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कुर्बानी, यकीन और एक-दूसरे के साथ मिल-बांटकर खाने का त्योहार ईद-उल-अजहा या बकरीद देशभर में 12 अगस्त को मनाया जाएगा. ईद-उल-फितर, मतलब ईद के बाद मुसलमानों के सबसे बड़े त्योहारों में से एक है बकरीद.
बकरीद के मौके पर मुसलमान नमाज के साथ-साथ चौपाया जानवरों की कुर्बानी देते हैं. कुर्बानी देने के बाद इसे तीन हिस्सों में बांटा जाता है. एक हिस्सा गरीबों में, दूसरा हिस्सा दोस्त और रिश्तेदारों में और तीसरा हिस्सा अपने पास रखा जाता है. लेकिन मुसलमान बकरीद क्यों मनाते है? क्या है इसके पीछे की कहानी?
बता दें कि बकरीद का महीना इस्लामिक कैलेंडर का आखिरी महीना होता है. और इसी महीने की 10 तारीख को बकरीद मनाया जाता है. लेकिन इसकी कहानी इस्लमिक पैगम्बर इब्राहीम अलैहिस्सलाम के जमाने में शुरू हुई थी. इस्लाम में कई सारे पैगम्बर आये हैं. पैगम्बर मतलब अल्लाह का दूत या मैसेंजर. उन्हीं पैगंबरों में से एक हैं इब्राहिम अलैहिस्सलाम. इन्हीं की वजह से कुर्बानी देने की परंपरा शुरू हुई.
इस्लामिक इतिहास के मुअतबिक,
इब्राहिम अलैहिस्सलाम ने अपने दिल पर काबू किया और अपने बेटे को कुर्बान करने चल दिए. तभी रास्ते में उन्हें एक शैतान मिला जिसने उन्हें उनके फैसले पर दोबारा सोचने को कहा. शैतान उनसे कहने लगा कि भला इस उम्र में वह अपने बेटे को क्यों कुर्बान करने जा रहे हैं? शैतान की बात सुनकर वह सोच में पड़ गए. मगर कुछ देर बात उन्हें याद आया कि उन्होंने अल्लाह से वादा किया है.
इस्लामिक जानकारों की माने तो,
इसी महीने में मुसलमान हज को भी जाते हैं. जानवरों की कुर्बानी हज का एक अहम हिस्सा भी है.
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