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"नौकरी- बच्चों का स्कूल सब छूटा", 2 साल बाद इंसाफ, फर्जी धर्मांतरण केस में पुलिस पर एक्शन

अभिषेक गुप्ता और कुंदन लाल पर साल 2022 में लोगों को ईसाई धर्म में परिवर्तित कराने का आरोप लगा था. बरेली की एक अदालत ने दोनों को दोषमुक्त करार दिया है.

आशुतोष कुमार सिंह
भारत
Updated:
<div class="paragraphs"><p>यूपी पुलिस और फर्जी धर्मांतरण का केस, 2 साल बाद अदालत का फैसला</p></div>
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यूपी पुलिस और फर्जी धर्मांतरण का केस, 2 साल बाद अदालत का फैसला

(फोटो - कामरान अख्तर)

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"बरेली में ऐसा माहौल नहीं रह गया था कि हम वहां रुक पाते. मॉब कब-क्या कर दे. हमारे लिए सबसे बड़ा सवाल था कि हम जिंदा बचें. नौकरी बाद में देखी जाती. एक रोटी खाकर हम सर्वाइव करने को तैयार थे."

यह कहना है 41 साल के अभिषेक गुप्ता का. अभिषेक गुप्ता और कुंदन लाल पर साल 2022 में लोगों को ईसाई धर्म में परिवर्तित कराने का आरोप लगा था. लेकिन अब यूपी के बरेली की एक अदालत ने दोनों को दोषमुक्त करार देते हुए, मामले में दोनों को झूठा फंसाने (‘Fake’ conversion case) के लिए पुलिसकर्मियों, शिकायतकर्ता और गवाहों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई का आदेश दिया है.

क्विंट हिंदी ने अभिषेक गुप्ता से बात की और जानने की कोशिश की कि कैसे एक दक्षिणपंथी समूह के सदस्य की शिकायत पर दर्ज FIR और उसपर यूपी पूलिस की लीपापोती भरी जांच ने उनकी जिंदगी बदल दी.

"नौकरी गई, 2 साल से सैलरी नहीं आई"

मामला 29 मई, 2022 का है, जब शिकायतकर्ता और कथित रूप से हिंदू जागरण मंच के जिला अध्यक्ष हिमांशु पटेल ने गोरखपुर के निवासी और रोहिलखंड मेडिकल कॉलेज के पूर्व कर्मचारी अभिषेक गुप्ता पर धर्मांतरण का आरोप लगाया था. हिमांशु पटेल ने दावा किया कि बरेली के बिचपुरी गांव में अभिषेक गुप्ता अपने आठ लोगों की टीम के साथ लोगों को ईसाई धर्म अपनाने के लिए लालच दे रहे थे.

पुलिस ने इसके अगले दिन यानी 30 मई 2022 को अभिषेक गुप्ता को नामजद बनाते हुए अन्य 8 लोगों के खिलाफ यूपी गैरकानूनी धर्म परिवर्तन प्रतिषेध अधिनियम, 2021 की धारा 3 और 5(1) के तहत मामला दर्ज किया. बाद में मामले में बिचपुरी गांव के रहने वाले निवासी कुंडल लाल को भी गिरफ्तार कर लिया गया.

मामले में दर्ज एफआईआर

अभिषेक गुप्ता उस दिन को याद करते हुए क्विंट हिंदी से कहते हैं, "पता नहीं उन्होंने (हिंमाशु पटेल) ऐसा क्यों किया. उसी दिन पहली बार मैंने उन्हें देखा."

अभिषेक 2007 से रोहिलखंड मेडिकल कॉलेज में एमआरआई और सीटी स्कैन टेक्नीशियन थे. साथ में वो वहां के बच्चों को भी पढ़ाते थे. लेकिन एफआईआर दर्ज होने के 24 घंटे के अंदर ही उन्हें नौकरी छोड़ने और अपना मकान खाली करने का आदेश मिल गया. उन्होंने बताया, "मुझे अगले ही दिन नौकरी छोड़ने को कहा गया और केस जीतने के बाद आने के लिए कहा गया."

अभिषेक गुप्ता की पत्नी भी उसी कॉलेज में कॉन्ट्रैक्ट पर पढ़ाती थीं लेकिन मामला शुरू होने के बाद दोनों को अपनी नौकरी छोड़कर गोरखपुर लौटना पड़ा. अभिषेक मूल रूप से गोरखपुर के ही हैं.

