Home News India बिहार चुनाव: सर्वे में 57% चाहते हैं नीतीश जाएं, फिर जीत कैसे रहे?
बिहार चुनाव: सर्वे में 57% चाहते हैं नीतीश जाएं, फिर जीत कैसे रहे?
सर्वे में अनुमान लगाया गया कि NDA चुनाव में 141 से 161 सीटों के बीच जीत सकता है
आदित्य मेनन
भारत
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सर्वे में अनुमान लगाया गया कि NDA चुनाव में 141 से 161 सीटों के बीच जीत सकता है
(फोटो: कनिष्क दांगी/क्विंट हिंदी)
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पिछले हफ्ते सीवोटर ने बिहार विधानसभा चुनावों का पहला ओपिनियन पोल जारी किया. इसके नतीजों ने एक अजीब विरोधाभास पैदा किया है:
56.7 फीसदी लोगों ने कहा कि वो नीतीश से नाराज हैं और सरकार बदलना चाहते हैं. वहीं, 29.8 प्रतिशत लोगों का कहना था कि वो सरकार से नाराज तो हैं लेकिन उसे बदलना नहीं चाहते हैं. इसका मतलब है कि कुल 86.5 फीसदी लोग सरकार से नाराज हैं.
लेकिन इसके बावजूद सर्वे में अनुमान लगाया गया कि नीतीश कुमार के नेतृत्व वाला NDA गठबंधन चुनाव में 141 से 161 सीटों के बीच जीत सकता है और उसका वोट शेयर 44.8 फीसदी रह सकता है. ये RJD के नेतृत्व वाले UPA से 11.4 फीसदी ज्यादा है.
इतनी नाराजगी के बावजूद भी नीतीश कुमार का आगे होना कैसे समझा जा सकता है?
गुस्सा जीत में नहीं बदल रहा
और किसी परिस्थिति में 86.5 फीसदी लोगों का नाराज होना पदस्थ सीएम की भयानक हार में बदल जाता. लेकिन बिहार के मामले में परेशानी ये है कि लोगों का ये बड़ा धड़ा बंटा हुआ है.
29.8 प्रतिशत लोगों का कहना था कि वो सरकार से नाराज तो हैं लेकिन उसे बदलना नहीं चाहते हैं. ये बीजेपी और NDA की छोटी पार्टियों के वो वोटर हो सकते हैं, जिनके लिए नीतीश एक 'मजबूरी' हैं.
जो 56.7 फीसदी लोग नीतीश से नाराज हैं और सरकार बदलना चाहते हैं, उनमें से हर कोई नीतीश के मुख्य विरोधी RJD नेता तेजस्वी यादव से प्रभावित नहीं लगता है.
RJD के नेतृत्व वाले UPA गठबंधन का अनुमानित वोट शेयर 33.4 फीसदी है. अगर ये पूरा धड़ा भी कहता है कि वो नीतीश को हटाना चाहता है, तब भी 23.3 फीसदी ऐसे होंगे जो नीतीश को तो हटाना चाहते हैं लेकिन तेजस्वी से प्रभावित नहीं हैं. ये लेफ्ट, JAP और AIMIM जैसी छोटी पार्टियों के वोटर हो सकते हैं.
क्या इसका फायदा तेजस्वी यादव को मिल सकता है, वो उभर सकते हैं?
आरजेडी-कांग्रेस गठबंधन की सबसे बड़ी दिक्कत है तेजस्वी यादव की विश्वसनीयता में कमी. CVoter सर्वे में करीब 15 फीसदी जवाब देने वालों ने ही कहा कि वो तेजस्वी को बतौर मुख्यमंत्री देखना चाहते हैं. वहीं इसके करीब दोगुनी संख्या में लोगों ने नीतीश कुमार को चुनना चाहा, सर्वे में नीतीश का आंकड़ा 30.9 फीसदी है.
अब देखना ये है कि सर्वे में यूपीए के लिए अनुमानित वोट शेयर है वो है करीब 33 फीसदी. तेजस्वी को मुख्यमंत्री के तौर पर चुनने वाले 15 फीसदी लोगों से ये आंकड़ा 18 पर्सेंट ज्यादा का है. इसका मतलब ये है कि जो लोग यूपीए को भी वोट करना चाहते हैं उनमें से भी आधे से ज्यादा लोग तेजस्वी यादव के मुख्यमंत्री बनने से संतुष्ट नहीं होंगे. वहीं नीतीश कुमार के पास सर्वे में एनडीए को चुनने वाले दो तिहाई से ज्यादा लोगों का समर्थन है.
