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बेबी पाटणकर ड्रग्स केस: पुलिस क्या सच में पाउडर नहीं पहचान पाई?

नाइटलाइफ के लिए मशहूर देश की आर्थिक राजधानी मुंबई का ड्रग्स के साथ बेहद पुराना कनेक्शन रहा है

रौनक कुकड़े
भारत
Published:
नाइटलाइफ के लिए मशहूर देश की आर्थिक राजधानी और मायानगरी मुंबई का ड्रग्स के साथ बेहद पुराना कनेक्शन रहा है
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नाइटलाइफ के लिए मशहूर देश की आर्थिक राजधानी और मायानगरी मुंबई का ड्रग्स के साथ बेहद पुराना कनेक्शन रहा है
(सांकेतिक फोटो: iStock)

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बेबी पाटणकर ड्रग्स केस में क्या वाकई में मुंबई क्राइम ब्रांच सबूतों को इकट्ठा करने में नाकाम रही? या मामले में शामिल पुलिस अधिकारियों के साथ-साथ अपने महकमे की इज्जत बचाने के लिए क्राइम ब्रांच ने जानबूझकर जांच में लापरवाही बरती?

साल 2015 में जब 100 किलो से ज्यादा ड्रग्स बरामद किए जाने का ये मामला पहली बार सामने आया तब इस केस ने मीडिया में खूब सुर्खियां बटोरीं. इतना ही नहीं, नशे के बाजार में ‘म्यांउ म्यांउ’ नाम से धूम मचा रहे मेफेड्रोन ड्रग की इतनी बड़ी खेप बरामद करने पर खुद मुंबई पुलिस ने अपनी ही पीठ थपथपाई थी.

इस मामले में पुलिस ने शशिकला उर्फ बेबी पाटणकर को गिरोह की सरगना बताते हुए गिरफ्तार किया था. मीडिया रिपोर्ट्स में ड्रग्स क्वीन नाम से प्रख्यात हुई बेबी पाटणकर की गिरफ्तारी के बाद क्राइम ब्रांच ने इस केस में एंटी नारकोटिक्स सेल से जुड़े तत्कालीन पुलिस अधिकारी सुहास गोखले समेत अन्य चार पुलिसकर्मियों को भी गिरफ्तार किया था.

मुंबई क्राइम ब्रांच क्या वाकई बरामद किए गए पाउडर को पहचान नहीं पाई?

पुलिस ने शुरूआती जांच में पुलिस कांस्टेबल धर्मराज कालोखे को बेबी पाटणकर का साथी बताया था, जिसके खंडाला स्थित घर से 112 किलो और मरीन ड्राइव पुलिस स्टेशन के उसके ड्रॉवर से 12 किलो, कुल मिलाकर 124 किलो ड्रग्स की बरामदगी दिखाई थी.

अदालत में दायर की गई चार्जशीट के मुताबिक, दो अलग-अलग लैब टेक्स्ट में ये पाया गया कि बरामद किया गया पाउडर मेफेड्रोन ड्रग नहीं बल्कि खाने में इस्तेमाल किया जाने वाला अजीनोमोटो नाम का पदार्थ था. क्राइम ब्रांच की यही सबसे बड़ी चूक शायद उसकी नाकामयाबी की सबसे बड़ी वजह बनी. लेकिन सवाल यहां ये खड़ा होता है कि पिछले कई दशको से अंडरवर्ल्ड और ड्रग्स के अनगिनत गंभीर मामले सुलझा चुकी मुंबई क्राइम ब्रांच क्या वाकई में बरामद किए गए पाउडर को पहचान नहीं पाई?

