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एक्टिविस्ट स्टेन स्वामी का 5 जुलाई को निधन हो गया. NIA ने भीमा कोरेगांव मामले में ट्राइबल राइट्स एक्टिविस्ट स्वामी को गिरफ्तार किया था. 83 साल के स्वामी को रांची (झारखंड) के नामकुम के बगाईचा स्थित आवास से गिरफ्तार किया गया था.
स्वामी ने तब बयान जारी कर कहा था, ''मुझसे NIA ने पांच दिनों (27-30 जुलाई और 6 अगस्त) में कुल 15 घंटे पूछताछ की. मेरे समक्ष उन्होंने मेरे बायोडेटा और कुछ जानकारी के अलावा कई दस्तावेज और जानकारी रखी, जो कथित तौर पर मेरे कम्प्यूटर से मिली और कथित तौर पर माओवादियों के साथ मेरे जुड़ाव का खुलासा करते हैं. मैंने उन्हें स्पष्ट कहा कि ये ऐसे दस्तावेज और जानकारी चोरी से मेरे कम्प्यूटर में डाले गए हैं और इनसे मैं इंकार करता हूं.''
उन्होंने बयान में कहा था, ''NIA ने मुझे उनके मुंबई कार्यालय में हाजिर होने बोला. मैंने उन्हें सूचित किया कि मेरी समझ के परे है कि 15 घंटे पूछताछ करने के बाद भी मुझसे और पूछताछ करने की क्या जरूरत है , मेरी उम्र (83 वर्ष) है और देश में कोरोना महामारी को देखते मेरे लिए इतनी लंबी यात्रा संभव नहीं है...अगर NIA मुझसे और पूछताछ करना चाहती है, तो वो विडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए ऐसा कर सकती है.''
स्वामी ने कहा था कि जो उनके साथ हो रहा है वो कईयों के साथ हो रहा है, सामाजिक कार्यकर्ता, वकील, लेखक, पत्रकार, छात्र नेता, कवि, बुद्धिजीवी और अन्य जो आदिवासियों, दलितों और वंचितों के अधिकारों के लिए आवाज उठाते हैं और देश की मौजूदा सत्तारूढ़ ताकतों की विचारधाराओं से असहमति व्यक्त करते हैं, उन्हें कई तरीकों से परेशान किया जा रहा है.
विस्थापन विरोधी आंदोलन के संस्थापक सदस्यों में से एक फादर स्टेन स्वामी का जन्म तमिलनाडु में हुआ था. वैसे तो वह मूलतः एक पादरी थे लेकिन मामले के वक़्त वो चर्च में नहीं रहते थे. स्टेन स्वामी की शुरुआती पढ़ाई चेन्नई में हुई थी. बाद में वह फिलीपींस चले गए थे. पढ़ाई के सिलसिले में उन्होंने कई देशों की यात्राएं की थीं.
भारत आने के बाद उन्होंने इंडियन सोशल इंस्टीट्यूट बेंगलुरु के साथ काम किया, लेकिन लगभग 30 सालों से वह झारखंड में रहकर आदिवासियों-मूलवासियों के मसलों पर आवाज उठाते रहे. उन्होंने झारखंड की जेलों में विचाराधीन आदिवासी कैदियों के लिए स्पीडी ट्रायल के लिए रांची हाई कोर्ट में पीआइएल की थी.वह सुप्रीम कोर्ट द्वारा साल 2013 में दिए गए जजमेंट के तहत "जिसकी जमीन, उसका खनिज" का समर्थन करते थे.
बता दें कि पुणे पुलिस के मुताबिक, 31 दिसंबर 2017 को पुणे में यलगार परिषद की सभा के दौरान भड़काऊ भाषण दिए गए थे, जिसके चलते जिले में अगले दिन (एक जनवरी 2018) को भीमा-कोरेगांव युद्ध स्मारक पर जातीय हिंसा भड़क गई थी.
पुलिस ने दावा किया था कि सभा को माओवादियों का समर्थन हासिल था. इस मामले में सुधीर धवले, रोना विल्सन, सुरेंद्र गाडलिंग, महेश राउत, सोम सेन, अरुण परेरा समेत कई लोगों को गिरफ्तार किया गया था.
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