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एडिटर: पूर्णेंदू प्रीतम
मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में कोरोना वायरस का संकट गहराता जा रहा है. शहर में 5 मई तक कुल 16 मौतें हुई हैं, लेकिन सबसे चौंकाने वाली बात है कि इन 16 में से कम से कम 13 मौतें भोपाल गैस पीड़ितों की हुई हैं. भोपाल में आज से 36 साल पहले कोरोना महामारी से भी भयानक हादसा हुआ था, जिसे हम सब 1984 के भोपाल गैस हादसे के नाम से जानते हैं. ‘इसमें एक रासायनिक खाद बनाने वाले प्लांट से जहरीली गैस मिथाइल अइसो साइनाइट का रिसाव होने से हजारों लोगों की मौत हो गई थी और लाखों लोगों को इससे स्वास्थ्य संंबंधी बीमारियां हुई. भोपाल शहर में कोरोना वायरस महामारी का सबसे बुरा असर भी इन्हीं गैस पीड़ितों पर पड़ा है.
भोपाल में कोरोना वायरस की वजह से पहली मौत 55 साल के नरेश खटीक की हुई है. वो यूनियन कार्बाइड फैक्टी, जहां 1984 में गैस हादसा हुआ था वहां से सिर्फ 1.3 किमी. की दूरी पर रहते थे. 2 अप्रैल को इन्हें भोपाल के ही नर्मदा हॉस्पिटल में भर्ती कराया गया और 4 दिन बाद 6 अप्रैल को वो चल बसे. इनके परिवार वालों को इनके मेडिकल रिकॉर्ड्स नहीं दिए गए. इनकी मौत के बाद इनके परिवार के 12 सदस्यों की और 5 पड़ोसियों की कोरोना टेस्टिंग की गई. नरेश की टेस्ट रिपोर्ट भी परिवार वालों को 14 अप्रैल को जाकर मिली.
इसके बाद कोरोना से जान गंवाने वालों की तादाद बढ़ती चलगी गई.
कोरोना वायरस के संकट में गैस पीड़ितों को लेकर खास सावधानी बतरने की सारी सलाहों को मानना तो दूर इसके उलट प्रदेश सरकार ने 23 मार्च को गैस पीड़ितों के इलाज के लिए बने एकमात्र सुपर स्पेशलिटी अस्पताल भोपाल मेमोरियल हॉस्पिल और रिसर्च सेंटर (BMHRC) को सिर्फ कोविड-19 के इलाज के लिए आरक्षित कर दिया. इसके बाद गैस हादसे के पीड़ित मरीजों को यहां से निकाला जाने लगा. इलाज न मिलने की वजह से कुछ मरीजों की मौत भी हुई है. ये मामला सुप्रीम कोर्ट भी पहुंचा, सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हाई कोर्ट इसकी सुनवाई करेगा. हाईकोर्ट में सुनवाई से पहले सरकार ने फैसला वापस ले लिया.
भोपाल गैस हादसे के पीड़ित मोहम्मद औसाफ के पिता के पिता अश्फाक मिशादी नदवी की उम्र 75 साल थी. 11 अप्रैल को उनको अस्थमा का अटैक महसूस हुआ. फिर उनकी मौत हो गई. मौत के बाद उनका कोरोना वायरस टेस्ट किया गया जिसकी रिपोर्ट 13 अप्रैल को आई और उसमें उनको कोरोना पॉजिटिव बताया गया. इसके बाद उनके पूरे परिवार को इंस्टीट्यूनल क्वॉरंटीन में रखा गया. गांधी नगर में उनको जहां क्वॉरंटीन में रखा गया वहां उनको बेहद खराब व्यवस्थाएं मिलीं. क्वारंटीन सेंटर में 3 परिवारों को रखा गया था और सभी एक ही टैंकर में से पानी निकाला करते थे. सोशल डिस्टेंसिंग का कोई ख्याल ही नहीं रखा गया. सेनेटाइजर से लेकर साफ सफाई की बेसिक सुविधाएं नहीं थी. फिर वहां पर इन दिक्कतों की वजह से दूसरी जगह शिफ्ट किया गया.
भोपाल में कोरोना वायरस की वजह से तेरहवीं मौत जिस शख्स ही हुई है वो भी भोपाल गैस हादसे का पीड़ित रहा है. इनकी कहानी सुनकर आपको सरकार की संवेदनहीनता का एहसास होगा. 69 वर्ष के श्यामलाल मंगलवारा के निवासी थे और BMHRC के यूनिट 5 से अपनी शुगर और उक्त रक्तचाप की बीमारी का इलाज भी लेते थे. 19 अप्रैल को उनको चक्कर आए और वह कुर्सी से गिर गए. उन्हें गर्दन में चोट आई और उसके बाद से ही उनके हाथ पांव चलना बंद हो गए. उनके परिवारवाले उन्हें तुरंत हमीदिया अस्पताल ले गए, जहां उनका CT स्कैन-ब्रेन और एक्स-रे भी हुआ.
20अप्रैल की सुबह परिवारजन श्यामलाल जी को केयरवैल अस्पताल ले गए. 20-24 अप्रैल तक अस्पताल के ICU वार्ड में इलाज चला. 25 अप्रैल को मरीज को तेज बुखार आया, अस्पताल ने एक्स-रे किया और मरीज को करोना संक्रमित होने के संदेह पर हमीदिया रिफर कर दिया. 25 अप्रैल को 12 बजे परिवारजन मरीज को लेकर हमीदिया अस्पताल पहुंचे. परिवार को हॉस्पिटल में कई दिक्कतों का सामना करना पड़ा. 26 अप्रैल को शाम 4 बजे श्याम लाल ने आखिरी सांस ली. 27 अप्रैल को परिवाजनों को बताया गया की श्यामलाल जी कोविड पॉजिटिव पाए गए है.
