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3 महीने डिटेंशन कैंप में रहने वाले 104 साल के चंद्रधर दास का निधन

जनवरी 2018 में चंद्रधर दास को फॉरेनर्स ट्रिब्यूनल ने विदेशी घोषित किया था.

त्रिदीप के मंडल & बिस्वा कल्याण
भारत
Published:
जनवरी 2018 में चंद्रधर दास को फॉरेनर्स ट्रिब्यूनल विदेशी घोषित किया था
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जनवरी 2018 में चंद्रधर दास को फॉरेनर्स ट्रिब्यूनल विदेशी घोषित किया था
(फोटो: क्विंट हिंदी)

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असम के 104 साल के चंद्रधर दास, जिन्हें विदेशी घोषित किए जाने के कारण तीन महीने डिटेंशन कैंप में रहना पड़ा था, का 14 दिसंबर को निधन हो गया. कुछ दिनों पहले ही क्विंट ने, CAA के साल होने पर कैंपेन के तहत उनकी कहानी दिखाई थी.

असम के कछार जिले में धोलाई के अंतर्गत अमराघाट क्षेत्र के निवासी 104 साल चंद्रधर दास को जनवरी 2018 में फॉरेनर्स ट्रिब्यूनल ने विदेशी घोषित किया था. ये एकपक्षीय फैसला था, क्योंकि वो फॉरेनर्स ट्रिब्यूनल के सामने पेश नहीं पाए थे.

“बहुसंख्यक समुदाय की धमकियों के कारण मेरे पिता ने 1950 के बाद बांग्लादेश छोड़ दिया था. वो त्रिपुरा के जरिए भारत में दाखिल हुए और तेलियामुरा में दिहाड़ी मजदूर के रूप में काम करना शुरू किया. उन्होंने शादी की और वहीं उनके बच्चे भी हुए. लेकिन फिर स्थानीय समूहों ने समस्याएं पैदा करना शुरू कर दिया, इसलिए वो बंगाली बहुल बराक घाटी में चले गए. लेकिन ट्रिब्यूनल कोर्ट ने उन्हें अवैध विदेशी घोषित कर दिया. यहां तक कि हमारे नाम भी NRC में नहीं हैं.”
नियती राय, चंद्रधर दास की बेटी

मई 2018 में, 102 साल के चंद्रधर दास को सिलचर सेंट्रल जेल में डिटेंशन कैंप में ले जाया गया. उनकी तबीयत बिगड़ने पर, मानवता के आधार पर उन्हें 3 महीने बाद उन्हें बेल मिल गई.

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पूरी नहीं हो सकी आखिरी इच्छा

दिसंबर 2019 में, संसद में नागरिकता संशोधन कानून (CAA) पारित होने के बाद, चंद्रधर दास के परिवार को उम्मीद थी कि उन्हें भारतीय नागरिकता मिल जाएगी.

“अगर सरकार अनिच्छुक नहीं होती, तो शायद उन्हें अपनी नागरिकता मिल सकती थी. CAA पिछले साल पास किया गया था. आमतौर पर तौर-तरीकों को तैयार करने में लगभग तीन महीने लगते हैं, लेकिन CAA के मामले में ऐसा नहीं है. इस एक घटना ने साबित कर दिया कि हमारी सामाजिक व्यवस्था में कितनी खामियां हैं. वो शख्स इतना जिंदादिल था, लेकिन अपनी मृत्यु से पहले अपनी नागरिकता साबित नहीं कर सका.”
उनके वकील सुमेन चौधरी

चंद्रधर दास की इकलौती इच्छा यही थी कि वो इस दुनिया से एक भारतीय के तौर पर विदा हों, लेकिन उनकी ये इच्छा पूरी नहीं हो सकी.

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