बकरीद: जानिए कुर्बानी का मकसद और उसकी पूरी कहानी

मुसलमान बकरीद क्यों मनाते है? क्या है इसके पीछे की कहानी?

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भारत
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ईद पर खुशियां मनाते बच्चे.
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ईद पर खुशियां मनाते बच्चे.
(फोटो: PTI)

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कुर्बानी, यकीन और एक-दूसरे के साथ मिल-बांटकर खाने का त्‍योहार ईद-उल-अजहा या बकरीद देशभर में 12 अगस्‍त को मनाया जाएगा. ईद-उल-फितर, मतलब ईद के बाद मुसलमानों के सबसे बड़े त्‍योहारों में से एक है बकरीद.

बकरीद के मौके पर मुसलमान नमाज के साथ-साथ चौपाया जानवरों की कुर्बानी देते हैं. कुर्बानी देने के बाद इसे तीन हिस्सों में बांटा जाता है. एक हिस्सा गरीबों में, दूसरा हिस्सा दोस्त और रिश्तेदारों में और तीसरा हिस्सा अपने पास रखा जाता है. लेकिन मुसलमान बकरीद क्यों मनाते है? क्या है इसके पीछे की कहानी?

आदित्य कौशल पुरानी दिल्ली के बाजार में (फोटो: The Quint/Abhay Sharma)

बकरीद पर क्यों दी जाती है कुर्बानी?

बता दें कि बकरीद का महीना इस्लामिक कैलेंडर का आखिरी महीना होता है. और इसी महीने की 10 तारीख को बकरीद मनाया जाता है. लेकिन इसकी कहानी इस्लमिक पैगम्बर इब्राहीम अलैहिस्सलाम के जमाने में शुरू हुई थी. इस्लाम में कई सारे पैगम्बर आये हैं. पैगम्बर मतलब अल्लाह का दूत या मैसेंजर. उन्हीं पैगंबरों में से एक हैं इब्राहिम अलैहिस्सलाम. इन्‍हीं की वजह से कुर्बानी देने की परंपरा शुरू हुई.

इस्लामिक इतिहास के मुअतबिक,

अल्‍लाह ने एक बार इनके ख्‍वाब में आकर इनसे इनकी सबसे प्‍यारी चीज कुर्बान करने को कहा. इब्राहिम अलैहिस्सलाम को अपनी इकलौती औलाद उनका बेटा सबसे ज्यादा प्यारा था. मगर अल्‍लाह के हुक्‍म के आगे वह अपनी सबसे करीबी चीज को कुर्बान करने को तैयार थे.
दिल्ली की जामा मस्जिद में ईद के मौके पर नमाज पढ़ते लोग(फोटो: PTI)

इब्राहिम अलैहिस्सलाम ने अपने दिल पर काबू किया और अपने बेटे को कुर्बान करने चल दिए. तभी रास्‍ते में उन्‍हें एक शैतान मिला जिसने उन्हें उनके फैसले पर दोबारा सोचने को कहा. शैतान उनसे कहने लगा कि भला इस उम्र में वह अपने बेटे को क्‍यों कुर्बान करने जा रहे हैं? शैतान की बात सुनकर वह सोच में पड़ गए. मगर कुछ देर बात उन्‍हें याद आया कि उन्‍होंने अल्‍लाह से वादा किया है.

इस्लामिक जानकारों की माने तो,

जब इब्राहिम अलैहिस्सलाम आगे बढ़ने लगे तो उन्हें लगा कि कुर्बानी देते वक्‍त कहीं उन्हें बेटे की मुहब्बत अल्लाह से दूर ना कर दे और वो अल्लाह की हुक्म से पीछे ना हट जाएं. ऐसे में उन्होंने इस भटकाव से बचने के लिए अपनी आंख पर पट्टी बांध ली. कुर्बानी देने के बाद जैसे ही उन्‍होंने आंख से पट्टी हटाई तो देखा कि उनके बेटे इस्माइल अलैहिस्सलाम जिंदा उनके सामने है. और उनकी जगह एक दुंबा या भेड़ है. इस तरह इस्लाम में बकरीद की शुरुआत हुई.
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इसी महीने में मुसलमान हज को भी जाते हैं. जानवरों की कुर्बानी हज का एक अहम हिस्सा भी है.

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Published: 20 Aug 2018,03:06 PM IST

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