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राजनीतिक रूप से संवेदनशील अयोध्या के राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद जमीन विवाद मामले में हिंदू पक्ष ने मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट की पांच सदस्यीय पीठ से 'ऐतिहासिक गलती' को सुधारने का आग्रह किया.
रामलला विराजमान की तरफ से पेश होते हुए वरिष्ठ वकील के.परासरन ने पीठ के समक्ष कहा, "एक विदेशी विजेता भारत आकर यह नहीं कह सकता कि मैं सम्राट बाबर हूं और मैं ही कानून हूं..हिंदुओं का ऐसा कोई उदाहरण नहीं जो अपने क्षेत्र से विजेता बनने के लिए बाहर गया हो, हालांकि हमारे पास शक्तिशाली शासक थे. यह सुनवाई में बहुत ही महत्वपूर्ण पहलू है."
उन्होंने फिर से जोर देते हुए कहा कि मुस्लिम कहीं भी नामज अदा कर सकते हैं, क्योंकि अयोध्या में 55 से 60 मस्जिदें हैं. लेकिन हिंदुओं के लिए यह भगवान राम का जन्मस्थान है और कोई समुदाय इसे बदल नहीं सकता.
6 अगस्त, मंगलवार को सुनवाई के पहले दिन हिंदू पक्षकार ने दावा किया कि 1934 से इस विवादित ढांचे में किसी भी मुस्लिम को प्रवेश की इजाजत नहीं थी और यह पूरी तरह से निर्मोही अखाड़े के अधिकार में था.
निर्मोही अखाड़े ने कहा कि विवादित जमीन पर 1934 से 1949 तक उसका ‘अनन्य’ कब्जा था और मुस्लिमों को सिर्फ जुमे की नमाज अदा करने की इजाजत दी गई, वह भी पुलिस सुरक्षा के तहत.
7 अगस्त, बुधवार को सुनवाई के दूसरे दिन निर्मोही अखाड़े से संविधान पीठ ने कई सवाल पूछे. इस दौरान बेंच ने मूल दस्तावेद अखाड़ा के वकील से स्वामित्व के मूल दस्तावेज दिखाने की बात कही.
8 अगस्त, गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में पक्षकार ‘राम लला विराजमान’ से सवाल किया कि भूमि विवाद में ‘जन्म स्थान’ को पक्षकार कैसे बनाया जा सकता है
9 अगस्त, शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के चौथे दिन अयोध्या मामले में शामिल पक्षों में से एक राम लला विराजमान से पूछा कि क्या रघुवंश (भगवान राम के के वंशजों) में से कोई अभी भी अयोध्या में रह रहा है?
13 अगस्त, मंगलवार को कोर्ट ने पूछा, जमीन पर आपका हक मुस्लिम पक्षकार के साथ साझा है, तब एकाधिकार कैसे? रामलला विराजमान ने कहा, जमीन कुछ समय के लिए बोर्ड के पास जाने से वह मालिक नहीं हो जाता.
14 अगस्त, बुधवार को हिंदू पक्ष की ओर से वेद-पुराणों का हवाला दिया. रामलला विराजमान की तरफ से ऐतिहासिक किताबें, विदेशी यात्रियों के यात्रा वृतांतों और वेद और स्कंद पुराण की दलीलें कोर्ट में पेश की गईं.
16 अगस्त, शुक्रवार को सातवें दिन की सुनवाई के दौरान राम लला विराजमान की ओर से दलील दी गयी कि विवादित स्थल पर देवताओं की अनेक आकृतियां मिली हैं. ‘राम लला विराजमान’ की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता वैद्यनाथन ने ढांचे के भीतर देवताओं के तस्वीरों का एक एलबम भी पीठ को सौंपा और कहा कि मस्जिदों में इस तरह के चित्र नहीं होते हैं.
20 अगस्त, मंगलवार को सुनवाई के दौरान हाई कोर्ट के फैसले का जिक्र किया गया. रामलला विराजमान के वकील ने इलाहाबाद सीएस वैद्यनाथ मामले में हाई कोर्ट के फैसले का हवाला देते हुए कहा, जज ने खुद लिखा है कि भगवान राम का मंदिर ढहाकर मस्जिद बनाई गई.
21 अगस्त, बुधवार को रामलला के वकील ने सुप्रीम कोर्ट से कहा, कोई भी महज मस्जिद जैसा ढांचा खड़ा कर इस पर मालिकाना हक का दावा नहीं कर सकता. रामलला के वकील ने विवादित भूमि पर मुस्लिम पक्ष और निर्मोही अखाड़ा के दावे को खारिज किया
22 अगस्त, गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट में 10वें दिन की सुनवाई के दौरान मूल याचिकाकर्ताओं में से एक के वकील ने विवादित स्थल में पूजा करने का उसका अधिकार लागू किए जाने का अनुरोध किया.
