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बीता साल कोरोना वायरस संकट की वजह से काफी बुरी खबरों वाला रहा. इन्हीं बुरी खबरों में से एक ऐसी भयानक खबर थी, जिसने पूरे देश को सदमा पहुंचाया था. पिछले साल मई महीने में महाराष्ट्र के औरंगाबाद जिले में लॉकडाउन के दौरान 16 मजदूरों की रेलवे पटरी पर मालगाड़ी की चपेट में आ जाने के चलते मौत हो गई थी. सिस्टम का सितम देखिए कि इस हादसे को एक साल पूरा होने को है और जान गंवाने वाले मजदूरों के परिवारजनों को अब तक इनका डेथ सर्टिफिकेट तक नहीं मिल पाया है. नतीजा ये है कि इन्हें वो सारी मदद नहीं मिल पा रही है, जिनका इनसे वादा किया गया था.
हादसे में जान गंवाने वाले सभी मजदूर मध्य प्रदेश के शहडोल एवं उमरिया जिले के थे. तब क्विंट हिंदी ने इस हादसे पर विस्तार से रिपोर्ट की थी और बताया था कि मजदूर किन परेशानियों की वजह से घर लौट रहे थे और उनके घरों की स्थिति कैसी थी.
पिछले साल कोरोना वायरस संक्रमण को फैलने से रोकने के लिए प्रधानमंत्री मोदी ने अचानक नेशनल लॉकडाउन की घोषणा कर दी थी, जिसके बाद देश के कई इलाकों से लाखों प्रवासी मजदूरों को पलायन करने पर मजबूर होना पड़ा था. इस दौरान बड़ी संख्या में मजदूरों की भूख-प्यास या फिर सड़क हादसे में मौत हो गई थी ऐसी ही एक दिल दहलाने वाली घटना 8 मई को औरंगाबाद जिले में हुई थी. रात के वक्त 16 मजदूरों की रेलवे की पटरी पर मालगाड़ी की चपेट में आ जाने के चलते मौत हो गई थी.
सभी 16 मजदूर महाराष्ट्र के जालना में एक स्टील फैक्ट्री में काम करते थे. लॉकडाउन के चलते उनकी नौकरी चली गई थी. वो सरकार की ओर से चलाई गई श्रमिक स्पेशल ट्रेन से वापस अपने घर जाने वाले थे. ट्रेन नहीं ले सके तो उन्होंने 7 मई, 2020 को पैदल ही घर जाने का रास्ता चुना.
उस वक्त ट्रेनें न के बराबर चल रही थीं, ऐसे में उन्होंने रेलवे ट्रैक पर ही आराम करने का फैसला किया था लेकिन रात के अंधेरे में उनके ऊपर से एक मालगाड़ी गुजर गई थी. मजदूरों की मौत हो जाने के बाद पोस्टमार्टम करने बाद सभी मजदूरों के शव को विशेष रेल गाड़ी से उमरिया एवं शहडोल भेज दिया गया. 11 मजदूर एमपी के शहडोल जिले और 5 मजदूर उमरिया जिले के थे.
हमने जब महाराष्ट्र के औरंगाबाद जिले के कलेक्टर सुनील चौहान से बात की तो उन्होंने कहा कि जिस क्षेत्र का ये मामला है, वो वहां के अधिकारी से जानकारी इकट्ठा करने के बाद मीडिया से बात करेंगे. उनका जवाब आने पर हम अपनी स्टोरी में शामिल करेंगे.
रेल दुर्घटना में जिन लोगों की मृत्यु हुई थी, उनमें अंतौली ग्राम के बृजेश उम्र 28 वर्ष, शिवदयाल उम्र 25 वर्ष पिता गजराज सिंह, राजबहोर उम्र 30 वर्ष पिता पारस सिंह, धर्मेंद्र सिंह उम्र 26 वर्ष पिता गेंतराज सिंह, दीपक उम्र 25 वर्ष पिता अशोक सिंह, धन सिंह उम्र 30 वर्ष पिता गणपत सिंह, बृजेश उम्र 32 वर्ष पिता भैयादीन, निर्वेश उम्र 20 वर्ष पिता रामनिरंजन, रावेंद्र उम्र 18 वर्ष पिता रामनिरंजन तथा ग्राम बैरिहा के संतोष सेन उम्र 27 वर्ष पिता राम निहोर सेन एवं सुरेश कोल पिता मलाई कोल उम्र 30 वर्ष ग्राम शहर गढ़ शामिल थे.
सभी मजदूर बहुत ही गरीब परिवार के हैं, इन्होंने तब के जयसिंहनगर एसडीएम को मृत्यु प्रमाण पत्र के लिए आवेदन भी दिया था लेकिन उन्होंने यह कहकर आवेदन खारिज कर दिया की मृत्यु प्रमाण पत्र वहीं से बनेगा जहां मृत्यु हुई है. अभी हाल में ही दोबारा सभी मजदूरों के परिजनों ने मिलकर मृत्यु प्रमाण पत्र पाने के लिए आवेदन दिया है.
मृतक मजदूर दीपक सिंह की पत्नी चंद्र वती का कहना है कि मृत्यु प्रमाण पत्र ना होने की वजह से उन्हें विधवा पेंशन का लाभ नहीं मिल रही है.बैंक के काम नहीं हो पा रहे.
हादसे में जान गंवाने वाले मजदूर राज बहार की पत्नी सुनीता सिंह ने भी बताया कि मृत्यु प्रमाण पत्र ना होने के कारण विधवा पेंशन नहीं मिल रही है. मृतक मजदूर बृजेश की पत्नी पार्वती सिंह का कहना है कि मृत्यु प्रमाण पत्र ना होने के कारण बैंक के काम नहीं हो पा रहे हैं और ना ही विधवा पेंशन उसे मिल पा रही है.
रेल दुर्घटना में अपने दोनों बेटों बृजेश एवं शिवदयाल को खोने वाले गजराज सिंह ने बताया कि बैंक वाले कहते हैं कि मृत्यु प्रमाण पत्र लाओ तभी काम होगा.
इस मामले में शहडोल जिले के डिप्टी कलेक्टर दिलीप पांडे का कहना है कि 'मृत्यु प्रमाण पत्र वहीं से जारी होते हैं जहां किसी की मृत्यु होती है. इन सभी मजदूरों की मौत औरंगाबाद जिले में हुई थी. वहां के प्रशासन को पत्र लिखा गया है. शहडोल कलेक्टर द्वारा औरंगाबाद कलेक्टर से मृत्यु प्रमाण पत्र के लिए चर्चा भी की गई है. दोबारा फिर से मित्र प्रमाण पत्र के लिए औरंगाबाद कलेक्टर को पत्र भेजा गया है'.
(शहडोल से रवींद्र गिल के इनपुट के साथ)
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