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असम के गोलाघाट जिले की बोकाखाट विधानसभा क्षेत्र में,चुनाव के लिए एक अनोखे तरीके से लोगों से पैसे जुटाने की मुहिम चल रही है. स्थानीय किसानों ने 100 एकड़ कृषि जमीन पर एक फसल से होने वाली कमाई एक संभावित उम्मीदवार-आंचलिक गण मोर्चा के प्रणब डोली के लिए अलग कर दिया है.
ये उपज जिसमें ज्यादातर धनिया, गाजर, मटर और कुछ और सब्जियां शामिल होंगी, इनसे करीब एक लाख रुपये तक जुटाए जा सकते हैं. हालांकि ये एक पूरे विधानसभा चुनाव के प्रचार के लिए काफी नहीं है, लेकिन ये स्थानीय समुदाय में प्रणब डोलीके समर्थन और साख की गवाही देता है.
डोली लोकप्रिय आंदोलनों में शामिल उन कई एक्टिविस्ट में एक हैं जिन्होंने असम में होने वाले विधानसभा चुनावों में किस्मत आजमाने का फैसला किया है.
इस श्रेणी में शामिल सबसे प्रमुख लोगों में असम जातीय परिषद के अध्यक्ष लुरिनज्योति गोगोई और राजिओर दल के प्रमुख अखिल गोगोई शामिल हैं. जैसे-जैसे चुनाव नजदीक आएंगे और भी कई युवा एक्टिविस्ट चुनाव लड़ने के लिए आगे आ सकते हैं.
लुरिनज्योति गोगोई, अखिल गोगोई और प्रणब डोली को जो बात महत्वपूर्ण बनाती है वो ये है कि वो बीजेपी, कांग्रेस, असम गण परिषद और ऑल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट जैसी मुख्यधारा की पार्टी में शामिल होने के बजाए एक वैकल्पिक राजनीतिक जगह बनाने की कोशिश कर रहे हैं.
वैसे, ये तीनों युवा एक्टिविस्ट 2019-20 में असम को हिला देने वाले नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ विरोध-प्रदर्शनों में शामिल थे. उनके लिए, सीएएए के खिलाफ प्रदर्शन एक एक्टिविस्ट के तौर पर उनके काम की एक स्वाभाविक परिणति थी.
असम के कई मूल समुदायों को डर है कि सीएए के कारण बांग्लादेशी हिंदू शरणार्थियों को नागरिकता के अधिकार दिए जाएंगे जिससे भूमि, नौकरियों, शैक्षणिक सुविधाओं आदि पर स्थानीय समुदाय के नियंत्रण पर असर पड़ सकता है. इसलिए इसका विरोध भूमि और किसान अधिकारों की लड़ाई लड़ने वाले अखिल गोगोई और प्रणब डोली और लुरिनज्योति गोगोई, जिनकी पृष्ठभूमि ऑल असम स्टूडेंट यूनिय (एएएसयू) की रही है, दोनों ही कर रहे हैं.
1980 के दशक में हुए असम आंदोलन से नेताओं की एक पीढ़ी तैयार हुई जो असम की राजनीति में छाई रही. क्या सीएए विरोधी धरना प्रदर्शन भी असम के राजनेताओं की एक नई पीढ़ी को तैयार करेगी?
टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज, मुंबई के एक पूर्व छात्रप्रणब डोली जीपाल कृषक श्रमिक संघ के संस्थापक हैं और काजीरंगा वन्यजीव अभयारण्य के आस पास स्थानीय समुदायों के साथ बड़े पैमाने पर काम करते हैं. जब असम के इस हिस्से में जमीन पर स्थानीय लोगों के अधिकार की बात आती है तो सबसे ज्यादा खतरा अभयारण्य से ही है. डोली का कहना है कि काजीरंगा के हर विस्तार के कारण स्थानीय लोगों को हटने के लिए मजबूर होना पड़ा है.
उदाहरण के तौर पर, 2016 के बांदर दुबी बेदखली के दौरान दो लोगों की मौत हो गई थी.
यहां तक कि हर दिन भी, स्थानीय लोगों को अक्सर वन अधिकारियों के हमले और उत्पीड़न का सामना करना पड़ता है.
वन विभाग के गार्ड को देखते ही गोली मारने के आदेश की अनुमति दिए जाने के खिलाफ प्रदर्शन करने वाले डोली का कहना है कि “ वन विभाग के गार्ड को देखते ही गोली मारने के अधिकार दिए गए हैं. हालांकि, इसका कथित उद्देश्य वन्य जीवों के शिकार पर नियंत्रण है लेकिन अक्सर इसका इस्तेमाल स्थानीय लोगों के खिलाफ किया जाता है.”