आमतौर पर किसी भी ड्रग्स को देखकर, सूंघकर और उसका स्वाद चखकर क्राइम ब्रांच के अधिकारी ड्रग्स की पहचान कर लेते हैं. ऐसे में सवाल उठता है कि इस मामले में बरामद किया गया ड्रग्स फॉरेंसिक लैब तक पहुंचते-पहुंचते पाउडर में कैसे बदल गया या फिर खुद क्राइम ब्रांच ने इस पाउडर को पहचानने में ही गलती कर दी?
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मायानगरी मुंबई और ड्रग्स का कनेक्शन

नाइटलाइफ के लिए मशहूर देश की आर्थिक राजधानी और मायानगरी मुंबई का ड्रग्स के साथ बेहद पुराना कनेक्शन रहा है. शहर में कई दशकों से क्राइम रिपोर्टिंग करने वाले वरिष्ठ पत्रकारों के मुताबिक अंडरवर्ल्ड के शुरुआती दिनों में हाजी मस्तान और दूसरे गैंगस्टर ने सोने की स्मगलिंग के साथ-साथ ड्रग्स की तस्करी भी शुरू कर दी थी. पिछले कुछ सालों में फरदीन खान जैसे अभिनेता भी ड्रग्स केस में आरोपी बने तो अभिनेता संजय दत्त ने भी ड्रग्स का उनकी जिंदगी पर असर खुद की बॉयोपिक में भी दिखाया है.

मुंबई में रेव पार्टियों में पार्टी ड्रग्स की डिमांड सबसे ज्यादा रही. आमतौर पर रईस घरानों के युवा इन पार्टी ड्रग्स के सबसे बड़े कस्टमर रहे. इन्हें एलएसडी एक्सटेसी जैसे पार्टी ड्रग्स की एक गोली 500 से लेकर 2000 रुपये में नशे के सौदागरों से आसानी से मिल जाती थी. लेकिन पिछले कुछ सालों में पुलिस की बड़ी कार्रवाई के बाद इन रेव पार्टी और साथ-साथ विदेशों से आने वाले इन पार्टी ड्रग्स की डिमांड में काफी कमी आई.

देश के युवाओं की नसों में जहर घोलने के लिए नशे के सौदागरों ने नया रास्ता अख्तियार किया और चरस, हीरोइन अफीम, गांजा जैसे ट्रेडिशनल ड्रग्स की जगह मैफेड्रीन जैसे केमिकल ड्रग्स ने ले ली. ये केमिकल ड्रग्स असल में कुछ अलग-अलग केमिकल का ऐसा फार्मूला है जो किसी भी बंद कमरे में आसानी से बनाया जा सकता है. सस्ता और ज्यादा नशीला होने के चलते पिछले कुछ सालों में इन केमिकल ड्रग्स का बाजार गर्म रहा है.

सूत्रों के मुताबिक, देश के पूरे ड्रग्स कारोबार का एक बड़ा हिस्सा अब भी अंडरवर्ल्ड डॉन दाऊद इब्राहिम की डी कंपनी के नियंत्रण में रहता है, जिसे दाऊद का भाई अनीस इब्राहिम और उसका खासम खास गुर्गा छोटा शकील संभालता है. ये पाकिस्तान में बने ड्रग्स को दुबई से समंदर के रास्ते गुजरात के तटीय इलाकों से होते हुए महाराष्ट्र तक पहुंचाते हैं या नेपाल और बांग्लादेश से लगी सीमा से तस्करी कर देश के अलग-अलग हिस्सों में पहुंचाते हैं. कुछ ड्रग्स भारत के इसी रास्ते से खाड़ी और अफ्रीकी देशों में भी पहुंचाया जाता है.

चाहे ट्रेडिशनल ड्रग्स हो या केमिकल ड्रग्स, इसे खरीदने वाले और बेचने वाले दोनों ही जांच एजेंसियों को चकमा देने के लिए खास कोडवर्ड्स का इस्तेमाल करते रहे हैं. ड्रग्स के मामलों पर नकेल कसने के लिए राज्यों में एंटी नारकोटिक्स सेल के अलावा केंद्रीय नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो भी सजग रहता है.

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