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अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने 23 अगस्त को स्वरा भास्कर के खिलाफ अवमानना की प्रक्रिया शुरू करने की अपील खारिज कर दी है. ये निवेदन भास्कर के इस साल फरवरी में अदालतों पर की गई टिप्पणी को लेकर किया गया था. आरोप है कि स्वरा भास्कर ने अदालतों के खिलाफ 'अपमानजनक' भाषा का इस्तेमाल किया था.
इसके लिए केके वेणुगोपाल के समक्ष एक याचिका दी गई थी, जिसमें भास्कर के खिलाफ आपराधिक अवमानना की प्रक्रिया शुरू करने की मंजूरी मांगी गई थी.
याचिका के मुताबिक, स्वरा भास्कर के बयान में आपत्तिजनक हिस्सा ये था:
उषा शेट्टी ने अपनी याचिका में दावा किया कि ये बयान स्वाभाव में 'अपमानजनक' और 'निंदनीय' है. शेट्टी ने याचिका में कहा, "ये लोकप्रियता पाने का आसान रास्ता था लेकिन लोगों को सुप्रीम कोर्ट के खिलाफ भड़काने की जानबूझकर की गई कोशिश थी."
याचिका के जवाब में वेणुगोपाल ने कहा कि भास्कर का बयान उनका अपना नजरिया है और न्यायपालिका के संस्थान पर हमला नहीं है.
अटॉर्नी जनरल ने कहा, "दूसरा बयान जिसमें अदालतों और संविधान की बात कही गई है, वो एक अस्पष्ट टिप्पणी है और किसी विशेष अदालत से संबंधित नहीं है और वो इतनी सामान्य है कि कोई उसे गंभीरता से नहीं लेगा... मुझे नहीं लगता कि इस केस में कोर्ट की निंदा या उसकी अथॉरिटी कम करने का अपराध बनता है."
अटॉर्नी जनरल ने निवेदन खारिज किया तो याचिकाकर्ता ने अब सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता का दरवाजा खटखटाया है. मेहता से भास्कर के खिलाफ अवमानना प्रक्रिया शुरू करने की मंजूरी मांगी है. हालांकि, कानून में इसका कोई प्रावधान नहीं है. सॉलिसिटर जनरल देश का दूसरा सबसे बड़ा लॉ अफसर होता है. वो अटॉर्नी जनरल के नीचे काम करता है.
याचिकाकर्ता ने मेहता को दी गई अपील में कहा, "हम सम्मान के साथ अटॉर्नी जनरल की बताई हुई वजहों से असहमति रखते हैं."
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