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कर्नाटक के बेंगलुरु से रूह कंपा देने वाली घटना सामने आई है. झारखंड की दो महिलाओं को बेंगलुरु में करीब सात महीने से बंधुआ मजदूर के रूप में बंधक बनाकर रखा गया. यही नहीं इनमें से एक के साथ बलात्कार जैसी शर्मनाक हरकत भी की गई. जब दोनों महिलाएं किसी तरह भागने में कामयाब हुईं तो उन्हें लॉकडाउन की बेड़ियों ने जकड़ लिया.
दरअसल, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कोरोना वायरस को देखते हुए 25 मार्च से देशभर में लॉकडाउन का ऐलान किया, इसी ऐलान से कुछ दिन पहले ये महिलाएं जहां बंधक थीं वहां से भाग निकलीं. किसी से मदद नहीं मिलने की वजह से दोनों महिलाओं को कुछ दिनों तक जंगल में रहना पड़ा. लेकिन यहां भी मुसीबतों ने पीछा नहीं छोड़ा. शरण देने के नाम पर एक शख्स तो मिला, लेकिन उसने भी महिलाओं के साथ छेड़छाड़ करने की कोशिश की.
दोनों महिलाएं बिना किसी मदद के एक महीने तक रही, जब तक की उनकी भाषा बोलने वाला व्यक्ति उन्हें नहीं मिला. उन्होंने अपने साथ हुई नाइंसाफी की पूरी कहानी बताई.
तीन लोग, जिसमें से दो ने उसके साथ बलात्कार किया और एक ने उसके साथ छेड़छाड़ करने की कोशिश की अब पुलिस हिरासत में हैं. लेकिन, सामाजिक कार्यकर्ता, जिन्होंने उनकी मदद की वे अभी भी लड़ रहे हैं. क्योंकि पुलिस या श्रम विभाग ने दूसरे बंधुआ मजदूरों को बचाने के लिए किसी तरह की छापेमारी अबतक नहीं की है.
5 मई को जब झारखंड के एक प्रवासी मजदूर निकोलस मुर्मू, कुंभलगोडु पुलिस स्टेशन के बाहर इन दो महिलाओं से मिले, तो उन्हें इस बात का अंदाजा नहीं था कि ये महिलाएं उन अपराधों की सच्चाई बताने वाली थी जो उन्हें सहना पड़ा था.
दो महिलाओं में से एक 20 साल की उम्र की हैं और एक दो बच्चे की मां. दोनों महिलाएं झारखंड के दुमका जिले की रहने वाली हैं. इन लोगों को डमरू नाम का एक शख्स दिल्ली लाया था. फिर दोनों महिलाओं को डमरू ने कुछ अज्ञात लोगों को सौंप दिया. ये लोग दोनों को अक्टूबर 2019 में बेंगलुरु ले आए.
महिलाएं वहां से भागने के बाद से सड़क पर थी. वे ट्रेन के टिकट के आवेदन के लिए कुंभलगोडु पुलिस स्टेशन पहुंची. जब वह आसपास मदद मांग रही थी तो इसी दौरान उन्हें मुर्मू मिला, जो उनकी भाषा बोलता था.
महिलाओं ने मुर्मू को बताया कि ठेकेदार ने उन्हें हर महीने 9 हजार रुपये सैलरी देने का वादा किया था. लेकिन 7 महीने काम करने के बाद भी उन्हें केवल 1,200 रुपये भुगतान किया गया. सैलरी नहीं मिलने और प्रताड़ना की वजह से दोनों महिलाएं अपने बच्चों के साथ फैक्ट्री से भाग निकलीं.
वहां से भागने के बाद जब उन्हें महसूस हुआ कि लॉकडाउन के दौरान उन्हें कोई मदद नहीं मिलेगी, वे कुंभलगोडु के जंगल में चली गईं. वहां जैसे तैसे भीख मांगकर कर गुजारा किया. जो भी मिला खा लिया. इसी दौरान ये एक आदमी उनकी मदद के लिए आगे आया, जिसने उनके साथ छेड़छाड़ की
द क्विंट के पास महिलाओं की एक एफआईआर कॉपी है, जिसमें उन्होंने उस व्यक्ति की पहचान एक निर्माण ठेकेदार असगर अली के रूप में की है. असगर ने उन महिलाओं को एक निर्माणाधीन इमारत में रहने के लिए जगह दी.
दोनों महिलाओं से मुलाकात के बाद, 5 मई को मुर्मू ने झारखंड में अपने कुछ परिचितों से मदद के लिए बात की. झारखंड के एक कार्यकर्ता ने उनकी कहानी के बारे में ट्वीट भी किया लेकिन शुरुआत में कहीं से कोई मदद नहीं मिली. लेकिन एक एनजीओ, स्ट्रैंड्ड वर्कर्स एक्शन नेटवर्क (स्वान) ने मामला उठाया और दोनों महिलाओं को बचाया.
एनजीओ ने मामले की सूचना पुलिस को दी और अली के खिलाफ एक एफआईआर दर्ज की गई. जांच के दौरान, उन्हें कारखाने में भी ले जाया गया. कारखाने में उनमें से 27 वर्षीय एक महिला ने पुलिस को बताया कि उन्होंने पहले भी भागने की कोशिश की थी, लेकिन वो पकड़ी गईं.
महिलाओं को कारखाने में वापस लाया गया और एक कमरे के अंदर बंद कर दिया गया. 27 वर्षीय महिला ने बताया कि उसके बाद, संजीव ने दो लोग संजय और किरण जो कारखाने में काम करते हैं, उन्हें बलात्कार करने के लिए कहा. महिला ने शिकायत में कहा कि उन लोगों ने दो दिनों में दो बार बलात्कार किया.
अब तक, पुलिस ने इस मामले में संजय, किरण और अली को गिरफ्तार किया है. संजय अब भी फरार है. एक्टिविस्ट के मुताबिक, इन तीनों को एससी/ एसटी एक्ट के तहत यौन उत्पीड़न के आरोप में गिरफ्तार किया गया है. हालांकि, बंधुआ मजदूरों का शोषण करने के लिए कारखाने के मालिक के खिलाफ कोई मामला दर्ज नहीं किया गया है.
एक्टिविस्ट मल्लीगे सिरीमाने, जिन्होंने दो महिलाओं को बचाने में मदद की, उन्होंने द क्विंट को बताया कि, हमने और पुलिस ने कारखाने के सैकड़ों मजदूरों का हाल जाना. लेकिन जिस दिन से महिलाओं ने रेप का खुलासा किया तो सारा ध्यान दो लोगों को गिरफ्तार करने की ओर केंद्रित हो गया. मेरे अनुरोध के बावजूद, अधिकारियों ने संस्थान पर छापेमारी नहीं की.
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