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विधानसभा में उठ रही कुर्सियों की तस्वीरों ने जैसे अर्थियों की तस्वीरों को ढांप लिया है. विधानसभा के शोर में जैसे जहरीली शराब (Bihar Hooch Tragedy) से मरते लोगों के परिजनों की चीखें गुम हो रही हैं. संताप पर सियासत का जोर है. दुखद है कि बिहार में यही हार बार होता है.
छपरा में कथित तौर पर जहरीली शराब से 60 से ज्यादा की मौत हो गई है. विपक्षा सवाल उठा रहा है तो सीएम नीतीश कुमार (Nitish Kumar) खफा हो रहे हैं.
बात सही हो सकती है लेकिन जख्मों पर मरहम नहीं, नमक की तरह लगती है. क्योंकि असमय है. विपक्ष में थे तो तेजस्वी जहरीली शराब पर मुखर थे. अब सत्ता में हैं तो कह रहे हैं बीजेपी शासित राज्यों में ज्यादा मौतें हुईं हैं. दुखद है. क्या मय्यत में भी सियासत करेंगे. तेरे राज्य में मौत, मेरे राज्य में मौत करेंगे? मौत पर कंपीटीशन चल रही है!
ये सब बिहार के साथ नाइंसाफी है क्योंकि इन बयानों से बू आती है कि सत्ताधीश अपनी जिम्मेदारी से बचना चाहते हैं. सीएम जब कहते हैं कि पीयोगे तो मरोगे, तो सही कहते हैं. लेकिन सूबे के सीएम आप हैं.
ठीक है आपने कार्रवाई की है. कर रहे हैं. लेकिन लगातार होती मौतों से साफ है कि कार्रवाई नाकाफी है. खासकर तब जब इसी छपरा में इस साल जहरीली शराब से कई बार मौतें हुई हैं. साल की शुरुआत में, अगस्त में और अब साल के आखिर में.
बीजेपी विपक्ष का धर्म निभा रही है. जब नीतीश के साथ थी तो ऐसी ही मौतों पर गठबंधन धर्म निभाती थी. किस फिक्र का जिक्र करें? तब भी सियासत, अब भी सियासत. बिहारियों की जान की फिक्र कौन कर रहा है? माएं मातम मना रही हैं, पत्नियां सिसक रही हैं. बच्चे बिलख रहे हैं. यहां फुलस्टॉप जरूरी है.
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