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कोरोना महामारी में जब हर तरफ लॉकडाउन था, लोग घरों में थे तब कुछ गुमनाम वॉरियर गली, मोहल्ले से लेकर गांव-शहर में दिन के धूप में कोरोना के संक्रमित को ट्रैक कर रहे थे. नाम है एक्रेडिटेड सोशल हेल्थ एक्टिविस्ट मतलब आशा वर्कर. लेकिन अब करीब 6 लाख आशा वर्कर अपनी कई सारी मांगों को लेकर हड़ताल पर जा रही हैं. अपनी मांगों की ओर ध्यान दिलाने के लिए देश भर की आशा वर्कर 7 अगस्त यानी आज से दो दिन की हड़ताल पर हैं.
आशा वर्कर्स की मांग है कि उन्हें बेहतर और समय पर वेतन मिले, और एक कानूनी स्थिति जो न्यूनतम मजदूरी सुनिश्चित करे, ताकि जिस तरह वो देश के पिछड़े और पहुंच से दूर इलाकों में जाकर अधिकारियों की मदद कर रही हैं वो जारी रख सकें.
बिजनेस स्टैंडर्ड से बात करते हुए महाराष्ट्र की एक आशा वर्कर ने बताया कि वो सुबह 7 बजे से शाम के 5 बजे तक काम करती हैं. जिसके बदले उन्हें महीने का सिर्फ दो हजार रुपए मिलता है. आशा कार्यकर्ता बताती है कि उन लोगों को कोरोना के दौरान काम करने के लिए एक्सट्रा दो हजार रुपए महीना मिलने का वादा किया गया था, लेकिन वो भी अबतक नहीं मिले हैं.
बता दें कि आशा कार्यकर्ता गांवों और शहरों में घर-घर जाकर परिवार के एक-एक सदस्य की स्वास्थ्य से जुड़ी जानकारी इकट्ठा करती हैं और इसी के आधार पर सरकार बीमारियों को बेहतर तरीके को समझ पाती है. बता दें कि आशा वर्कर की मदद से ही देश पोलियो से लेकर डिलवरी के वक्त महिलाओं के मौत पर काबू पाया जा सका है.
ब्लूमबर्ग से बात करते हुए अखिल भारतीय ट्रेड यूनियन कांग्रेस के महासचिव अमरजीत कौर ने कहा,
इस हड़ताल के लिए 10 केंद्रीय ट्रेड यूनियनों से जुड़ा मंच भी साथ आया है. इंटक, एआईटीयूसी, सीटू, जैसी केंद्रीय ट्रेड यूनियनों से जुड़े आंगनवाड़ी, आशा, मध्याह्न भोजन योजना से जुड़े संगठन हड़ताल में शामिल होंगे.
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