advertisement
वीडियो एडिटर: आशुतोष भारद्वाज
दिल्ली में बिन ऑक्सीजन कोरोना के मरीजों को तड़पते सबने देखा. बेड नहीं, वेंटेलेटर नहीं. इंटरनेशनल खबर बनी. दलील आई कि कोरोन (corona) की दूसरी लहर इतनी तेजी आई कि इतने इंतजाम नहीं हो पाए. और वाकई बाकी दिनों महानगरों के अस्पतालों की स्थिति थोड़ी बेहतर होती है.
जरा सोचिए उन इलाकों का क्या होता होगा, जहां का हेल्थ सिस्टम परमानेंट ICU में रहता है. और दुखद ये कि इसकी खबर भी नहीं बनती. इस खबर में आप 15 तस्वीरों में बिहार (Bihar) के ग्रामीण इलाकों के हेल्थ सिस्टम का डर्टी पिक्चर देखिए.
मुजफ्फरपुर जिला के मुरौल के स्वास्थ्य उपकेंद्र या कहें सब हेल्थ सेंटर का हाल देखिए. गांव के लोग बताते हैं कि इसमें इलाज क्या ही होगा जब इसकी बिल्डिंग ही गिरने वाली है.
जब क्विंट ने कुढ़नी के सीएचसी (Community health center) से संपर्क किया तो पता चला कि पांच हजार की आबादी वाले मुरौल के स्वास्थ्य उपकेंद्र में डॉक्टर नहीं बल्कि सिर्फ एक एएनएम होती हैं, जहां सिर्फ ओपीडी चलता है.
नाम न छापने की शर्त पर एक स्टाफ ने बताया, “मुरौल के स्वास्थ्य उपकेंद्र की बिल्डिंग की हालत बहुत बुरी है, एकदम खंडहर जैसा. किसी को मतलब नहीं है, सिर्फ बिहार में राजनीति करना है सबको.”
एक और प्राथमिक उप स्वासथ्य केंद्र है. यह स्वास्थ्य केंद्र मुजफ्फरपुर के बोचहां प्रखण्ड के गरहां में है. बीजेपी नेता और बिहार सरकार में भूमि सुधार एवं राजस्व विभाग के मंत्री बिहार के मंत्री राम सूरत राय के घर से चंद कदम दूर. दो रूम के SHC का हाल भी बेहाल है, कोरोना से लड़ना तो दूर महीने में किसी एक दिन खुल जाता है.
बोचहां प्रखण्ड के रहने वाले संजय बताते हैं, “महीना में एक बार कभी भी एएनएम आ जाती हैं. 2004 में मंत्री राम सूरत राय के बड़े भाई स्थानीय मुखिया भरत राय ने उद्घाटन किया था. लेकिन इसे कोई देखने वाला नहीं है.”
मुजफ्फरपुर के एक और पंचायत बखरी में अतिरिक्त स्वास्थ्य केंद्र बनकर तैयार हुआ लेकिन अब बंद पड़े-पड़े खंडहर हो रहा है.
संजीव कुमार, हेल्थ मैनेजर अतिरिक्त प्रभार मुरौल बतातें हैं कि ये अतिरिक्त स्वास्थ्य केंद्र बनकर तो तैयार हो गया लेकिन भवन निर्माण विभाग ने हैंडअवर नहीं किया. भखरी पंचायत की करीब 10 हजार की आबादी होगी.
हालांकि संजीव बताते हैं कि लोगों की जरूरत को देखते हुए एक पंचायत में एक सीएचसी यानी स्वास्थ्य उपकेंद्र चल रहा है.
ये तस्वीर पुर्णिया के बायसी प्रखंड के पुरानागंज के स्वास्थ्य केंद्र की है. हेल्थ सेंटर की नींव इतनी कमजोर रखी गई कि दीवार और पिलर सबमें दरार आ गई.
करीब 14000 हजार की आबादी वाले बायसी प्रखंड का एसएचसी हाल बेहाल है. गांव वाले बताते हैं कि 10 साल पहले बनकर तैयार हुए इस पीएचसी का साल 2017 में मरम्मत किया गया था. लेकिन अब ये जमीन में धंस गया है और दीवरों में दरार है.
जब हमने बायसी के ब्लॉक हेल्थ मैनेजर किनकर घोष से इसकी हालत जानने की कोशिश की तो उन्होंने कहा,
दरभंगा के केवटी ब्लॉक के खिरमा में आयुष्मान भारत योजना के तहत बना ये अतिरिक्त प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र एंव हेल्थ एंड वेलनेस सेंटर जमाने से ताले की शोभा बढ़ा रहा है. हिंदी अखबार दैनिक भास्कर के मुताबिक करीब 3 करोड़ की लागत से बना ये सेंटर कुछ दिन लोगों की सेवा में खुला था लेकिन फिर बंद कर दिया गया. यहां तक कि कोरोना काल में भी इसका इस्तेमाल नहीं हुआ.
कटिहार के बलरामपुर ब्लॉक के अझरैल में 25 लाख रुपए से बनकर तैयार हुआ ये अतिरिक्त प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र बंद पड़ा है.
असदुद्दीन ओवैसी के पार्टी AIMIM के बिहार यूथ विंग के अध्यक्ष और कटिहार के रहने वाले आदिल हसन बताते हैं कि साल 2014 में इस एपीएचसी का उद्घाटन हुआ था, लेकिन 2015 के बाद से ये बंद है और किसी का भी इलाज नहीं होता है.
बेगूसराय के कैथ पंचायत के स्वास्थ्य उपकेंद्र का हाल देखिए. बिहार की विपक्षी पार्टी आरजेडी ने अपने सोशल मीडिया पर बेगुसराय के सांसद और बीजेपी नेता गिरिराज सिंह को टैग करते हुए स्वास्थ्य उपकेंद्र के बदहाली की ओर इशारा किया है.
स्वास्थ्य उपकेंद्र में गाय के खाने वाला भूसा, गाय के गोबर का गोइठा, देखने को मिल रहा है.
सीतामढ़ी के मुरादपुर स्वास्थ्य उपकेंद्र में इंसान नहीं बल्कि भैंस बंधी है.
सातामढ़ी के ही परिहार के भिसवा बाजार स्थित उप स्वास्थ केंद्र तो बदहाली में दो कदम आगे है. पिछले तीन बार से यहां से बीजेपी के विधायक हैं, साथ ही एनडीए के ही सांसद हैं, लेकिन जिस उप स्वास्थ केंद्र पर डॉक्टर को इलाज करना चाहिए था, वहां गाय भैंस बंधी है.
जमुई के झाझा में जर्जर हाल में एक स्वास्थ्य केंद्र
जमुई के खरडीह पंचायत के कर्मा गांव के स्वास्थ्य उपकेंद्र का हाल भी देखिए. साल 2010 में ये बनकर तैयार हुआ. शुरू होने के कुछ दिन बाद ही बंद हो गया. यहां जाने के लिए सड़क तक नहीं है. मुख्य सड़क से करीब 300 मीटर की दूरी है. करीब 10 वर्षों से जहा यहां इलाज नहीं हुआ हतो नतीजतन अब ये खंडहर में तब्दील हो चुका है. गांव वाले बताते हैं कि यह अब शराबियों का अड्डा बन गया है.
इनपुट- मोहम्मद सरताज आलम, संजय कुमार, आफताब आलम, कामरान आरिफ
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)