"मैं उसे (पत्नी) वहां अकेले नहीं छोड़ सकता था. बरेली में ऐसा माहौन नहीं बचा था कि हम वहां रुक पाते. जॉब से बड़ा सवाल सर्वाइवल का था. मॉब कब-क्या कर दे, नहीं पता. उस समय कुछ भी हो सकता था. मीडिया का असर होता है."
अभिषेक गुप्ता

अभिषेक गुप्ता बताते हैं कि उन्हें अदालत की सुनवाई के लिए हर महीने कई बार गोरखपुर से बरेली जाना पड़ता था. इस वजह से वो कोई दूसरी नौकरी भी नहीं ज्वाइन कर पाए.

"कई बार तारीख पर जाने के लिए महीने में 4 बार बरेली जाना होता था. इस वजह से कोई दूसरी नौकरी भी ज्वाइन नहीं कर सकता था. अगर दो दिन सैलरी देर से आती है तो परेशानी होती है, मेरे घर तो 2 साल से सैलरी नहीं आई. हम अपनी बचत खर्च कर रहे थे. बाकि दोस्तों और रिश्तेदारों ने सपोर्ट किया."
अभिषेक गुप्ता

"मेरे हर महीने कर्ज की EMI भरता था, मैं कहां से धर्म बदलने के लिए पैसे का लालच देता"

अभिषेक गुप्ता के दो बच्चे हैं जो मामला शुरू होने के वक्त केवल 7 और 5 साल के थे. उस समय वे बरेली के अच्छे नामी स्कूल में पढ़ते थे. लेकिन उन्हें भी अपने माता-पिता के साथ गोरखपुर लौटना पड़ा. अब दोनों गांव के स्कूल में पढ़ते हैं. अभिषेक कहते हैं, "गांव के स्कूलों का हाल सब जानते हैं. दोनों की पढ़ाई खराब हो गई. जो आधार मिलना चाहिए था वो नहीं मिला."

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अभिषेक बताते हैं कि उनपर आरोप लगाए गए कि वे 5 लाख रूपए और घर देकर लोगों का धर्मपरिवर्तन कराते हैं. "मीडिया ने खबर छापी तो किसी ने मेरा पक्ष नहीं छापा. अगर मैं दूसरों को घर दे रहा होता तो बरेली में खुद के लिए भी घर लिया होता. मैं 40 लोगों को 5-5 लाख रूपए कहां से देता, मेरे उपर तो खुद इतने लोन थे कि हर महीने 20-25 हजार EMI में जाते थे."

अभिषेक कीं पत्नि को गोरखपुर आने के 8 महीने बाद नौकरी मिली और घर वो ही चलाती हैं.

6 अक्टूबर 2022 को अभिषेक की गिरफ्तारी हुई और उन्हें 40 दिन बरेली जेल में गुजारने पड़ें. उन दिनों को याद करते हुए अभिषेक कहते हैं, "जो काम आपने नहीं किया, उसके लिए जेल जाने के बाद इंसान डिप्रेश तो होता ही है. उस समय माहौल ऐसा था कि लगता था कभी बाहर नहीं निकलूंगा. मैं कभी कचहरी जाना पसंद नहीं करता था और वहां मेरी वाइफ को भी बच्चों को लेकर चक्कर लगाने पड़ें. वो जेल में मुझसे मिलने के लिए सुबह 5 बजे से लाइन लगाती थी."

अभिषेक और कुंदन लाल दोनों की ओर से अदालत में वकील इमरान खान ने जिरह की है. उन्होंने क्विंट हिंदी को बताया कि कुंदन लाल फेरी लगाने का काम करते हैं. "वो गरीब आदमी है. फोन भी नहीं रखता. उसे तो पता भी नहीं था कि वो जेल क्यों जा रहा है."

अदालत ने फैसले में बताया कि खुद पुलिस ने नहीं रखा कानून का ध्यान 

अपर सत्र न्यायाधीश बरेली, ज्ञानेन्द्र त्रिपाठी की अदालत ने अपने फैसले में पुलिस को कड़ी फटकार लगाई और मामले को "सभ्य समाज के लिए चिंताजनक" बताया है. उन्होंने कहा कि कोई भी व्यक्ति "अपने निहित स्वार्थ को पूरा करने" के लिए एफआईआर दर्ज करके किसी अन्य के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही शुरू कर सकता है.