भूमि अधिकारों के अलावा डोली ने चावल के वितरण में भ्रष्टाचार से लेकर बेहतर स्वास्थ्य सुविधाओं की मांग और बेशक नागरिकता संशोधन कानून सहित कई अलग-अलग मुद्दों पर प्रदर्शन में हिस्सा लिया है. 2020 में एक कथित चावल वितरण घोटाले के खिलाफ प्रदर्शन करने के लिए उन्हें गिरफ्तार भी किया गया था.
हालांकि, जेल में रहना और पुलिस की लगातार धमकियों से डोली डरे नहीं हैं. लेकिन उन्हें जमीनी स्तर पर एक्टिविज्म जारी रखने के साथ ही मुख्य धारा की राजनीति में आने की जरूरत महसूस हुई.
डोली का उद्देश्य इलाके में अपने जमीनी स्तर के संबंधों का इस्तेमाल कर जमीन से गहरे तौर पर जुड़े दो समुदायों-मूल वासी जनजातीय मिजिंग समुदाय और ब्रिटिश काल में टी प्लांटेशन वर्कर के तौर पर छोटानागपुर से लाए गए आदिवासी समुदाय के बीच एक सामाजिक गठबंधन तैयार करना है.
डोली का दावा है कि चुनाव लड़ने का फैसला करने के बाद उन्हें धमकाने की कोशिशें और बढ़ गई हैं. उन्होंने आरोप लगाया कि 3 फरवरी की देर रात हथियारबंद पुलिसकर्मी उसके घर में घुस आए, लेकिन इस दावे को गोलाघाट पुलिस ने गलत बताया है.
प्रणब डोली के सामने एक मुश्किल लड़ाई है क्योंकि बोकाखाटविधानसभा क्षेत्र में उनका मुकाबला असम गण परिषद प्रमुख और कृषि और पशुचिकित्सा मामलों के मंत्री अतुल बोरा से है.
डोली की पार्टी आंचलिक गण मोर्चा, जिसके अध्यक्ष पत्रकार अजित भुइयां हैं, कांग्रेस के नेतृत्व वाले गठबंधन का हिस्सा है जिसमें एआईयूडीएफ और वामपंथी पार्टियां भी शामिल हैं. गठबंधन में शामिल दलों के बीच सीटों के बंटवारे को लेकर अभी फैसला नहीं हुआ है, इसलिए ये अभी तक साफ नहीं है कि गठबंधन में शामिल दूसरे दल डोली की उम्मीदवारी का समर्थन करेंगे या नहीं.
कृषक मुक्ति संग्राम समिति के संस्थापक, 44 साल के अखिल गोगोई को पुलिस की जितनी बेरहमी का सामना करना पड़ा है उतना भारत के कुछ ही एक्टिविस्ट को करना पड़ा होगा. उनके खिलाफ कठोर अनलावफुल एक्टिविटीज प्रिवेंशन एक्ट (यूएपीए) के तहत मामला दर्ज किया गया और सीएए विरोधी प्रदर्शनों के कारण 12 दिसंबर 2019 से जेल में हैं.
एक मार्क्सवादी, गोगोई ने अपना ऐक्टिविज्म वामपंथी यूनाइटेड रिवोल्यूशनरी मूवमेंट काउंसिल ऑफ असम (यूआरएमसीए) के साथ शुरू किया लेकिन बाद में उससे अलग हो गए.
गोगोई ने 2005 में गोलाघाट जिले के डोइयांग तेनगनी इलाके में एक वन अधिकार आंदोलन के बीच केएमएसएस का गठन किया जिसका मुख्य उद्देश्य भूमि और वन अधिकारों को हासिल कर किसानों के जीवन और आजीविका की रक्षा करना, भ्रष्टाचार को उजागर करना और बड़े बांधों के निर्माण का विरोध करना था.
सन 2000 के पहले दशक के अंतिम वर्षों में गोगोई ने असम और अरुणाचल प्रदेश से लगे इलाकों में बड़े बांधों के खिलाफ विरोध पर अपना ध्यान केंद्रित किया. खास तौर पर उनके संगठन ने लोअर सुबानसिरि में मेगा हाइडल प्रोजेक्ट के निर्माण पर रोक की मांग की.
दिसंबर 2011 में, गोगोई की अगुवाई में बड़ी संख्या में बांध विरोधी प्रदर्शनकारियों ने लखीमपुर जिले के गेरुकामुख में लोअर सुबानसिरि हाइड्रो-इलेक्ट्रिक पावर प्रोजेक्ट के लिए टर्बाइन के हिस्सों को लेकर जाने वाले ट्रकों को रोक दिया.
