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मुंबई में 800-1000 अज्ञात लोगों के खिलाफ मामला दर्ज हुआ है. इन अज्ञात लोगों ने हुकूमत का हुक्म नहीं माना. चले आए बांद्रा स्टेशन पर अपने गांव जाने के लिए. इन लोगों ने लॉकडाउन तोड़ा. दूसरों की जिंदगी को खतरे में डाला. बहुत बड़ा गुनाह किया. लेकिन उन लोगों का क्या, जिन्होंने इनकी जिंदगी को खतरे में डाला है? क्या उन्हें कठघरे में खड़ा किया जाएगा? इस घटना पर महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने कहा है कि दोषियों को बख्शा नहीं जाएगा. लेकिन दोषी क्या सिर्फ ये मजदूर हैं?
उन नेताओं के खिलाफ कार्रवाई होगी क्या, जिन्होंने इन मजदूरों को बेसहारा छोड़ दिया है. महाराष्ट्र में सत्ताधारी कह रहे हैं कि मजदूर खाना नहीं मांग रहे, वो सिर्फ घर जाना चाहते हैं. सोचा है सालों से मुंबई में रहने वाले मजदूर कोरोना संक्रमण का डर रहते हुए भी और लॉकडाउन में कानूनी कार्रवाई होने का डर होते हुए भी गांव जाने का जोखिम क्यों उठाना चाहते हैं? कुछ को दाना-पानी दे भी देंगे तो बाकी चीजों का क्या? लॉकडाउन में उनकी रोजी छिन गई है.
मजदूर अपने गांव से सैकड़ों किलोमीटर दूर अपना घर-परिवार छोड़कर सिर्फ अपना पेट भरने के लिए शहर नहीं आता, उसके मेहनतकश हाथ यहां चलते हैं तो वहां गांव में उसके बच्चों को निवाला मिलता है. आप इन मजदूरों को खाना दे भी देंगे तो वहां गांव में उसका परिवार कौन चलाएगा? यहां आप राशन दे भी देंगे तो कमरे का किराया कौन देगा? लॉकडाउन-1 से लॉकडाउन-2 आ गया, लेकिन मजदूरों-कामगारों की इन चिंताओं का कोई जवाब नहीं आया. क्यों नहीं आपने इन मजदूरों के खाते में मदद के रूप में कुछ पैसे ट्रांसफर किए? क्या आप दोषी नहीं हैं?
बांद्रा स्टेशन पर जमा हुए अज्ञात लोगों के खिलाफ अवैध रूप से जमा होने, दंगा करने, सरकारी कारिंदे की ड्यूटी में खलल डालने और सरकारी आदेश न मानने की धाराओं में केस दर्ज हुआ है. सच ये है कि जिन्होंने आज इन मजदूरों की ये गत की है, वो सभी ज्ञात हैं.
महाराष्ट्र में बीजेपी के नेता किरिट सोमैया ने इस घटना पर पूछा है कि महाराष्ट्र का खुफिया विभाग क्या कर रहा था? आखिर कैसे इतने मजदूर स्टेशन पर जमा हो गए? अव्वल तो ये कि राज्य से ज्यादा मजबूत तो केंद्र का खुफिया तंत्र है, क्या उन्हें भी पता नहीं चला? हकीकत ये है कि इसको पता लगाने के लिए किसी खुफिया विभाग की जरूरत नहीं कि मुंबई ही नहीं, देश के तमाम महानगरों में फंसा मजदूर घर जाने को बेचैन है. वो क्यों बेचैन है? इसी में सारे सवालों के जवाब हैं. अगर इनकी बेचैनी को दूर नहीं किया गया तो शहर-शहर ऐसे अज्ञात लोग बाहर निकल सकते हैं, और देश में ऐसे ‘अज्ञात’ लोगों की तादाद 40-50 करोड़ है.
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