23 अगस्त, शुक्रवार को निर्मोही अखाड़े की ओर से दलील रख रहे सुशील जैन ने कोर्ट से कहा कि वो विवादित जमीन पर मालिकाना हक का दावा नहीं कर रहे, सिर्फ पूजा-प्रबन्धन और कब्जे का अधिकार मांग रहे है. अयोध्या बहुत बड़ा है, पर प्रभु राम की तस्वीर सिर्फ रामजन्म भूमि में स्थापित की गई थी.
26 अगस्त, सोमवार को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान निर्मोही अखाड़े के वकील सुशील कुमार जैन ने दलीलें पेश कीं. उन्होंने कहा कि हम देव स्थान का प्रबंधन करते हैं और पूजा का अधिकार चाहते हैं.
27 अगस्त, मंगलवार को सुनवाई के दौरान निर्मोही अखाड़े ने कहा, 1855 से पहले यहां कभी नमाज नहीं पढ़ी गई. निर्मोही अखाड़े के वकील सुशील जैन ने कहा कि विवादित ढांचे में मुस्लिम ने 1934 के बाद से कभी नमाज नहीं पढ़ी है.
28 अगस्त, बुधवार को एक हिंदू संस्था ने सुप्रीम कोर्ट के समक्ष दावा किया कि मुगल बादशाह बाबर न तो अयोध्या गया था और और न ही विवादित राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद स्थल पर 1528 में मस्जिद बनाने के लिए मंदिर को ध्वस्त करने का आदेश दिया था.
29 अगस्त, गुरुवार को राम मंदिर पुनरोद्धार समिति के वकील पीएन मिश्रा ने संवैधानिक बेंच के सामने दलील पेश की. पीएन मिश्रा ने कहा कि मुस्लिम पक्षकार हाई कोर्ट में यह साबित नहीं कर पाए थे कि मस्जिद का निर्माण बाबर ने करवाया.
30 अगस्त, शुक्रवार को रामजन्म भूमि पुनरुत्थान समिति के वकील ने दलील पूरी की. हिंदू महासभा के वकील हरिशंकर जैन ने कोर्ट में कहा कि ये जगह शुरू से हिंदुओं के अधिकार में रही है. आजादी के बाद भी हमारे अधिकार भी सीमित क्यों रहें? क्योंकि 1528 से 1885 तक कहीं भी और कभी भी मुसलमानों का यहां कोई दावा नहीं था.
2 सितंबर, सोमवार को सुनवाई के 17वें दिन मुस्लिम पक्ष ने सुप्रीम कोर्ट से कहा कि हिंदुओं ने 1934 में बाबरी मस्जिद पर हमला किया, फिर 1949 में अवैध घुसपैठ की और 1992 में इसे तोड़ दिया और अब कह रहे हैं कि संबंधित जमीन पर उनके अधिकार की रक्षा की जानी चाहिए.
4 सितंबर, बुधवार को मुस्लिम पक्षकारों ने दावा किया कि 22-23 दिसंबर की रात अयोध्या में बाबरी मस्जिद के अंदर मूर्तियां रखने के लिए सुनियोजित और नजर बचा के हमला किया गया, जिसमें कुछ अधिकारियों की हिंदुओं के साथ मिलीभगत थी और उन्होंने प्रतिमाओं को हटाने से इनकार कर दिया.
5 सितंबर, गुरुवार को मुस्लिम पक्षकारों ने दलील दी कि लगातार नमाज ना पढ़ने और मूर्तियां रख देने से मस्जिद के अस्तित्व पर सवाल नहीं उठाए जा सकते. मुस्लिम पक्ष ने कहा कि यह सही है कि विवादित ढांचे का बाहरी अहाता शुरू से निर्मोही अखाड़े के कब्जे में रहा है. झगड़ा आंतरिक हिस्से को लेकर है जिस पर कब्जा किया गया.
6 सितंबर, शुक्रवार को मुस्लिम पक्ष के वकील राजीव धवन ने कहा कि निर्मोही अखाड़ा 1734 से अस्तित्व का दावा कर रहा है. लेकिन अखाड़ा 1885 में बाहरी आंगन में था और राम चबूतरा बाहरी आंगन में है, जिसे राम जन्मस्थल के रूप में जाना जाता है और मस्जिद को विवादित स्थल माना जाता है.