2011 में वो कुछ समय के लिए इंडिया ‘अगेंस्ट करप्शन आंदोलन’ का हिस्सा भी रहे लेकिन जल्दी इससे दूरी भी बना ली.
कांग्रेस के सरकार के वक्त भी उन पर एक माओवादी होने काआरोप लगा था. हालांकि असम में 2016 में बीजेपी के सत्ता में आने के बाद से उनके खिलाफ कार्रवाई में तेजी आई है.
बीजेपी के साथ अखिल गोगोई के टकराव के बीज पहले ही बोए जा चुके थे. इस बात का अंदाजा लगाया जा सकता था कि 2019 में जब आखिरकार सीएए पारित हो गया तो वो विरोध प्रदर्शनों में सबसे आगे होंगे.
गोगोई की केएमएसएस के साथ 70 सिविल सोसायटी संगठनों ने मिलकर राजिओर दल बनाया है जिसके अध्यक्ष गोगोई हैं.
राजिओर दल ने असम जातीय परिषद के साथ गठबंधन किया है और इस गठबंधन को बोडोलैंड पीपुल्स फ्रंट का समर्थन भी प्राप्त है जो हाल तक बीजेपी का सहयोगी हुआ करता था.
गोगोई के ऊपरी असम में शिवसागर या जोरहाट जिले की किसी सीट से चुनाव लड़ने की संभावना है.
डोली और अखिल गोगोई के विपरीत, जो दोनों भूमि अधिकार कार्यकर्ता है, लुरिनज्योति गोगोई एक छात्र नेता हैं और ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन (एएएसयू) के सचिव थे जिसके लाखों मौजूदा और पूर्व सदस्य पूरे असम में हैं और पूरे राज्य में उनका बड़ा नेटवर्क है. असम में बड़े पदों पर बैठे कई नेताओं-मौजूदा मुख्यमंत्री सर्बानंद सोनोवाल, पूर्व मुख्यमंत्री प्रफुल्ल कुमार महंता से लेकर एजीपी प्रमुख अतुल बोरा की पृष्ठभूमि एएएसयू की रही है.
एएएसयू असम के मूल लोगों के हितों की रक्षा करने वाला एक अगुआ संगठन होने का दावा करता है. हालांकि पार्टी के मौजूदा नेता अपने कुछ पूर्व के वरिष्ठ नेताओं जैसे सोनोवाल और बोरा पर, विशेषतौर पर सीएए को समर्थन देने के कारण “असम के लोगों को धोखा देने” का आरोप लगाते हैं.
कम ही समय में लुरिनज्योति गोगोई और असम जातीय परिषद ने असमी बोलने वाले कई मतदाताओं, खासकर ऊपरी असम में, पर गहरी छाप छोड़ी है.
ये लोग बीजेपी को असम के मूल लोगों के लिए एक बड़े खतरे के तौर पर देखते हैं, खासकर सीएए के बाद वो कांग्रेस पर भी इसके खिलाफ जोरदार तरीके से आवाज नहीं उठाने का आरोप लगातेहैं, हालांकि पार्टी हाल के दिनों में इस मुद्दे को जोरदार तरीके से उठा रही है.
एएएसयू के तिनसुकिया जिले के अध्यक्ष राजा बोलीमोरा कहते हैं कि “कांग्रेस लुरिनज्योति के कारण सीएए के खिलाफ आक्रामक हुई है. उन्हें महसूस हुआ है कि असम में वोट हासिल करने का यही तरीका है.”
लुरिनज्योति ने दावा किया है कि वो किसी राष्ट्रीय पार्टी के साथ गठबंधन नहीं करेंगे क्योंकि जातीय परिषद का सिद्धांत है “असम फ़र्स्ट यानी सबसे पहले असम.”
उनके ऊपरी असम के एक सीट से विधानसभा चुनाव लड़ने की संभावना है. जिन दो सीटों से उनके लड़ने की संभावना जताई जा रही है उनके नाम हैं नहरकटिया और दुलियाजान, दोनों डिब्रूगढ़ जिले में हैं.
हालांकि अलग-अलग रास्ते और राजनीतिक पसंद के साथ तीनों एक्टिविस्ट का एक ही साझा विरोधी है-असम की बीजेपी सरकार.
उनके कई समर्थक भी ये मानते हैं कि बीजेपी, कांग्रेस के मुकाबले एक बड़ा खतरा है क्योंकि कांग्रेस ने कम से कम उस हद तक प्रदर्शनों का आपराधीकरण नहीं किया.
तीनों के लिए, असम के मूल लोगों के अधिकार इस चुनाव में दांव पर हैं जिसमें शामिल है एक अधिकार-प्रदर्शन का अधिकार जो असम की राजनीति के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण है.
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