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बैंक लॉकर से सामान हुआ गायब तो बैंक की कोई जिम्मेदारी नहीं:आरबीआई

लेकिन लंबे समय से बंद लॉकर को तोड़ने का बैंक को पूरा अधिकार है

द क्विंट
भारत
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अगर बैंक लॉकर से आपका कोई कीमती सामान गायब हो जाए तो इसकी जिम्मेदारी बैंक की नहीं होगी
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अगर बैंक लॉकर से आपका कोई कीमती सामान गायब हो जाए तो इसकी जिम्मेदारी बैंक की नहीं होगी
(फोटो:iStock)

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अगर बैंक लॉकर से आपका कोई कीमती सामान गायब हो जाए तो इसकी जिम्मेदारी बैंक की नहीं होगी. एक आरटीआई आवेदन के जवाब में भारतीय रिजर्व बैंक और 19 सार्वजनिक बैंकों ने ग्राहकों का सामान सुरक्षित रखने की अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ लिया है.

आरबीआई ने आरटीआई के जवाब में साफ कहा है कि उसने बैंकों के लॉकर को लेकर ग्राहकों को होने वाले नुकसान की भरपाई के संदर्भ में कोई निर्देश या सलाह जारी नहीं की है. यही नहीं आरटीआई के जवाब में सभी सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों ने भी कोई भी जिम्मेदारी लेने से साफ मना कर दिया है.

आरटीआई दाखिल करने वाले वकील कुश कालराने ने अब भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग को इस मामले में शिकायत भेजी है.

इस लिस्ट में बैंक ऑफ इंडिया, ओरिएंटल बैंक ऑफ कॉमर्स, पंजाब नेशनल बैंक, यूको और केनरा बैंक समेत 19 बैंक शामिल हैं

आरबीआई ने कहा है कि बैंकों और ग्राहकों के बीच मकान मालिक और किरायेदार जैसा संबंध है. ऐसे समझौते के तहत किरायेदारों पर अपने सामान को सुरक्षित रखने की जिम्मेदारी बनती है.

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कोई कानूनी कार्रवाई नहीं

कुछ बैंक ने लॉकर को लेकर ग्राहकों के साथ अपने एग्रीमेंट में ही साफ कर दिया है कि लॉकर में रखा कोई भी सामान ग्राहक की खुद की रिस्क पर ही रहेगा और उसकी जिम्मेदारी संबंधित ग्राहक की ही होगी. बैंक किसी भी तरह के युद्ध, अराजकता, चोरी, लूट आदि में लॉकर में रखे किसी भी सामान को हुए नुकसान के लिए जिम्मेदार नहीं होगा और इसके विरुद्ध कानूनी कार्रवाई भी नहीं की जा सकेगी.

लंबे समय से बंद लॉकर को तोड़ने का बैंक को पूरा अधिकार

बैंक को यह अधिकार होता है कि लंबे वक्त तक इस्तेमाल न किए जाने पर लॉकर नियमों के अनुसार गवाहों की मौजूदगी में तोड़ा जा सके. आरबीआई के नियमानुसार लॉकर में क्या है इसके बारे में बैंक भी नहीं जानते ऐसे में भरपाई का कोई तरीका नहीं है.

हालांकि कुछ मामलों में ग्राहकों को कोर्ट से राहत जरूर मिली है. लेकिन इसके लिए ग्राहक को लॉकर में रखे सामान का सबूत और बैंक की लापरवाही को साबित करना होता है. इसके बाद ही खाताधारक को बैंक हर्जाने स्वरूप अपने इंश्योरेंस में मिली राशि में से हर्जाना देता है.

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