11 सितंबर, बुधवार को सुन्नी वक्फ बोर्ड के वकील राजीव धवन ने अपना पक्ष रखा. मुस्लिम पक्ष ने कहा- हिंदू पक्ष के पास जमीन का मालिकाना हक नहीं है. राजीव धवन ने दलील दी कि 22 दिसंबर 1949 को जो गलती हुई उसे जारी नहीं रखा जा सकता. क्या हिंदू पक्षकार गलती को लगातार जारी रखने के आधार पर अपने मालिकाना हक का दावा कर सकते हैं?
12 सितंबर, गुरुवार को मुस्लिम पक्ष के वकील राजीव धवन ने कहा कि उन्हें फेसबुक पर धमकी मिली है, लेकिन उन्हें फिलहाल सुरक्षा की कोई आवश्यकता नहीं है. सीजेआई बोले- ऐसे कृत्य नहीं होने चाहिए
13 सितंबर, शुक्रवार को सुनवाई के दौरान मुस्लिम पक्ष की तरफ से वरिष्ठ वकील जफरयाब जिलानी ने बहस शुरू की. उन्होंने कहा कि निर्मोही अखाड़े ने विवादित स्थल पर मस्जिद होने की बात मानी थी. 1885 और1949 में दायर अपनी याचिकाओं में उसने मस्जिद का जिक्र किया था.
16 सितंबर को मुस्लिम पक्षकार सुन्नी वक्फ बोर्ड की ओर से राजीव धवन ने कहा की हिंदू पक्षकारों ने पूरे इलाके पर दावा कर दिया है. मेरी दलील है कि जन्मस्थान कानूनी व्यक्ति नहीं है. दुर्भाग्य से हाई कोर्ट भी जन्मस्थान वाली दलील में कूद पड़ा था. यहां भी जन्मस्थान वाली दलील में सुप्रीम कोर्ट पड़ गया है. इस मामले में हिंदू पक्षकार (राम लला विराजमान) की तरफ से आस्था और विश्वास के साथ-साथ जन्मस्थान और जन्मभूमि को लेकर दलील दी गई है.
17 सितंबर को मुस्लिम पक्ष की तरफ से वकील राजीव धवन ने बहस की शुरुआत करते हुए विवादित स्थल से मिले खंभों पर पाए गए निशान का जिक्र करते हुए दलील दी कि सिर्फ इस वजह से यह साबित नहीं हो सकता कि वह इस्लामिक नहीं है. धवन ने कहा कि मस्जिदें केवल मुसलमानों द्वारा ही नहीं बनाई गई थीं. ताजमहल का निर्माण अकेले मुसलमानों ने नहीं किया था. इसमें मुस्लिम और हिंदू दोनों समुदाय के मजदूर शामिल थे.
18 सितंबर को सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि 18 अक्टूबर तक दलीलें पूरी करें ताकि जजों को फैसला लिखने के लिए 4 हफ्ते का वक्त मिले, इसके लिए सभी को मिलकर सहयोग करना चाहिए. कोर्ट ने कहा कि जरूरत पड़ी तो कोर्ट सुनवाई का वक्त एक घंटा बढ़ा सकती है, हम शनिवार को भी सुनवाई के लिए तैयार हैं.
19 सितंबर को मुस्लिम पक्ष के वकील राजीव धवन ने विवादित इमारत की मुख्य गुंबद के नीचे गर्भ गृह होने के दावे को बाद में गढ़ा गया बताया. इस पर जजों ने उनसे कुछ सवाल किए. धवन ने सवाल कर रहे जज के लहजे को आक्रामक बता दिया. हालांकि, बाद में उन्होंने अपने बयान के लिए माफी मांगी.
20 सितंबर को मुस्लिम पक्ष की तरफ से राजीव धवन ने कहा कि हिंदू पक्षकार तो गजेटियर का हवाला अपनी सुविधा के मुताबिक दे रहे हैं, लेकिन गजेटियर कई अलग-अलग समय पर अलग नजरिये से जारी हुए थे. लिहाजा, सीधे तौर पर यह नहीं कहा जा सकता कि बाबर ने मंदिर तोड़कर मस्जिद बनाई. धवन ने कहा कि 1992 में जानबूझकर मस्जिद गिराई गई थी.
23 सितंबर, सोमवार को मुस्लिम पक्ष के वकील धवन ने कहा कि पौने पांच सौ साल पहले 1528 में मस्जिद बनाई गई थी और 22 दिसंबर 1949 तक लगातार नमाज हुई. तब तक वहां अंदर कोई मूर्ति नहीं थी. एक बार मस्जिद हो गई तो हमेशा मस्जिद ही रहेगी.
