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कोरेगांव युद्ध के जश्न पर पुणे में हुई हिंसा की लपटे मुंबई तक पहुंच गई हैं. दलित समुदाय और मराठा समुदाय के बीच की झड़पों से मुंबई के कई इलाकों में तनाव हो गया है. प्रदर्शनकारियों ने मुंबई में कई जगह प्रदर्शन किया है और सड़कें जाम कर दी हैं.
ऐसा युद्ध जो 200 साल पहले हुआ, इसमें जीत भी अंग्रेजों की सेना की हुई. लेकिन इसके 200 साल पूरे होने पर जो जश्न हुआ उसमें पुणे के बाद मुंबई में भी कई इलाकों में हिंसा हुई है.
पुणे में भीमा-कोरेगांव की लड़ाई की इस 200वीं सालगिरह के दौरान हुई हिंसा में एक व्यक्ति की मौत हो गई. बता दें कि साल 1818 भीमा-कोरेगांव की लड़ाई में ईस्ट इंडिया कंपनी की सेना ने पेशवा की सेना को हराया था.
दलित नेता ब्रिटिश जीत का जश्न नहीं मनाते हैं. बल्कि उन सैनिकों की बहादुरी का जश्न मनाते हैं जो ईस्ट इंडिया कंपनी की ओर से लड़े थे. ये सारे सैनिक महार रेजीमेंट के सैनिक थे जो दलित समुदाय के थे. इन्होंने संख्या में बहुत ज्यादा बड़ी पेशवा की सेना को हरा दिया था.
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, दलित समुदाय के लोग इस दिन को शौर्य दिवस के तौर पर मनाने के लिए युद्ध स्मारक की ओर बढ़ रहे थे. इसी दौरान ग्रामीणों और शौर्य दिवस मनाने पहुंचे लोगों में भिड़ंत हो गई. इस दौरान दोनों ओर से जमकर पथराव, तोड़फोड़ और मारपीट हुई. इस हिंसा में एक शख्स की मौत हो गई. मृतक की पहचान पुणे से करीब 30 किलोमीटर दूर सानसवाड़ी के रहने वाले राहुल पटांगले के रूप में हुई है. शिकारपुर पुलिस ने हत्या का मामला दर्ज किया है.
दोनों पक्षों की ओर से हुए पथराव में करीब 40 गाड़ियां क्षतिग्रस्त हो गईं, जबकि 10 वाहनों को भीड़ ने पुणे-अहमदाबाद हाइवे पर आग के हवाले कर दिया.
मुख्यमंत्री फड़नवीस ने कहा है कि कोरेगांव हिंसा के मामले की न्यायिक जांच के लिए आयोग का गठन किया जाएगा. साथ ही युवक की मौत की सीआईडी जांच की जाएगी. इसके साथ ही पीड़ित को 10 लाख रुपये का मुआवजा दिया जाएगा.
भीमा कोरेगांव में भीड़ को नियंत्रित करने के लिए तैनात एक पुलिसकर्मी ने बताया, 'किसी बात पर स्मारक की ओर बढ़ रहे लोगों की स्थानीय लोगों से बहस हो गई. जिसके बाद पथराव शुरू हो गया, इस दौरान वाहनों और घरों को नुकसान पहुंचाया गया.'
पुलिस के मुताबिक, हिंसा के दौरान पुणे-अहमदाबाद हाइवे पर कुछ देर के लिए गाड़ियों की आवाजाही को रोक दिया गया था. बाद में शाम को हालात सामान्य होने के बाद ही गाड़ियों की आवाजाही शुरू की गई. पुलिस के मुताबिक, फिलहाल गांव में हालात काबू में हैं.
पुलिस ने बताया, 'एसआरपीएफ कंपनियों के अलावा गांव में भारी मात्रा में पुलिस बल तैनात किया गया है. ताकि किसी भी तरह की अप्रिय घटना से बचा जा सके.'
स्थानीय प्रशासन के मुताबिक, इलाके में मोबाइल फोन नेटवर्क को कुछ समय के लिये रोक दिया गया है ताकि भड़काऊ संदेशों को फैलाने से रोका जा सके.
एनसीपी चीफ शरद पवार ने इस घटना की निंदा की है. उन्होंने इस हिंसा के लिए सरकार पर सवाल उठाया. पवार ने कहा, 'जब 200वीं बरसी पर इतने ज्यादा लोगों के जमा होने की संभावना थी तो फिर इस कार्यक्रम के लिए सुरक्षा व्यवस्था के पुख्ता इंतजाम क्यों नहीं किए गए?'
पुलिस ने इंडियन एक्सप्रेस को बताया कि पिछले हफ्ते वधु बुडरुक गांव में हुई घटना इस हिंसा के पीछे की वजह हो सकती है.
यही वजह है कि मराठा समुदाय के लोगों ने बोर्ड के विरोध किया. पुलिस का कहना है कि हो सकता है कि हिंसा इसी वजह से भड़की हो.
केंद्रीय मंत्री रामदास अठावले ने कोरेगांव हिंसा के बाद दलितों को पुलिस प्रोटेक्शन मुहैया कराए जाने की मांग की है. उन्होंने कहा,
अठावले ने महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस से भीमा कोरेगांव में अतिरिक्त पुलिस फोर्स तैनात करने और दलित समुदाय के लोगों को प्रोटेक्शन देने की मांग की है. इसके अलावा अठावले ने इस मामले की जांच कराए जाने की भी मांग की है.
मुंबई के उपनगरीय इलाके से हिंसा की खबरें आई हैं. मुलुंड, चेंबूर, घाटकोपर और सायन में दलित समर्थकों ने दुकानें बंद कराई और रास्तों को जाम करने की कोशिश की. हालांकि पुलिस का कहना है कि कि हालात पूरी तरह नियंत्रण में है. सड़कों पर बड़ी संख्या में पुलिस बल मौजूद है.
स्थानीय दलित नेताओं ने हिंसा की इस घटना के खिलाफ पूरे महाराष्ट्र में आंदोलन की तैयारी कर ली है. भीमाकोरेगांव और औरंगाबाद से निकलकर यह आंदोलन महाराष्ट्र के दूसरे भागों में भी पहुंच सकता है. दलित नेता मंगलवार को केंद्रीय मंत्री रामदास अठावले से मुलाकात करेंगे.
कोरेगांव में आयोजित 200वीं बरसी में शामिल होने के लिए दलित नेता जिग्नेश मेवानी और रोहित वेमुला की मां राधिका वेमुला भी पहुंची थी.
भीमा कोरेगांव की लड़ाई 1 जनवरी 1818 को लड़ी गई थी. इस लड़ाई में ब्रिटिश आर्मी, जिसमें दलित महारों की काफी संख्या थी, ने पेशवाओं को हराया था.
कुछ दलित नेता इस लड़ाई को उस वक्त के स्थापित ऊंची जाति पर अपनी जीत मानते हैं. हालांकि, कुछ दक्षिणपंथी संगठन इसे ब्रिटिशों की जीत मानते हुए, इसका जश्न मनाने का विरोध करते हैं.
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