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आज है फ्रेंडशिप डे यानी एक दिन दोस्तों के नाम. फ्रेंडशिप डे के मौके पर हम आपको मिलवाते हैं देश के उन राजनेताओं से, जिनकी दोस्ती के चर्चे अक्सर सुर्खियों में रहते हैं.
वैसे कहते हैं कि राजनीति में न तो कोई किसी का टिकाऊ दोस्त होता है, न ही दुश्मन, यहां पलक झपकते ही रिश्ते बदल जाते हैं.
ऐसी ही कुछ हस्तियों से मिलिए, जिनकी दोस्ती और दुश्मनी के किस्से हम अक्सर सुनते रहते हैं.
अब दोस्तों की बात हो रही है, तो सबसे पहले बात करते हैं बिहार के सियासत की, जहां कुछ दिन पहले दो पुराने यारों की दोस्ती एक बार फिर टूट गई. जी हां, हम बात कर रहे हैं लालू-नीतीश की जोड़ी की, जो हाल ही में टूटी है.
इन दोनों के रिश्ते में आने वाले उतार-चढ़ाव किसी टीवी सीरियल के ट्विस्ट से कम नहीं हैं. इनकी दोस्ती-दुश्मनी पिछले 25 सालों से चलती आ रही है.
अब नीतीश कुमार की लालू प्रसाद से दोस्ती टूटी, तो फिर पीएम नरेंद्र मोदी से हाथ मिला लिया, जिससे 2013 में उन्होंने कुट्टी कर ली थी. अब भई राजनीति की यही तो खूबी है. यहां दुश्मनी भी ज्यादा दिनों नहीं टिकती और दोस्ती भी एक झटके में हो जाती है.
यूपी चुनाव में राजनीति के दो युवा नेताओं की दोस्ती की खूब चर्चा हुई. चुनाव से ठीक पहले अखिलेश यादव और राहुल गांधी की पार्टियों का गठबंधन तो हुआ ही, साथ ही दोनों की दोस्ती भी खूब दिखी, हालांकि इनका गठबंधन कोई कमाल नहीं दिखा पाया और यूपी में इन्हें हार का सामना करना पड़ा. लेकिन चुनाव हारने के बाद भी राहुल और अखिलेश की दोस्ती बरकरार है.
वैसे 2015 में नीतीश कुमार के शपथ समारोह में मंच पर लालू प्रसाद और अरविंद केजरीवाल गले क्या मिले, पूरे देश में इनकी चर्चा होने लगी. करप्शन पर लालू के खिलाफ बोलने वाले केजरीवाल को आलोचना भी झेलनी पड़ी. लेकिन मंच पर तो दोनों की दोस्ती साफ दिखी.
अमर सिंह और मुलायम सिंह यादव की दोस्ती बरसों पुरानी है. 1995 दोनों दोस्त बने और फिर बरसों तक दोनों ने दोस्ती निभाई, हालांकि दोनों के बीच मतभेद भी हुआ और अमर सिंह को पार्टी से निकाल भी दिया गया. लेकिन उसके बाद फिर एक बार मुलायम का अमर प्रेम जागा और उन्होंने दोबारा अमर सिंह से दोस्ती कर ली.
बीजेपी के तीन धरोहरों में दो- लालकृष्ण आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी की दोस्ती भी बरसों पुरानी है. बीजेपी को इस ऊंचाई तक पहुंचाने में दोनों का बराबर हाथ रहा है. अब दोनों नेता अपनी ही पार्टी में हाशिए पर हैं और दोनों की हालत आजकल एक जैसी ही है.
कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और मनमोहन सिंह का साथ भी दोस्ताना ही है. सोनिया ने जब प्रधानमंत्री का पद ठुकराया था, तो उन्होंने मनमोहन सिंह पर ही भरोसा जताया था.
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Published: 06 Aug 2017,10:15 AM IST