Home Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019News Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019India Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019बांद्रा में कोहराम: कुछ कीजिए नहीं तो शहर-शहर निकलेंगे ‘अज्ञात’

बांद्रा में कोहराम: कुछ कीजिए नहीं तो शहर-शहर निकलेंगे ‘अज्ञात’

मुंबई में बांद्रा स्टेशन पर जमा हुए लोग अज्ञात, लेकिन दोषी तो ज्ञात हैं

संतोष कुमार
भारत
Updated:
बांद्रा स्टेशन पर लाठीचार्ज के बाद गिरते-पड़ते भागे मजदूर, पीछे रह गईं उनकी चप्पलें
i
बांद्रा स्टेशन पर लाठीचार्ज के बाद गिरते-पड़ते भागे मजदूर, पीछे रह गईं उनकी चप्पलें
(फोटो: PTI)

advertisement

मुंबई में 800-1000 अज्ञात लोगों के खिलाफ मामला दर्ज हुआ है. इन अज्ञात लोगों ने हुकूमत का हुक्म नहीं माना. चले आए बांद्रा स्टेशन पर अपने गांव जाने के लिए. इन लोगों ने लॉकडाउन तोड़ा. दूसरों की जिंदगी को खतरे में डाला. बहुत बड़ा गुनाह किया. लेकिन उन लोगों का क्या, जिन्होंने इनकी जिंदगी को खतरे में डाला है? क्या उन्हें कठघरे में खड़ा किया जाएगा? इस घटना पर महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने  कहा है कि दोषियों को बख्शा नहीं जाएगा. लेकिन दोषी क्या सिर्फ ये मजदूर हैं?

14 अप्रैल को मुंबई के बांद्रा स्टेशन पर हजारों प्रवासी मजदूर जमा हुए. ये लोग अपने गांव वापस लौटना चाहते थे. लॉकडाउन टूटा, सोशल डिस्टेंसिंग की धज्जियां उड़ीं. पुलिस ने लाठीचार्ज किया, फिर भीड़ भागी.

क्या सिर्फ ये अज्ञात मजदूर ही दोषी हैं?

  • क्या वो रेलवे दोषी नहीं है, जिसने 15 अप्रैल से 3 मई के बीच चलने वाली ट्रेनों के लिए 39 लाख टिकट बुक कर लिए. जब एक के बाद राज्य ऐलान कर रहे थे कि लॉकडाउन बढ़ाया जाएगा. जब एक के बाद एक एक्सपर्ट कह रहे थे कि इतना लॉकडाउन कोरोना को रोकने के लिए काफी नहीं है, तो रेलवे ने क्यों एडवांस में टिकट बुक होने दिए? अगर उम्मीद थी कि 14 अप्रैल के बाद लॉकडाउन खत्म हो जाएगा, तब भी ऐहतियातन यात्रियों को क्यों नहीं सूचित किया कि ट्रेन का चलना इसपर निर्भर करता है कि 14 अप्रैल को सरकार लॉकडाउन पर क्या फैसला करती है?
  • हजारों मजदूर बांद्रा वेस्ट में जमा हुए, जबकि बाहर की ट्रेन चलती हैं बांद्रा ईस्ट से. तो इनसे किसने कहा कि ट्रेन वेस्ट से चलेगी. क्या पुलिस उस शख्स को खोजेगी जिसने ये खबर फैलाई?
महाराष्ट्र सरकार में मंत्री और एनसीपी नेता नवाब मलिक ने कहा है कि ट्रेन शुरू होने का एक मैसेज सर्कुलेट होने के बाद मजदूर बांद्रा स्टेशन पर जमा हुए. महाराष्ट्र के गृहमंत्री अनिल देशमुख ने कहा है कि - अफवाह किसने फैलाई, ये पता लगाने के लिए जांच बिठा दी है.
ADVERTISEMENT
ADVERTISEMENT

अपीलों से पेट नहीं भरता साहब

उन नेताओं के खिलाफ कार्रवाई होगी क्या, जिन्होंने इन मजदूरों को बेसहारा छोड़ दिया है. महाराष्ट्र में सत्ताधारी कह रहे हैं कि मजदूर खाना नहीं मांग रहे, वो सिर्फ घर जाना चाहते हैं. सोचा है सालों से मुंबई में रहने वाले मजदूर कोरोना संक्रमण का डर रहते हुए भी और लॉकडाउन में कानूनी कार्रवाई होने का डर होते हुए भी गांव जाने का जोखिम क्यों उठाना चाहते हैं? कुछ को दाना-पानी दे भी देंगे तो बाकी चीजों का क्या? लॉकडाउन में उनकी रोजी छिन गई है.

