मेंबर्स के लिए
lock close icon
Home Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019News Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019India Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Article 370 केस में मोदी सरकार कैसे जीती? जवाब सुप्रीम कोर्ट के फैसले के 7 पहलू में हैं

Article 370 केस में मोदी सरकार कैसे जीती? जवाब सुप्रीम कोर्ट के फैसले के 7 पहलू में हैं

सुप्रीम कोर्ट के अनुसार जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाला आर्टिकल 370 संविधान का एक अस्थायी प्रावधान था

क्विंट हिंदी
भारत
Published:
<div class="paragraphs"><p>Article 370 केस में मोदी सरकार कैसे जीती: SC के फैसले के 7 पहलु में हैं जवाब</p></div>
i

Article 370 केस में मोदी सरकार कैसे जीती: SC के फैसले के 7 पहलु में हैं जवाब

फोटो- क्विंट हिंदी

advertisement

(जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 हटाए जाने के पांच साल पूरे होने पर इस आर्टिकल को फिर से पब्लिश किया जा रहा है.)

Article 370 Abrogation Case: "यह जम्मू, कश्मीर और लद्दाख में हमारी बहनों और भाइयों के लिए उम्मीद, तरक्की और एकता का एक शानदार ऐलान है. कोर्ट ने एकता के मूल सार को मजबूत किया है, जिसे हम, भारतीय होने के नाते, बाकी सब से ऊपर अपना मानते हैं और संजोते हैं."

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ये तब कहा जब सोमवार, 11 दिसंबर को सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक पीठ ने जम्मू-कश्मीर में आर्टिकल 370 को निरस्त करने की संवैधानिक वैधता पर अपना फैसला सुनाया.

सर्वसम्मत फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जम्मू-कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा देने वाला आर्टिकल 370 भारत के संविधान का एक अस्थायी प्रावधान था. नरेंद्र मोदी की नेतृत्व वाली सरकार ने संसद के रास्ते यह कदम अगस्त 2019 में उठाया और इसके कुछ ही महीने बाद उसे केंद्र में दूसरी बार सत्ता मिली.

अपने फैसले में, शीर्ष अदालत ने यह भी निर्देश दिया कि 30 सितंबर, 2024 तक जम्मू-कश्मीर विधानसभा के चुनाव कराने के लिए चुनाव आयोग द्वारा कदम उठाए जाने चाहिए और राज्य का दर्जा जल्द से जल्द बहाल किया जाना चाहिए.

चलिए सुप्रीम कोर्ट के फैसले के सात प्रमुख पहलुओं पर एक नजर डालते हैं.

आर्टिकल 370 पर 3 अलग-अलग फैसले लेकिन मर्म एक - ऐसा क्यों?

फैसला सुनाने से पहले सीजेआई चंद्रचूड़ ने कहा कि इस मामले पर तीन समवर्ती (फैसला का सार एक लेकिन फैसलों में बातें अलग) फैसले हैं:

एक सीजेआई का खुद का फैसला, जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस सूर्यकांत का एक फैसला और जस्टिस एसके कौल और जस्टिस संजीव खन्ना का एक फैसला. हालांकि ये तीनों फैसले एक दूसरे से सहमति रखते हैं, केवल तीनों फैसलों की बातों में थोड़ा सा अंतर है.

फैसले में सीजेआई ने सात सवालों को सामने रखा, यहां हम तीन सबसे जरूरी पहलुओं को बता रहे हैं:

  • आर्टिकल 370 पर क्या जम्मू-कश्मीर संविधान सभा की सिफारिश के अभाव में राष्ट्रपति का आदेश अमान्य है?

  • क्या जम्मू-कश्मीर में दिसंबर 2018 में लगाया गया राष्ट्रपति शासन और उसके बाद बढ़ाया गया शासन वैध है?

  • क्या राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों (यूटी) में विभाजित करने वाला जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम संवैधानिक रूप से वैध है?

दिसंबर 2018 में लगाए गए राष्ट्रपति शासन की वैधता

राष्ट्रपति शासन लगाने और बाद में इसे बढ़ाए जाने की वैधता पर शीर्ष अदालत ने कहा कि अदालत को "इस पर फैसला देने की जरूरत नहीं है क्योंकि याचिकाकर्ताओं ने इसे चुनौती नहीं दी है."

अदालत ने यह भी कहा कि जब राष्ट्रपति शासन लागू होता है तो राज्यों में संघ (केंद्र) की शक्तियों पर सीमाएं होती हैं.

सीजेआई ने फैसला पढ़ते हुए कहा, "राष्ट्रपति शासन के दौरान राज्य की ओर से केंद्र द्वारा लिए गए हर फैसले को चुनौती नहीं दी जा सकती... इससे राज्य का प्रशासन ठप हो जाएगा."

अदालत ने कहा, "याचिकाकर्ताओं का यह तर्क कि केंद्र राष्ट्रपति शासन के दौरान राज्य में अपरिवर्तनीय परिणामों वाली कार्रवाई नहीं कर सकता, ये बात स्वीकार नहीं की जाती है."

SC ने क्यों कहा 'जम्मू-कश्मीर के पास संप्रभुता नहीं है'

महाराजा हरि सिंह के नेतृत्व में जम्मू कश्मीर के भारत में विलय के दौरान उसकी संप्रभुता पर फैसला सुनाते हुए अदालत ने कहा कि आर्टिकल 370 का मतलब यह नहीं है कि उसने संप्रभुता या आंतरिक संप्रभुता के तत्व को बरकरार रखा है.

