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नीति आयोग के पूर्व उपाध्यक्ष अरविंद पनगढ़िया का मानना है कि अर्थव्यवस्था में चालू खाते का घाटे कोई बड़ी चिंता की बात नहीं है. पनगढ़िया ने बैंकों के बढ़ते एनपीए, देश मौजूदा आर्थिक स्थिति, सुधारों और मौजूदा ट्रेड वॉर के बारे में क्विंट के एडिटोरियल डायरेक्टर संजय पुगलिया से खुल कर बातचीत की. हालांकि उन्होंने आरबीआई और सरकार के बीच मौजूदा विवाद के बारे में बोलने से इनकार कर दिया.
पनगढ़िया ने कहा कि देश की अर्थव्यवस्था में चालू खाते का घाटा कोई बड़ी चिंता की बात नहीं है. क्योंकि हम इसका मासिक विश्लेषण कर रहे हैं. अगर वार्षिक आधार पर देखा जाए तो चालू खाते का घाटा यानी करंट अकाउंट डेफिसिट की स्थिति कोई खराब नहीं है. अभी चूंकि रुपये में थोड़ी गिरावट आई है उसका भी असर दिख रहा है लेकिन हालात खराब नहीं हैं.
एक समय था जब देश में टैरिफ 355 फीसदी था और इसे हम घटा कर अब दस फीसदी पर ले आए हैं. ये बहुत बड़ी उपलब्धि है. हम यह सोचते हैं कि जिन सेक्टर में हम टैरिफ बढ़ाएंगे वहां हमारा आउटपुट बढ़ जाएगा. लेकिन ऐसा नहीं है. ऐसा रवैया इकनॉमी के लिए अच्छा नहीं है.
पानागढ़िया ने कहा चीन और अमेरिका के बीच ट्रेड वॉर लंबी चल सकती है. क्योंकि अमेरिका में चीन की ट्रेड नीतियों के खिलाफ आम सहमति है. चीन ने डब्ल्यूटीओ में जो वादे किए वे पूरे नहीं किए. इसे लेकर अमेरिका में नाराजगी है.
चीन के खिलाफ कदम उठाना सिर्फ ट्रंप की सोच नहीं है. आगे भी अगर कोई दूसरा अमेरिकी राष्ट्रपति आएगा तो भी चीन के खिलाफ उसकी नीतियां ऐसी ही रह सकती है.
लेकिन इस स्थिति का भारत को लाभ लेना चाहिए. ट्रे़ड वॉर की पाबंदियों की वजह से अमेरिका और चीन में काम करने वाली बहुराष्ट्रीय कंपनियां अपना नया प्रोडक्शन बेस ढूंढेगी. वे प्रोडक्शन को शिफ्ट करेंगे. हमें कोशिश करनी चाहिए कि वे हमारे यहां आएं. इसका बड़ा फायदा हमारी इकनॉमी को होगी क्योंकि मल्टीनेशल कंपनियां बड़े स्केल पर काम करते हैं. उनके पास टेक्नोलॉजी भी है और मार्केट स्पेशलाइजेशन भी. यह हमारे काफी काम आ सकती है.
पनगढ़िया से देश में किए जाने वाले कुछ अहम सुधारों के बारे में सुधारों के बारे में पूछने पर उन्होंने कहा कि बैंकों का निजीकरण होना चाहिए. सिविल सर्विसेज में रिफॉर्म एक बड़ा कदम होगा. पीएम की ओर से सिविल सर्विसेज में लेटरल एंट्री इस दिशा में एक बड़ा कदम है. वहीं ज्यूडीशियरी में सुधार करना बेहद जरूरी है. हालांकि उन्होंने कहा कि अभी भी हमारे यहां रेगुलेशन बहुत ज्यादा है. पानागढ़िया ने अपनी आने वाली किताब पर भी चर्चा की है, जिसमें उन्होंने विकासशील देशों के नजरिये से मुक्त व्यापार का समर्थन किया है.
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