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भोपाल गैस ट्रैजेडी: दिसंबर आते ही सिहर उठते हैं पीड़ित 

भोपाल के लोगों को आज भी 1984 के अंत का इंतजार कर रहे हैं 

क्विंट हिंदी
भारत
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दिसंबर का महीना आते ही भोपाल गैस ट्रैजडी के पीड़ित सिहर उठते हैं
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दिसंबर का महीना आते ही भोपाल गैस ट्रैजडी के पीड़ित सिहर उठते हैं
(फाइल फोटो:Reuters)

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हमीदा बी 55 साल की हैं, दिसंबर का महीना आते ही उन्हें घबराहट होने लगती है, उनके चेहरे पर उड़ रही हवाइयां साफ नजर आ जाती हैं. उनकी जुबान तक लड़खड़ा जाती है. ऐसा होना लाजिमी भी है, क्योंकि भोपाल में यूनियन कार्बाइड प्लान्ट से निकली जहरीली गैस मिथाइल आइसो सायनाइड (मिक) के असर ने उनके 40 से ज्यादा नाते-रिश्तेदारों को छीन लिया था.

हमीदा आज भी तीन दिसंबर की सुबह नहीं भूली हैं, उनकी आंखों में तब आंसू भर आते हैं, जब उन्हें याद आता है कि उन्होंने हमीदिया अस्पताल में एक कपड़े को हटाने की कोशिश की, जब उसे खोल कर देखा तो उसमें उनकी छह माह की नातिन का शव लिपटा हुआ था.

1984 में भोपाल शहर में हुआ  सबसे खौफनाक हादसा ( फोटो:क्विंट हिंदी )

हमीदा को जैसे ही दो-तीन दिसंबर की रात याद आती है, उनका गुस्सा यूनियन कार्बाइड और देश की सरकारों पर फूट पड़ता हैं और उस दौर का मंजर उनकी आंखों के सामने नाचने लगता है. वह कहती हैं

रात 12 बजे फिल्म का शो छूटा होगा, तभी ऐसा लगा कि किसी ने मिर्ची जलाई है. आंखों में जलन होने लगी, खांसी आई, किसी तरह सभी ने रजाई वगैरह ओढ़ कर रात निकाली. सुबह उठकर देखा तो हर तरफ मकानों के दरवाजे खुले थे और कोई नजर नहीं आ रहा था.
हवा और पानी में घुल गया था जहर ( फोटो:क्विंट हिंदी )

वह आगे बताती हैं कि उन्हें शौहर इस शर्त पर घर से बाहर लोगों को ढूंढ़ने ले गए कि बुर्का नहीं हटाओगी. उन्होंने बताया, "उनके कहने पर राजी हो गई, जहां से गुजरो हर तरफ लाशें बिखरी पड़ी थीं. पति ने गुस्से में आकर अपनी साइकिल ही फेंक दी, क्योंकि सड़क पर इसे चलाना मुश्किल था. हमीदिया अस्पताल में देखा कि लाशों को ट्रकों में भर-भर कर लाया जा रहा है. उन्हें ऐसे फेंक रहे थे, जैसे बोरियां हों.

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हमीदा बताती हैं कि गैस रिसाव के बाद बीमारी की जद में आए उनके परिवार के 40 से ज्यादा लोग दुनिया छोड़ चुके हैं. अब परिवार में न तो पति हैं, न सास-ससुर,. ननद-ननदोई, देवरानी-देवर, जेठ-जेठानी और परिवार के कई बच्चे साथ छोड़ गए हैं. जीवन अब सूना हो गया है, हाल यह है कि जिंदगी जिए जा रहे हैं.

लखेरापुरा में रहने वाली सालेहा रजा बताती हैं, "जब गैस रिसी थी तब वह 15 साल की थीं. पहले तो कुछ भी समझ में नहीं आया. ठंड का मौसम था, इसलिए लगा कि कहीं कुछ जला है, जिससे आंखों में जलन और खांसी हो रही है. बाद में पता चला कि गैस रिसाव हुआ है. सभी घबरा गए और सुरक्षित स्थानों की तरफ भागे.

अभिशाप बन गई गैस ट्रैजडी( फोटो:हिंदी क्विंट )

खिलानपुर में रहने वाले मोहम्मद जमील बताते हैं, "गैस रिसने की खबर मिलते ही लोगों में भगदड़ मच गई थी. जो जिस हाल में था, उसी हाल में सड़क पर भागे जा रहा था. कोई चड्ढी-बनियान में था तो कोई रजाई लिए भाग रहा था. महिलाएं बदहवास हुए अपने बच्चों का हाथ पकड़े किसी तरह जिंदगी बचाने की जद्दोजहद में थीं."

भोपाल के लोग आज भी इस हादसे से उबरने की कोशिश कर रहे हैं. ( फोटो:हिंदी क्विंट )

जमील बताते हैं कि उनके वालिद के पास ट्रक था, तो बड़ी संख्या में लोग ट्रक से रायसेन चले गए थे. इतना ही नहीं, बहुत से लोग भोपाल छोड़ गए थे. आज भी वह दिन याद आता है तो डर लगने लगता है.

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Published: 01 Dec 2017,08:46 PM IST

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