जो नेता बांद्रा में हुई घटना के पीछे सियासी साजिश का एंगल ढूंढ रहे हैं उन्हें याद रखना चाहिए कि जिस दिन बांद्रा में ये सब हो रहा था, उसी दिन ठाणे में भी सड़कों पर हजारों मजदूर निकल आए थे. उन्हें सूरत का वो मंजर भी याद रखना चाहिए, जिसमें मजदूर अपने गांव जाने के लिए सड़कों पर निकल आए थे, प्रदर्शन कर रहे थे. इससे पहले लॉकडाउन-1.0 का ऐलान होते ही लाखों मजदूरों को पैदल घर जाते हम देख चुके हैं. मजदूरों की तकलीफ एक तरफ, दूसरी तरफ लॉकडाउन का मकसद फेल. जिम्मेदार कौन?

मजदूर अपने गांव से सैकड़ों किलोमीटर दूर अपना घर-परिवार छोड़कर सिर्फ अपना पेट भरने के लिए शहर नहीं आता, उसके मेहनतकश हाथ यहां चलते हैं तो वहां गांव में उसके बच्चों को निवाला मिलता है. आप इन मजदूरों को खाना दे भी देंगे तो वहां गांव में उसका परिवार कौन चलाएगा? यहां आप राशन दे भी देंगे तो कमरे का किराया कौन देगा? लॉकडाउन-1 से लॉकडाउन-2 आ गया, लेकिन मजदूरों-कामगारों की इन चिंताओं का कोई जवाब नहीं आया. क्यों नहीं आपने इन मजदूरों के खाते में मदद के रूप में कुछ पैसे ट्रांसफर किए? क्या आप दोषी नहीं हैं?

14 अप्रैल को मुंबई के बांद्रा स्टेशन पर गांव लौटने की उम्मीद में जमा हुए मजदूर(फोटो: PTI)

कुछ कीजिए नहीं तो शहर-शहर निकलेंगे ऐसे अज्ञात

बांद्रा स्टेशन पर जमा हुए अज्ञात लोगों के खिलाफ अवैध रूप से जमा होने, दंगा करने, सरकारी कारिंदे की ड्यूटी में खलल डालने और सरकारी आदेश न मानने की धाराओं में केस दर्ज हुआ है. सच ये है कि जिन्होंने आज इन मजदूरों की ये गत की है, वो सभी ज्ञात हैं.

केंद्र इनकी मदद करने के बजाय, इनकी तकलीफों पर सिर्फ मदद की अपील से मरहम लगाना चाहता है. राज्य सरकार, केंद्र से इन्हें गांव भेजने की अपील कर, इनसे छुटकारा पाना चाहती है. हमारे  नेताओं के लिए ये लोग अज्ञात थे, अज्ञात हैं.

महाराष्ट्र में बीजेपी के नेता किरिट सोमैया ने इस घटना पर पूछा है कि महाराष्ट्र का खुफिया विभाग क्या कर रहा था? आखिर कैसे इतने मजदूर स्टेशन पर जमा हो गए? अव्वल तो ये कि राज्य से ज्यादा मजबूत तो केंद्र का खुफिया तंत्र है, क्या उन्हें भी पता नहीं चला? हकीकत ये है कि इसको पता लगाने के लिए किसी खुफिया विभाग की जरूरत नहीं कि मुंबई ही नहीं, देश के तमाम महानगरों में फंसा मजदूर घर जाने को बेचैन है. वो क्यों बेचैन है? इसी में सारे सवालों के जवाब हैं. अगर इनकी बेचैनी को दूर नहीं किया गया तो शहर-शहर ऐसे अज्ञात लोग बाहर निकल सकते हैं, और देश में ऐसे ‘अज्ञात’ लोगों की तादाद 40-50 करोड़ है.

(हैलो दोस्तों! हमारे Telegram चैनल से जुड़े रहिए यहां)

Published: 14 Apr 2020,12:08 AM IST

Read More
ADVERTISEMENT
SCROLL FOR NEXT