Home Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019News Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019India Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019बिहार चुनाव: सरकार फिर बेच रही विवादित इलेक्टोरल बॉन्ड्स

बिहार चुनाव: सरकार फिर बेच रही विवादित इलेक्टोरल बॉन्ड्स

इलेक्टोरल बॉन्ड्स स्कीम लोकतंत्र को खतरा क्यों?

पूनम अग्रवाल & वकाशा सचदेव
भारत
Published:
Bihar election : सरकार फिर बेच रही विवादित इलेक्टोरल बॉन्ड्स
i
Bihar election : सरकार फिर बेच रही विवादित इलेक्टोरल बॉन्ड्स
null

advertisement

बिहार चुनाव में कुछ ही दिन बाकी रह गए हैं और इसी के साथ केंद्र सरकार ने इलेक्टोरल बॉन्ड्स की बिक्री का फिर से ऐलान कर दिया है. स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (SBI) के जरिए बॉन्ड्स के चौथे ट्रैंच की बिक्री 19 से 28 अक्टूबर के बीच की जाएगी.

इलेक्टोरल बॉन्ड्स स्कीम बीजेपी की सरकार 2018 में लाई थी और वादा किया था कि इससे पॉलिटिकल फंडिंग में पारदर्शिता आएगी.

क्विंट ने अपनी कई स्टोरीज में इन इलेक्टोरल बॉन्ड्स पर सवाल उठाए हैं और इनसे होने वाले लोकतंत्र के खतरे को भी उजागर किया है.

2018 में सुप्रीम कोर्ट में NGO कॉमन कॉज और एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स ने एक याचिका दायर की थी. याचिका में क्विंट के आर्टिकल का जिक्र था, जिसमें इस स्कीम की अस्पष्टता के बारे में बताया गया था. लेकिन मामला अभी कोर्ट में लंबित है.

इलेक्टोरल बॉन्ड्स स्कीम लोकतंत्र को खतरा क्यों?

बीजेपी सरकार ने कहा था कि बॉन्ड्स पॉलिटिकल डोनर की पहचान गुप्त रखेगा. लेकिन असल में ऐसा नहीं होता.

पहला- क्विंट ने अपनी जांच में ये खुलासा किया है कि बॉन्ड्स पर एक छुपा हुआ अल्फान्यूमेरिक कोड होता है, जो नंगी आंखों से नहीं बल्कि सिर्फ अल्ट्रा-वायलेट लाइट में दिखता है.

दूसरा- सरकार ने अपना बचाव करने की कोशिश की और कहा कि ये अल्फान्यूमेरिक कोड SBI रिकॉर्ड नहीं करता है. लेकिन RTI में पता चला कि SBI ये कोड रिकॉर्ड करता है. इसका मतलब है कि जब पॉलिटिकल पार्टियां ये बॉन्ड्स SBI में जमा कराती हैं, तो बैंक आसानी से बॉन्ड खरीदने वाले को ट्रैक कर सकता है.

तीसरा- 2017 के मई में चुनाव आयोग ने कानून मंत्रालय को एक खत लिखकर इलेक्टोरल बॉन्ड्स की बिक्री पर तीन बड़ी आपत्ति दर्ज कराई थीं.

  • सरकार ने रिप्रजेंटेशन ऑफ पीपल एक्ट 1951 के सेक्शन 29C में बदलाव किया था जिससे कि बॉन्ड्स के जरिए किए गए पॉलिटिकल डोनेशन को चुनाव आयोग को बताना जरूरी नहीं था. इसकी वजह से पब्लिक को कभी पता नहीं लगेगा कि इन बॉन्ड्स से पार्टियों को कितना डोनेशन मिला.
  • इलेक्टोरल बॉन्ड्स ने शेल कंपनियों के पॉलिटिकल डोनेशन की राह आसान कर दी क्योंकि कंपनीज एक्ट के सेक्शन 182 में बदलाव हुए थे.
  • कंपनीज एक्ट के सेक्शन 182 (3) में बदलाव के बाद एक कंपनी को उसके पॉलिटिकल डोनेशन या पॉलिटिकल पार्टी का नाम प्रॉफिट एंड लॉस स्टेटमेंट में नहीं बताना होता है. दूसरे शब्दों में पॉलिटिकल डोनेशन इकोसिस्टम में काले धन की एंट्री का रास्ता साफ हुआ.
ADVERTISEMENT
ADVERTISEMENT

चौथा- RTI कागजातों से पता चला कि 2017 में RBI गवर्नर उर्जित पटेल ने तत्कालीन वित्त मंत्री अरुण जेटली से बातचीत में इलेक्टोरल बॉन्ड्स को पेपर की बजाय डिजिटल अवतार में जारी करने पर जोर दिया. पटेल का कहना था कि पेपर के बॉन्ड से मनी लॉन्डरिंग का खतरा होगा. हालांकि, वित्त मंत्री ने उनकी चिंताओं पर ध्यान नहीं दिया.

पांचवा- RBI और चुनाव आयोग के अलावा कानून मंत्रालय ने भी बॉन्ड्स के जारी किए जाने पर दो आधार पर आपत्ति जताई थी- एक कि बॉन्ड की योग्यता प्रॉमिसरी नोट की नहीं है और दूसरा कि इसका इस्तेमाल करेंसी के तौर पर हो सकता है और मनी लॉन्डरिंग हो सकती है.

RBI, चुनाव आयोग और कानून मंत्रालय की आपत्तियों के बाद भी बीजेपी सरकार ये बॉन्ड लाई.

पॉलिटिकल पार्टियों ने वित्त वर्ष 2018-19 के लिए चुनाव आयोग में जो एनुअल ऑडिट रिपोर्ट जमा कराई थी, उनसे पता चलता है कि बीजेपी को इन बॉन्ड्स की बिक्री से करीब 57 फीसदी कमाई हुई है, जबकि कांग्रेस को 15 फीसदी मिली थी.

सुप्रीम कोर्ट इस मामले में सुनवाई क्यों नहीं कर रहा?

2017 में याचिका दायर होने के बाद दो साल लग गए इस मामले को कोर्ट में लिस्ट होने में. तत्कालीन CJI रंजन गोगोई ने मार्च 2019 में इस पर सुनवाई शुरू की थी. तब लोकसभा चुनाव होने वाले थे. इसलिए कोर्ट में ये बहस हुई कि इस पर अंतरिम रोक लगाई जानी चाहिए या नहीं जब तक कि इसकी संवैधानिकता तय नहीं होती.

12 अप्रैल को गोगोई की बेंच ने स्कीम पर रोक से इंकार कर दिया, लेकिन सभी पार्टियों को उन्हें मिले बॉन्ड्स की जानकारी चुनाव आयोग को सीलबंद लिफाफे में देने को कहा. मामले को जून 2019 में लिस्ट होना था और संवैधानिकता पर बहस होनी थी. लेकिन गोगोई के कार्यकाल में ये लिस्ट नहीं हुआ.  

मौजूदा CJI एसए बोबड़े ने जनवरी 2020 में मामले को याचिकाकर्ताओं की तरफ से अंतरिम रोक की एक एप्लीकेशन के बाद लिस्ट किया था. लेकिन फिर रोक से इनकार किया गया. केस को दो हफ्ते बाद लिस्ट होना था, लेकिन अबतक नहीं हो पाया है.

(हैलो दोस्तों! हमारे Telegram चैनल से जुड़े रहिए यहां)

Published: undefined

Read More
ADVERTISEMENT
SCROLL FOR NEXT