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जन्मदिन विशेष: अटल की जुबानी- राजनीति की वाणी

एक बेदाग, बेबाक और बेमिसाल राजनेता की कहानी

आशुतोष सिंह
भारत
Updated:
29 जुलाई 1998- तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी सार्क सम्मेलन की ओपनिंग सेरेमनी में पाक पीएम नवाज शरीफ को पानी ऑफर करते हुए. 
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29 जुलाई 1998- तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी सार्क सम्मेलन की ओपनिंग सेरेमनी में पाक पीएम नवाज शरीफ को पानी ऑफर करते हुए. 
(फोटो: रॉयटर्स)

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देश के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के बारे में अक्सर दूसरी पार्टी के नेता कहते हैं कि ‘वो गलत पार्टी में सही नेता हैं’. लेकिन ये कहावत समय के साथ अटल बिहारी वाजपेयी झुठलाते गए. न सिर्फ उन्होंने बीजेपी का जनाधार बढ़ाया बल्कि समय के मुताबिक पार्टी की विचारधारा में भी बदलाव करते गए.

बीजेपी की कट्टरता पर अटल की उदारता हमेशा भारी रही. अटल बिहारी वाजपेयी 25 दिसंबर को 93 साल के हो गए हैं. देशभर से उन्हें बधाईयां दी जा रही हैं.

राजनीति की अटलवाणी

संसद सत्र से पहले विपक्ष की नेता सोनिया से मुलाकात करते अटल बिहारी वाजपेयी. (फोटो: रॉयटर्स).

8 अगस्त 2003 को अटल जब लोकसभा में आए तो उनके हाथ में सोनिया गांधी द्वारा लिखी एक चिट्ठी थी और इस चिट्ठी के कुछ शब्दों पर वाजपेयी को आपत्ति थी.

लेकिन जिस तरह से वाजपेयी ने सदन में आपत्ति जताई, अपना विरोध पूरे संयम के साथ देश के सामने रखा वो आज के राजनेताओं के लिए एक मिसाल है.

नेहरू Vs वाजपेयी

पहली बार सांसद बने अटल बिहारी संसद में सीधे प्रधानमंत्री नेहरू तक से सवाल पूछ बैठते थे. एक बार तो उन्होंने संसद में ये तक कह दिया था कि नेहरू की शख्सियत विंस्टन चर्चिल (ब्रिटेन के प्रधानमंत्री जो अपने जुझारु स्वभाव और भाषणों के लिए जाने जाते थे) और नेविल चेंबरलेन (ब्रिटेन के प्रधानमंत्री जिन्हें तुष्टिकरण नीति के लिए जाना गया) का मिश्रण है.

वाजपेयी ने नेहरू की नीतियों का विरोध करने के बाद उनकी तुलना राम से की. पंडित नेहरू ने भी वाजपेयी के लिए कहा कि वे एक दिन भारत के प्रधानमंत्री बनेंगे. समय के साथ नेहरू की ये भविष्यवाणी सच भी साबित हुई.

पहले देश, फिर पार्टी और राजनीति

20 मई 1998 को पोखरण टेस्ट के बाद वाजपेयी और वैज्ञानिक अब्दुल कलाम की तस्वीर. (फोटो: रॉयटर्स)

पोखरण के बाद भारत पर जबरदस्त आर्थिक और राजनीतिक दवाब बन गया, वाजपेयी सबकुछ झेलने को तैयार थे, हर स्थिति से निपटने के लिए उनकी सरकार तैयार होने का दावा कर रही थी.

लेकिन कांग्रेस और लेफ्ट से लगातार परमाणु परिक्षण की निंदा वाजपेयी को नागवार गुजरी. अपनी नाराजगी उन्होंने जाहिर की लेकिन एक ऐसे उदाहरण के साथ जिसने देश को विपक्ष के व्यवहार पर सोचने को मजबूर कर दिया.

‘मृत्यु से नहीं, बदनामी से डरता हूं’

पार्टी कार्यक्रम में बीजेपी नेताओं के साथ अटल बिहारी वाजपेयी (फोटो: रॉयटर्स)

13 दिन की बीजेपी सरकार का जाना तय था, जीती बाजी भी अटल राजनीति की वजह से हार चुके थे. उनकी सरकार अल्पमत में थी और बार- बार विपक्ष ये आरोप लगा रहा था कि अटल सत्ता की राजनीति कर रहे हैं.

हालात गंभीर थे, पार्टी का पूरा दारोमदार अटल पर था और फिर संसद में ऐसी अटलवाणी गूंजी कि विपक्ष को मुंह की खानी पड़ी, बीजेपी की सरकार चली गई लेकिन अटल ने पार्टी में एक नई जान फूंक दी थी.

और बर्फ जम गई.....

40 साल की सियासत में सिर्फ 6 साल की सत्ता ही अटल की नीयति थी. साल 2005 में उन्होंने सक्रिय राजनीति से सन्यास ले लिया और पार्टी की कमान लाल कृष्ण आडवाणी और प्रमोद महाजन को सौंप दी.

मनमोहन सिंह ने राज्यसभा में वाजेपयी की तुलना भीष्म पितामह से की थी(फोटो: रॉयटर्स)

कैसी है अटल की सेहत?

अब अटल की सेहत नासाज रहती है और वो दिल्ली के कृष्णा मेनन रोड स्थित आवास पर रहते हैं (फोटो: रॉयटर्स)

2009 में दौरा पड़ने के बाद अटल अब बोल नहीं सकते. उनके करीबी कहते हैं कि वो समझते सब-कुछ हैं लेकिन कुछ भी बोल पाने में असमर्थ हैं

उनका दिन डॉक्टरों, फिजियोथेरेपिस्ट और नर्सों के बीच ही गुजरता है.

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Published: 24 Dec 2015,09:31 PM IST

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