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‘सुप्रीम विवाद’ के बाद वकील गुटों के राजनीतिक झुकाव आए सामने

सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन के विकास सिंह ने प्रशांत भूषण की चिट्ठी पर दागी जवाबी चिट्ठी

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भारत
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‘सुप्रीम विवाद’ ने बार काउंसिलों की राजनीति भी सामने ला दी है
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‘सुप्रीम विवाद’ ने बार काउंसिलों की राजनीति भी सामने ला दी है
(फोटो: Altered by The Quint)

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सुप्रीम कोर्ट में चार जजों की बगावत के बाद बार एसोसिएशन और काउंसिल कई हिस्सों में बंट गए हैं. इस ऐतिहासिक घटना ने ऐसे संगठनों की राजनीतिक विचारधारा को भी खुलकर सामने ला दिया है, जो अब तक कुछ दबी-ढकी दिखती थी. कहीं कोई बार एसोसिएशन सफाई देता दिख रहा है तो कहीं किसी एसोसिएशन के अध्यक्ष चीफ जस्टिस पर आरोप लगाने वाले जजों पर राय दे रहे हैं तो कहीं कोई बार काउंसिल अध्यक्ष कह रहा है कि सब कुछ ठीक हो चुका है.

चिट्ठी के जवाब में चिट्ठी

ताजा मामला है सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन के अध्यक्ष विकास सिंह का. उन्होंने चिट्ठी के जवाब में चिट्ठी लिखी है. पहली चिट्ठी सीनियर एडवोकेट प्रशांत भूषण ने सुप्रीम कोर्ट के पांच सबसे सीनियर जजों को लिखी जिसमें मेडिकल कॉलेज घोटाले को लेकर चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा पर आरोप लगाए गए हैं. ये पांच सबसे सीनियर जज हैं- जस्टिस चेलमेश्वर, जस्टिस रंजन गोगोई, जस्टिस कुरियन जोसेफ, जस्टिस मदन लोकूर और जस्टिस एके सीकरी.

इस चिट्ठी के जवाब में ही विकास सिंह ने इन्हीं पांच जजों को एक और चिट्ठी लिखी है. इसमें कहा गया है कि चीफ जस्टिस पर ऐसे आरोप लगाने के लिए प्रशांत भूषण पर आपराधिक अवमानना का मामला चलाया जाना चाहिए. सिंह ने लिखा है कि प्रशांत भूषण की शिकायती चिट्ठी में कई गलत तथ्य शामिल किए गए हैं.
SCBA के अध्यक्ष विकास सिंह ने प्रशांत भूषण की चिट्ठी के जवाब में लिखी चिट्ठी(फोटोः ANI)

दिखने लगे राजनीतिक धुरियां और धड़े

इससे पहले मनन मिश्रा बाकायदा ऐलान कर चुके हैं कि देश की सर्वोच्च अदालत में बीते दिनों जो कुछ हुआ है उसे सुलझा लिया गया है और गतिरोध पूरी तरह खत्म हो गया है. ये बात उन्होंने चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा से उनके आवास पर मुलाकात के बाद कही. जिस तरह से एक के बाद एक बार एसोसिएशन और काउंसिल के बयान आ रहे हैं उसके मायने समझने होंगे. दरअसल, सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन हो या बार काउंसिल ऑफ इंडिया या बार काउंसिल ऑफ दिल्ली. या फिर वकीलों का ऐसा ही कोई और संगठन.

ये काउंसिल या संगठन कोई संवैधानिक संस्थाएं नहीं है. ये स्वायत्त संस्थाओं और वकीलों के समूह के तौर पर काम करते हैं. जाहिर है, इन संगठनों से जब कोई वकील जुड़ता है तो वो अपनी एक राजनीतिक समझ और झुकाव भी साथ लेकर आता है. फिर इसी समूह में से कुछ लोग काउंसिल और एसोसिएशन के अहम पदों पर बैठने लगते हैं. और यहीं से ऐसे संगठनों में कई बार राजनीतिक रंग और झुकाव दिखाई देने लगता है.
सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस पर 4 जजों ने उठाए सवाल(फोटो: The Quint)
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क्या बार काउंसिल जैसे संगठनों के जरिए राजनीति की जा रही है?

बार काउंसिल ऑफ इंडिया, मनन मिश्रा, लोकसभा चुनाव 2014 से पहले बीजेपी में शामिल हुए. राजनाथ सिंह की मौजूदगी में उन्होंने बीजेपी का दामन थामा. उस समारोह में राजनाथ सिंह ने कहा भी था कि मनन मिश्रा, काउंसिल के अध्यक्ष हैं, जाहिर है वो वकीलों के बीच खासे लोकप्रिय होंगे. ये चुनावी मौसम में इशारा था खास वोट बैंक को मजबूत करने का.

मनन मिश्रा अकेले नहीं हैं. ताजा विवाद में जिस तरह से बार काउंसिल और एसोसिएशन से जुड़े लोग कूद रहे हैं, उसने इन संगठनों की राजनीतिक विचारधारा और झुकाव को भी काफी हद तक साफ किया है. आशंका तो इस बात की भी है कि राजनीतिक दल, इन समूहों के जरिए अपने-अपने दांव चल रहे हैं.

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