24 सितंबर को मुस्लिम पक्ष के वकील जफरयाब जिलानी ने कहा कि रामचरित मानस की रचना मस्जिद बनने के करीब 70 साल बाद हुई लेकिन कहीं ये जिक्र नहीं कि राम जन्मस्थान वहां है, जहां मस्जिद है. यानी जन्मस्थान को लेकर हिंदुओं की आस्था भी बाद में बदल गई.
25 सितंबर, बुधवार को सुप्रीम कोर्ट में मुस्लिम पक्ष अपने उस बयान से पीछे हट गया कि अयोध्या के विवादित स्थल के बाहरी हिस्से में स्थित ‘‘राम चबूतरा’’ ही भगवान राम का जन्मस्थल है. साथ ही उसने भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) की उस रिपोर्ट पर चोट की, जिसमें संकेत दिया गया है कि यह ढांचा बाबरी मस्जिद से पहले स्थित था.
26 सितंबर, गुरुवार को मुस्लिम पक्षकारों ने भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) की 2003 की रिपोर्ट का सारांश लिखने वाले व्यक्ति को लेकर सवाल उठाये जाने के बाद पलटी मारी और इस मामले में सुप्रीम कोर्ट का समय बर्बाद करने के लिए माफी मांगी. ASI की रिपोर्ट में कहा गया था कि बाबरी मस्जिद के पहले वहां विशाल ढांचा मौजूद था.
27 सितंबर, शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद भूमि विवाद मामले की सुनवाई ‘‘तय कार्यक्रम के अनुसार’’ नहीं हो रही है.
मुस्लिम पक्षकार के वकील शेखर नाफडे ने कहा कि वहां मस्जिद थी और उस पर कोई विवाद नहीं हो सकता क्योंकि उस पर किसी दूसरे पक्ष का कोई पहले दावा नहीं था. मस्जिद की मौजूदगी को स्वीकारा जा चुका है और उसे साबित करने की जरूरत नहीं है. राम चबूतरे पर छोटी सी मंदिर थी. बाकी पूरा इलाका मस्जिद का था और उस पर दूसरे पक्षकार का दावा नहीं था.
1 अक्टूबर, सोमवार को रामलला के वकील परासरन ने दलील दी कि जन्म स्थान पर राम का जन्मदिन मनाया जाए. उन्होंने कहा कि रामजन्म भूमि को एक न्यायिक व्यक्ति के तौर पर देखा जाए. मुस्लिम पक्ष के वकील राजिव धवन ने कहा पहले ये साबित करें की वहां मंदिर था और लोग पूजा करते थे.
3 अक्टूबर, को हिंदू पक्ष की ओर से वकील सीएस वैद्यनाथन ने हाई कोर्ट के पूर्व आदेशों को दोहराते हुए अपनी बात रखी. उन्होंने कहा कि अयोध्या में ध्वस्त की गई बाबरी मस्जिद के नीचे विशाल संरचना की मौजूदगी के बारे में साक्ष्य संदेह से परे हैं और वहां खुदाई से निकले अवशेषों से यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि वहां मंदिर था.
4 अक्टूबर को सुप्रीम कोर्ट ने सभी पक्षों से कहा कि वो मामले की बहस 17 अक्टूबर तक पूरी करे लें. इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने सभी पक्षों को 18 अक्टूबर तक बहस पूरी करने के लिए कहा था.
14 अक्टूबर, सोमवार को इस मामले में 38वें दिन की सुनवाई हुई. इस दौरान मुस्लिम पक्षकारों ने आरोप लगाया कि इस मामले में हिन्दू पक्ष से नहीं, बल्कि सिर्फ उनसे ही सवाल किये जा रहे हैं.
15 अक्टूबर, मंगलवार को हिंदू पक्ष की ओर से पेश पूर्व अटॉर्नी जनरल और सीनियर एडवोकेट के परासरन ने कहा कि मुगल शासक बाबर ने खुद को कानून से ऊपर रखते हुए अयोध्या में राम की जन्मभूमि पर मस्जिद बनाकर ऐतिहासिक गलती की थी.
बता दें, अयोध्या विवाद मामले पर सुनवाई 17 अक्टूबर के बजाए 16 अक्टूबर को ही समाप्त होने की संभावना है. चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने इसके संकेत देते हुए कहा कि 70 साल पुराने विवाद पर बहस बुधवार को समाप्त हो जाएगी.
सुनवाई के आखिरी दिन प्रधान न्यायाधीश ने शुरुआती 45 मिनट हिंदू पक्ष को, और इसके बाद एक घंटा मुस्लिम पक्ष को आवंटित किया है. इसके बाद 45 मिनट के चार स्लॉट मामले में शामिल विभिन्न पक्षों के लिए निर्धारित किए गए हैं.
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