर्च एंड रेफरल हॉस्पिटल में भर्ती थे. अर्जन सिंह को हार्ट अटैक के बाद अस्पताल में भर्ती कराया गया था.
उन्हें शनिवार सुबह ही अस्पताल में एडमिट कराया गया था. वो भारतीय वायु सेना के एकमात्र ऑफिसर हैं जिन्हें 5-स्टार रैंक से नवाजा गया था.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अर्जन सिंह से मिलने अस्पताल गए थे और उनकी तबियत के बारे में पता किया था. उनके निधन की खबर के बाद पीएम ने दुख जताया.
प्रधानमंत्री ने उनके साथ अपनी कुछ तस्वीरों को साझा करते हुए ट्वीट किया, 'भारत IAF के मार्शल अर्जन सिंह के निधन पर दुखी है. हम देश के प्रति उनकी उत्कृष्ट सेवा को याद करेंगे'
आंखों में चमक, शख्सियत में वजन, चेहरे पर तेज और जेहन में कौंधती उन तमाम युद्धों की यादें जिनमें अपने शौर्य से दुश्मन को सबक सिखाया. जब ये सब मिल जाते हैं तब अर्जन सिंह जैसे ऑफिसर का चेहरा सामने आता है. वो जब किसी सार्वजनिक समारोह में नजर आते थे, जब किसी से मिलते थे तो उनकी गर्मजोशी उनकी उम्र को बहुत...बहुत पीछे छोड़ आती थी.
1965 के भारत-पाक युद्ध के किस्से जब-जब दोहराए जाते हैं तो अर्जन सिंह का नाम सबसे पहली कतार में आता है.
पाकिस्तान ने भारत पर हमला कर दिया था. हमले का कोडनेम था-ऑपरेशन ग्रैंड स्लैम. वो एक सितंबर 1965 की शाम थी. अंधेरा होने में बस कुछ वक्त बचा था. तत्कालीन रक्षा मंत्री वाईबी चव्हाण ने उस समय चीफ ऑफ एयर स्टाफ रहे अर्जन सिंह से पूछा कि कितनी देर में वायुसेना के फाइटर जेट उड़ान भर सकते हैं. जवाब मिला- सिर्फ एक घंटे में. उस समय तक पाकिस्तान ने जम्मू-कश्मीर के चंबा और अखनूर सेक्टर में तबाही मचा रखी थी. वादे के मुताबिक अर्जन सिंह के ऑफिसरो ने घंटे भर के भीतर पाकिस्तान को सबक सिखाने के लिए उड़ान भर दी. एक इंटरव्यू में अर्जन सिंह ने कहा था कि उन्होंने रक्षामंत्री चव्हाण से सिर्फ इतना कहा, "अंधेरा हो रहा है, लेकिन हम अपना सर्वश्रेष्ठ देंगे."
अर्जन सिंह का जन्म 5 अप्रैल 1919 को हुआ. तब का हिंदुस्तान. आज का पाकिस्तान. शहर, पाकिस्तान का लायलपुर. साहस उनकी रगों में खून बनकर दौड़ता था. अर्जन सिंह की विरासत सूरमाओं की विरासत है. परदादा ब्रिटिश सेना का हिस्सा रहे. दादा भी गाइड्स कैवेलरी में रहे. पिता रिसालदार रहे. ये कई पीढ़ियों की जमापूंजी थी जिसने अर्जन सिंह को बचपन से ही सेना में करियर बनाने का जोश और हौसला दिया.
एक इंटरव्यू में अर्जन सिंह बताते हैं कि किस तरह लायलपुर के आसमान पर जब भी कोई विमान उड़ान भरता, वो बड़ी चाह के साथ उसे देखते. उसे हासिल करने की इच्छा उनमें हिलोरे मारने लगती. उस वक्त लाहौर से कराची के बीच रेगुलर एयर सर्विस हुआ करती थी. शुरूआती पढ़ाई उन्होंने लायलपुर में ही की. मैट्रिक के लिए मॉन्टगोमरी गए. बचपन में उन्हें एयरफोर्स के अलावा किसी चीज में दिलचस्पी रही तो वो थी तैराकी.
आजाद भारत के पहले दिन अर्जन सिंह को गौरव मिला लाल किले के ऊपर से 100 फाइटर जेट के साथ फ्लाइ-पास्ट का. अर्जन सिंह ने बतौर ग्रुप कैप्टन अंबाला बेस की कमान संभाली. बाद में वो वेस्टर्न एयर कमांड के प्रमुख रहे. चीन के साथ 1962 में युद्ध के बाद अगले ही साल अर्जन सिंह को वाइस एयर चीफ मार्शल बना दिया गया. 1965 के भारत-पाक युद्ध में बतौर चीफ ऑफ एयर स्टाफ अपनी नेतृत्व क्षमता का लोहा मनवाने वाले अर्जन सिंह साल 1969 में वायुसेना से रिटायर हो गए.
एक इंटरव्यू के दौरान अर्जन सिंह बताते हैं कि 1962 के चीन युद्ध में वायु सेना को इस्तेमाल न करने का मलाल उन्हें हमेशा रहेगा. 62 के युद्ध में भारत को चीन के हाथों हार का सामना करना पड़ा. अर्जन सिंह के मुताबिक अगर उस वक्त वायु सेना को आजमाया गया होता तो तस्वीर कुछ और भी हो सकती थी. उनका मानना था कि 1962 में भारतीय वायु सेना चीन की एयर फोर्स के मुकाबले कहीं बेहतर थी. ये मलाल दिल से जाता नहीं.
अर्जन सिंह को देश का दूसरे सबसे बड़े सम्मान पद्म विभूषण से 1965 में ही सम्मानित किया गया. अर्जन सिंह देश के एकमात्र वायुसेना ऑफिसर थे जिन्हें 5-स्टार रैंक दी गई. उनके अलावा फील्ड मार्शल मानेकशॉ और केएम करियप्पा को भी ये सम्मान मिल चुका है.
अर्जन सिंह का एयरफोर्स को लेकर लगाव इस बात से समझा जा सकता है कि उन्होंने दिल्ली के पास अपनी 7 एकड़ जमीन को एयरफोर्स ट्रस्ट के हवाले कर दिया. अर्जन सिंह ने बतौर राजदूत और कूटनीतिज्ञ भी अपनी अहम भूमिका निभाई. उनका पूरा करियर और शख्सियत देश के नौजवानों के लिए मिसाल है.
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