ये साफ है कि तेजस्वी यादव राज्य में एनडीए के खिलाफ गुस्से को भुनाने में सक्षम नहीं दिख रहे हैं. 33.4 फीसदी अनुमानित वोट शेयर दिखाता है कि यूपीए यादवों और मुसलमानों वाले अपने कोर वोटर बेस से आगे नहीं बढ़ पाया है.
कुल मिलाकर यूपीए की दिक्कत का सार दो लाइनों में समझाएं तो- 5 में से 2 वोटर जो नीतीश राज से गुस्से में हैं वो यूपीए को लेकर पूरी तरह साफ नहीं हैं. और यूपीए के आधे से ज्यादा वोटर तेजस्वी यादव को लेकर साफ नहीं हैं.
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हालिया चुनाव के उदाहरण जानिए
सीवोटर के हालिया सर्वे के आंकड़ों पर गौर करें तो अनुमान है कि एनडीए को 44.8 फीसदी वोट शेयर हासिल हो सकता है, जो 2019 के लोकसाभ चुनाव में हासिल वोट शेयर से 9 पर्सेंटेज प्वाइंट कम है. 2019 चुनाव में NDA ने 40 में से 39 सीटों पर जीत हासिल की थी. ऐसे में 2019 चुनाव के आंकड़ों के मुताबिक, जब गठबंधन 243 विधानसभा क्षेत्रों में से 223 पर आगे था, अब सीवोटर के अनुमान का मतलब है कि NDA को 60-80 सीटों का नुकसान हो सकता है.
2019 लोकसभा चुनाव के बाद हुए हरियाणा-झारखंड विधानसभा चुनावों में एनडीए को जिस तरीके से धक्का लगा, ये गिरावट उससे कम है. हरियाणा में लोकसभा चुनाव के मुकाबले विधानसभा चुनाव में बीजेपी को 22 पर्सेंटेज प्वाइंट्स का नुकसान हुआ था. वहीं झारखंड में ये नुकसान 25 पर्सेंटेज प्वाइंट्स का था.
बिहार में NDA को वोट शेयर में अनुमानित गिरावट महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के जैसी हैं. जहां पर लोकसभा चुनाव के मुकाबले विधानसभा चुनाव में 8-9% का नुकसान देखा गया था.
मतलब ये है कि महाराष्ट्र की तरह, बिहार में दोनों गठबंधनों के वोट बेस स्थिर कहे जा सकते हैं और वोटर्स के किसी हिस्से का बड़े पैमाने पर शिफ्ट नहीं होने जा रहा है. हरियाणा में जाट-दलित वोटरक और झारखंड में आदिवासी समुदाय के वोटर्स का बड़ा शिफ्ट देखा गया था.
झारखंड की सीख
बिहार के पड़ोसी राज्य के साथ तुलना से कुछ समझ आ सकता है. 2019 के विधानसभा चुनावों से पहले सीवोटर के पहले ओपिनियन पोल में 49.8 लोगों ने कहा था कि वो सरकार बदलना चाहते हैं. ये आंकड़ा मतदान तक 55.7 फीसदी पहुंच गया.
जो लोग सीएम रघुबर दास को हटाना चाहते थे, उनका आंकड़ा चुनाव आगे बढ़ने के साथ ही 53.4 से 60.6 फीसदी पहुंच गया था. अगर UPA सीट के बंटवारे और सही उम्मीदवारों के चुनाव पर ध्यान दे, तो शायद वो कुछ बदलाव की उम्मीद कर सकता है. हालांकि, झारखंड के कुछ फैक्टर बिहार में मौजूद नहीं है.
झारखंड में ये बहुत साफ था कि अगर रघुबर दास की सरकार को हटाना है तो लोगों को हेमंत सोरेन के नेतृत्व वाले UPA को समर्थन देना होगा. ऐसा बिहार में नहीं है, जहां तेजस्वी यादव खुद को मुख्य विरोधी के तौर पर खड़ा नहीं कर पाए.
इसके अलावा झारखंड में बीजेपी में अंदरखाने फूट हो रही थी. अर्जुन मुंडा और उनके समर्थन रघुबर दास के खिलाफ काम कर रहे थे और सरयू राय ने दास के खिलाफ जमशेदपुर पूर्व से चुनाव लड़ा और हराया भी. ऐसा बिहार में तब ही हो सकता है जब NDA में फूट हो जाए और लोक जनशक्ति पार्टी अपने दम पर ही चुनाव लड़े.
अब तक ऐसा लगता है कि झारखंड में आदिवासियों और हरियाणा में जाटों की तरह वोटरों के महत्वपूर्ण धड़ों का बड़ी संख्या में पाला बदल लेना तभी संभव है, जब LJP NDA छोड़ देगी.