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अरुण जेटली के लिए राजनीतिक हलकों में अनौपचारिक तौर पर माना जाता था कि वह ‘पढ़े लिखे विद्वान मंत्री’ हैं. पिछले तीन दशक से अधिक समय तक अपनी तमाम तरह की काबिलियत के चलते जेटली लगभग हमेशा सत्ता तंत्र के पसंदीदा लोगों में रहे, सरकार चाहे जिसकी भी रही हो. हर जटिल मसले पर सर्वसम्मति बनाने में महारत हासिल करने वाले जेटली को कुछ लोग मोदी का ‘ऑरिजनल चाणक्य’ भी मानते थे जो 2002 से मोदी के लिए मुख्य तारणहार साबित होते रहे जब तत्कालीन मुख्यमंत्री पर गुजरात दंगे के काले बादल मंडरा रहे थे.
जेटली न सिर्फ मोदी बल्कि अमित शाह के लिए भी उस वक्त में मददगार साबित हुए, जब उन्हें गुजरात से बाहर कर दिया गया था. शाह को उस वक्त अक्सर जेटली के कैलाश कॉलोनी दफ्तर में देखा जाता था और दोनों हफ्ते में कई बार साथ भोजन करते देखे जाते थे. 2014 में मोदी को बीजेपी के प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाए जाने की औपचारिक घोषणा से पहले के कुछ महीनों में, जेटली ने राजनाथ सिंह, शिवराज सिंह चौहान और नितिन गडकरी को साथ लाने के लिए पर्दे के पीछे बहुत चौकस रह कर काम किया.
पेशे से वकील रहे जेटली अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में मंत्री थे और जब मोदी प्रधानमंत्री बने तो उन्होंने अरुण शौरी और सुब्रमण्यम स्वामी की दावेदारी को अनदेखा करते हुए उन्हें वित्त मंत्रातय का महत्वपर्ण दायित्व सौंपा. मोदी एक बार जेटली को “अनमोल हीरा” भी बता चुके हैं. सरकार में जेटली की उपयोगिता का अंदाज इससे लगाया जा सकता था कि जब तत्कालीन रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर की सेहत बिगड़ी तो उन्हें ही मंत्रालय का अतिरिक्त प्रभार सौंपा गया.
सत्ता संचालन के दांव पेंच से भली-भांति परिचित जेटली 1990 के दशक के अंतिम सालों के बाद से नयी दिल्ली में मोदी के भरोसेमंद बन चुके थे और बीते कुछ सालों में, खासकर गुजरात में 2002 के दंगों के बाद, अदालती मुश्किलों को हल करने वाले कानूनी दिमाग से आगे बढ़ कर वह उनके मुख्य सलाहकार, सूचना प्रदाता और उनके प्रमुख पैरोकार बन चुके थे. मोदी और जेटली का साथ बहुत पुराना है जब आरएसएस प्रचारक, मोदी को दिल्ली में 90 के दशक के अंतिम में बीजेपी का महासचिव नियुक्त किया गया था, वह 9 अशोक रोड के जेटली के आधिकारिक बंगले के एक कमरे में रहते थे. उस वक्त जेटली अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में मंत्री थे. गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री केशुभाई पटेल को हटा कर मोदी को उस पद पर बिठाने को लेकर लिए गए फैसले में भी उनकी भूमिका मानी जाती थी.
मोदी सरकार के पहले कार्यकाल (2014 से 2019) में जेटली लगभग हर जगह छाए रहे. सरकार की उपलब्धियां गिनाने का मामला हो या सरकार के विवादित फैसलों के बचाव का या फिर विपक्ष पर आक्रामक हमला बोलने की बात हो या 2019 के चुनाव अभियान के लिए 'स्थिरता या अव्यवस्था के बीच चुनने की परीक्षा' का विमर्श तय करना हो, जेटली की भूमिका हर मामले में महत्वपूर्ण थी.
देश और दुनिया के लिए उन्होंने ईंधन की बढ़ती कीमतों का वैश्विक संदर्भ समझाया, जटिल राफेल लड़ाकू विमान सौदे को आसान शब्दों में बताया, जीएसटी जैसे बड़े आर्थिक कानून को संसद की मंजूरी दिलवाई जो करीब दो दशकों से लटका हुआ था.
अगर पदक्रम के हिसाब से देखा जाए तो वह पहली मोदी सरकार में बेशक नंबर दो पर थे. कई नियुक्तियां उनके कहने पर हुईं. पार्टी के सभी प्रवक्ता सलाह के लिए उनके पास जाते थे.
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