अदालत के अनुसार यूपी गैरकानूनी धर्म परिवर्तन प्रतिषेध अधिनियम, 2021 की धारा 4 के अनुसार केवल वही व्यक्ति इस कानून के तहत मामला दर्ज करा सकता है जिसके धर्म-परिवर्तन की कोशिश हुई हो या फिर उसके रक्त संबंध में किसी के साथ ऐसा हुआ हो. लेकिन इस मामले में न तो शिकायतकर्ता हिमांशु पटेल और न ही मामले के किसी गवाह के साथ ऐसा हुआ. इसलिए पुलिस को कानून के हिसाब से एफआईआर ही दर्ज नहीं करनी चाहिए थी. अदालत ने एफआईआर को ही शून्य घोषित कर दिया.

अदालत ने एफआईआर को ही शून्य घोषित कर दिया.

(फोटो- अदालत का फैसला)

अदालत ने यह भी गौर किया है कि पुलिस को मामले में शिकायतकर्ता की तहरीर 29 मई 2022 को मिली जबकि उसने केस एक दिन बाद, 30 मई 2022 को दर्ज किया था. इसकी वजह पूछने पर अदालत को अभियोजन पक्ष की ओर से कोई संतोषजनक जवाब नहीं दिया गया. अदालत ने इसे संदिग्ध माना है.

अदालत के अनुसार अभियोजन पक्ष की ओर से पेश 3 गवाहों ने गवाही दी की अभिषेक गुप्ता को 29 मार्च 2022 को ही गिरफ्तार/ हिरासत में ले लिया गया था जबकि मामले की केस डायरी में पुलिस ने दिखाया है कि उन्हें 7 अक्टूबर 2022 को गिरफ्तार किया गया. अदालत ने इसे भी संदिग्ध माना है.

अदालत ने गिरफ्तारी की तारीख को भी संदिग्ध माना है.

(फोटो- अदालत का फैसला)

इसके अलावा मौके से बाइबल की किताब मिली भी थी या नहीं, इसको लेकर भी अदालत ने सवाल उठाए हैं. क्योंकि पुलिस की ओर से पेश एक गवाह के अनुसार 8 बाइबल मिले थे वहीं दूसरे गवाह ने कहा था कि ऐसी 2 किताब मिलीं. एक गवाह ने कहा कि मौके से अभिषेक के पास से कोई बरामदगी नहीं मिल हुई थी.

अभिषेक के वकील इमरान खान ने क्विंट से बात करते हुए कहा, अगर बाइबिल अभिषेक के पास थी तो मौके पर ही पुलिस को सीज करनी चाहिए थी. लेकिन वो पुलिस को कथित रूप से 4 महीने बाद शिकायतकर्ता (हिमांशु) के दोस्त के पास से मिली. लेकिन यह कैसे सिद्ध होगा कि वो किताब अभिषेक की थी.

अदालत ने अपने फैसले में कहा है कि पुलिस अगर शिकायतकर्ता की ओर से मिली किताब को बरामद हुआ बताकर पेश करे तो यह अपने आप में आपत्तिजनक है. अदालत ने बाइबिल वाले 'सबूत' को भी संदिग्ध करार दिया.

आखिर में अदालत ने दोनों आरोपियों, अभिषेक गुप्ता और कुंदन लाल को दोषमुक्त करार देते हुए बरेली के एसपी को आदेश दिया है कि शिकायतकर्ता हिमांशु, गवाह अरविंद कुमार, देवेंद्र सिंह और रवींद्र कुमार, बिथरी चैनपुर के तत्कालीन थाना प्रभारी शितांशु शर्मा, विवेचक और आरोपपत्र अनुमोदन करने वाले सर्कल अधिकारी के खिलाफ कार्रवाई की जाए.

अब आगे क्या करेंगे, इस सवाल पर अभिषेक गुप्ता कहते हैं, "एक लंबा वक्त कोर्ट-कचहरी के चक्कर लगाते गुजर गए हैं. अब दिमाग को थोड़ा रिलैक्स करके सोचेंगे कि आगे क्या करना है."

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Published: 22 Aug 2024,09:05 PM IST

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