अब थोड़ा पीछे चलते हैं. भोपाल गैस हादसे पीड़ितों पर काम करने वाले 4 संगठनों ने मार्च 21 को पत्र लिखकर केंद्र से राज्य तक के सरकारी महकमे से गुजारिश की कि कोरोना वायरस के संकट में भोपाल गैस पीड़ितों का खास ध्यान रखा जाए. वो कोरोना वायरस की घातक बीमारी का जल्दी शिकार हो सकते हैं. और बाद में हुआ भी वही.
कई सारी रिपोर्ट का हवाला देते हुए इन संगठनों ने सरकारी तंत्र को बताया था कि कोरोना वायरस के संक्रमण का सबसे आसान शिकार भोपाल गैस हादसे के पीड़ित हो सकते हैं. जिन लोगों में पहले से ही पल्मोनरी प्रॉब्लम्स, डायबिटीज, कैंसर या कमजोर इम्यूनिटी तंत्र है उनके कोरोना वायरस से संक्रमित होने की संभावना आम लोगों से ज्यादा है. वहीं भोपाल के जिला प्रशासन, स्वास्थ्य महकमे सभी को अंदाजा होगा कि भोपाल गैस हादसे के पीड़ितों को कोरोना वायरस के संक्रमण होने की संभावना ज्यादा है.
इन आंकड़ों से साफ था कि भोपाल में कोरोना वायरस की बीमारी का सबसे ज्यादा असर गैस हादसे के पीड़ित मरीजों पर हो सकता था. आम लोगों को मुकाबले कई इन गैस पीड़ितों के संक्रमित होने की संभावना कई गुना ज्यादा थी. इसलिए भोपाल के जिला प्रशासन से लेकर राज्य और केंद्र को भोपाल के इन गैस पीड़ितों को लेकर संवेदनशील हो जाना चाहिए था. लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ. गैस पीड़ितों के इलाज के लिए जो भोपाल में 5 हॉस्पिटल्स हैं. उनमें जागरुकता के लिए कुछ पोस्टर्स लगाए गए और ज्यादातर अस्पतालों में नमस्ते करने के लिए कहा गया. इसके अलावा वहां सरकार ने कोई खास व्यवस्था नहीं की.
भोपाल गैस हादसे के एक और पीड़ित रियाजुद्दीन की भी 17 अप्रैल को भोपाल के हमीदिया हॉस्पिटल में मौत हो गई. उनके परिवार वालों का कहना है कि उनकी कोरोना की रिपोर्ट अभी तक परिवारवालों को नहीं दी गई है. 17 अप्रैल को ही इनके परिवार के 6 लोगों का कोरोना टेस्ट कराया गया था उनकी भी रिपोर्ट अभी तक नहीं दी गई है. परिवार को क्वॉरंटीन में रखा गया है.
ऐसी कई सारी कहानियां है जिनमें आंकड़ों को रिपोर्ट करने में ढिलाई बरती गई है. रियाजुद्दीन के मामले में ही आंकड़ों को रिपोर्ट करने में देरी करने की बात सामने आई. रियाजुद्दीन की मौत 17 अप्रैल को हुई, वो कोरोना पॉजिटिव थे. उनको 17 और 18 तारीख को राज्य के हेल्थ बुलेटिन में शामिल नहीं किया गया.
भोपाल ग्रुप फॉर इंफॉर्मेशन एंड एक्शन की कार्यकर्ता रचना ढींगरा भोपाल गैस पीड़ितों के लिए काम करती हैं. सरकार को पहले से जगाने से लेकर अभी तक वे कोरोना वायरस के गैस पीड़ितों पर असर को करीब से देख रही हैं. वो बताती हैं-
मध्य प्रदेश के हेल्थ कमिश्नर फैज अहमद किदवई बताते हैं कि भोपाल में कोरोना वायरस के संक्रमण से जो अब तक मौतें हुई हैं उनमें से 5 लोग गैस हादसे के शिकार बताए जा रहे हैं. लेकिन संख्या अभी कन्फर्म नहीं है. मेरे पास मौत के आंकड़ों की जो लिस्ट है उसमें ये जानकारी नहीं है. लेकिन हम ये आंकड़े निकाल लेंगे. अभी जो भी कोरोना संक्रमित है हम उनका ध्यान रख रहे हैं. हम ये नहीं देख रहे कि कौन क्या है. हमने जिला प्रशासन को आदेश दिए हैं कि जो भी संक्रमित केस मिले उनको प्राथमिकता के आधार पर देखा जाए.
भोपाल मध्य प्रदेश में कोरोना वायरस का हॉट स्पॉट बना हुआ है. शहर में कोरोना वायरस से संक्रमण का सबसे ज्यादा खतरा भोपाल गैस हादसे के पीड़ितों को था, लेकिन सरकार ने उन पर विशेष ध्यान देना तो दूर उनके इलाज के लिए जो अस्पताल था BMHRC पहले उसमें से गैस हादसे के पीड़ितों को निकाल दिया और वो अस्पताल सिर्फ कोरोना के मरीजों के लिए संरक्षित कर दिया लेकिन बाद में सरकार ने अपना ये फैसला वापस ले लिया. इसके अलावा जिन लोगों की मौत हुई उनकी रिपोर्ट, उनके परिवार वालों की कोरोना जांच में लेटलतीफी, क्वॉरंटीन सेंटर की दुर्दशा हर तरफ सरकारी तंत्र पस्त नजर आता है.
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