अदालत ने कहा, "महाराजा की उद्घोषणा में कहा गया था कि भारत का संविधान ही ऊपर रहेगा. और इसी बात के साथ आर्टिकल समाप्त हो जाएगा."

फैसले में कहा गया कि, "जम्मू-कश्मीर के संविधान में संप्रभुता के संदर्भ का स्पष्ट अभाव है."

कोर्ट ने कहा, "जम्मू-कश्मीर राज्य के पास अन्य राज्यों से अलग आंतरिक संप्रभुता नहीं है."

कोर्ट ने कहा कि जम्मू-कश्मीर का भारत का अभिन्न अंग बनना संविधान के अनुच्छेद 1 (इंडिया, यानी भारत, राज्यों का एक संघ होगा) और 370 से स्पष्ट है.

ADVERTISEMENT
ADVERTISEMENT

राष्ट्रपति की शक्तियों को जम्मू कश्मीर की संविधान सभा के अधीन करने पर कोर्ट ने क्या कहा?

अदालत ने तत्कालीन राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के संवैधानिक आदेश (सीओ) 273 जारी करने के कदम को बरकरार रखा, जिसने जम्मू-कश्मीर को दिए गए विशेष दर्जे को हटा दिया था.

अदालत ने फैसला सुनाया, "संविधान सभा की सिफारिश राष्ट्रपति के लिए बाध्यकारी नहीं थी. जम्मू-कश्मीर संविधान सभा का उद्देश्य एक अस्थायी निकाय था."

सीजेआई ने फैसले में कहा, "जम्मू-कश्मीर संविधान सभा के खत्म होने के बाद आर्टिकल 370 (3) के तहत शक्ति समाप्त हो जाती है."

अदालत ने कहा, "हमें नहीं लगता कि सीओ 273 जारी करने के लिए राष्ट्रपति की शक्ति का इस्तेमाल दुर्भावनापूर्ण था."

सुप्रीम कोर्ट ने लद्दाख को अलग करने के फैसलो को क्यों बरकरार रखा?

जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम 2019 की वैधता पर, अदालत ने कहा कि सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने जम्मू-कश्मीर के राज्य का दर्जा बहाल करने पर शीर्ष अदालत को प्रस्ताव दिया है.

अदालत ने कहा, "सॉलिसिटर जनरल की दलील के मद्देनजर, हमें यह निर्धारित करना जरूरी नहीं लगता कि जम्मू-कश्मीर का केंद्रशासित प्रदेश में पुनर्गठन वैध है या नहीं."

संविधान के अनुच्छेद 3 का हवाला देते हुए, अदालत ने कहा कि यह राज्य के एक हिस्से को केंद्र शासित प्रदेश (UT) बनाने की अनुमति देता है, जिससे लद्दाख का अलग UT बनना बरकरार रहेगा. हालांकि, अदालत ने कहा कि क्या संसद किसी राज्य को केंद्र शासित प्रदेश में बदल सकती है या नहीं इस सवाल पर अभी और बहस और चर्चा की जरूरत है.

SC ने आर्टिकल 370 को 'अस्थायी' क्यों कहा?

अदालत ने फैसला सुनाया कि आर्टिकल 370 "राज्य में युद्ध की स्थिति" के कारण एक अंतरिम व्यवस्था थी.

अदालत ने कहा कि, लिखे गए नोट के अनुसार, आर्टिकल 370 अस्थाई प्रावधान है और मार्जिनल नोट बताता है कि ये अस्थाई और पर्मानेंट नहीं है.

चुनाव और मानवाधिकार उल्लंघन पर कोर्ट ने क्या आदेश दिया?

अदालत ने भारत के चुनाव आयोग को 30 सितंबर, 2024 तक जम्मू-कश्मीर विधानसभा के चुनाव कराने का भी निर्देश दिया है.

अदालत ने कहा, "राज्य का दर्जा जल्द से जल्द बहाल किया जाए."

अपने एक फैसले में जस्टिस एसके कौल ने राज्य में मानवाधिकारों के उल्लंघन को जिम्मेदार ठहराया.

यह कहते हुए कि घावों और आघात को ठीक करने की जरूरत है - जस्टिस कौल ने कहा: "घावों को ठीक करने की दिशा में पहला कदम राज्य और उसकी मशीनरी द्वारा किए गए उल्लंघनों के कामों को स्वीकार करना है... सच बोलने से सुलह का मार्ग प्रशस्त होता है."

उन्होंने कहा कि, "मैं कम से कम 1980 के दशक से राज्य और गैर-राज्य मशीनरी द्वारा मानवाधिकारों के उल्लंघन की जांच और इसे रिपोर्ट करने और सुलह के उपायों की सिफारिश करने के लिए एक निष्पक्ष सत्य और सुलह समिति (Truth and Reconciliation committee) की स्थापना की सिफारिश करता हूं."

आयोग का गठन किस तरीके से किया जाना चाहिए, इसका निर्णय सरकार पर छोड़ते हुए कौल ने आगाह किया कि इसे आपराधिक अदालत नहीं बनना चाहिए, बल्कि संवाद बढ़ाने का एक मंच बनना चाहिए.

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

अनलॉक करने के लिए मेंबर बनें
  • साइट पर सभी पेड कंटेंट का एक्सेस
  • क्विंट पर बिना ऐड के सबकुछ पढ़ें
  • स्पेशल प्रोजेक्ट का सबसे पहला प्रीव्यू
आगे बढ़ें

Published: undefined

ADVERTISEMENT
SCROLL FOR NEXT