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CRPF के जवान की रिहाई में 11 मध्यस्थों ने क्या भूमिका निभाई?

कहा जा रहा है कि नक्सलियों ने राकेश्वर को बिना किसी शर्त और मानवीय आधार पर छोड़ा है

मेखला सरन
भारत
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छत्तीसगढ़ में बीजापुर-सुकमा नक्सली हमले के दौरान अगवा किए गए CRPF जवान राकेश्वर सिंह मन्हास को नक्सलियों ने 8 अप्रैल को छोड़ दिया. इस हमले में 22 जवान शहीद हो गए थे. राकेश्वर सिंह छह दिन तक नक्सलियों के कब्जे में रहे.

कहा जा रहा है कि नक्सलियों ने राकेश्वर को बिना किसी शर्त और मानवीय आधार पर छोड़ा है. हालांकि, केंद्र और राज्य सरकार ने जवान की रिहाई के लिए कोशिश की थी, लेकिन राकेश्वर को मध्यस्थों की एक 11 सदस्यों की टीम जंगलों से निकालकर लाई.

इस टीम में ये लोग शामिल थे:

  1. सामाजिक कार्यकर्ता धर्मपाल सैनी
  2. गोंडवाना समाज के नेता तेलम बोरिया
  3. पूर्व सरपंच और आदिवासी नेता सुखमती आपका
  4. सामाजिक नेता गुरु रूद्र खरे
  5. पत्रकार गणेश मिश्रा (बीजापुर)
  6. पत्रकार मुकेश चंद्राकर (बीजापुर)
  7. पत्रकार युकेश चंद्राकर (बीजापुर)
  8. पत्रकार रंजिश दाश (बीजापुर)
  9. पत्रकार चेतन कपवार (बीजापुर)
  10. पत्रकार के शंकर (सुकमा)
  11. पत्रकार रवि रुंजे (सुकमा)

एक फोन कॉल और निवेदन

पत्रकार गणेश मिश्रा ने एक इंटरव्यू में ब्रूट से कहा, "मुझे माओवादियों से एक अज्ञात नंबर से कॉल आई थी और मुझसे कहा गया कि लापता जवान उनके पास है और अगले दो दिनों में उसे रिहा किया जाएगा. उन्होंने बताया कि जवान घायल है और उसका इलाज हो रहा है."

“उन्होंने कहा था कि जवान सुरक्षित है और रिहा कर दिया जाएगा. लेकिन माओवादियों ने कहा था कि अगर इस प्रक्रिया में जवान को नुकसान होता है तो वो उनकी गलती नहीं होगी बल्कि आईजी की होगी.” 
पत्रकार गणेश मिश्रा

मिश्रा ने माओवादी नेता से कहा कि जवान की फोटो या वीडियो जारी की जाए, जिससे पुष्टि होगी कि वो ठीक है. इस पर माओवादी मान गए.

7 अप्रैल को राकेश्वर सिंह मन्हास की अपनी वर्दी में एक झोपड़ी में बैठे हुए तस्वीर जारी हुई.

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मिश्रा ने द हिंदू को बताया कि माओवादी नेता ने कहा मन्हास उन्हें अचेत अवस्था में मिला था. मिश्रा ने कहा कि माओवादियों की मांग है सरकार मध्यस्थों की एक टीम बनाए और उन्होंने ये बात पुलिस तक पहुंचाई.

पुलिस ने फिर 91 साल के धर्मपाल सैनी और गोंडवाना समाज नेता तेलम बोरिया से संपर्क किया. 1995 में सैनी को आदिवासी लड़कियों को शिक्षा देने के लिए पद्म श्री मिला था.

राकेश्वर को वापस लाने की मुहिम

6 अप्रैल को माओवादियों ने एक प्रेस नोट जारी कर सरकार से मध्यस्थों की लिस्ट का ऐलान करने की मांग की. हालांकि, इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट कहती है सरकार बातचीत की प्रक्रिया में थी और 11 लोगों की एक टीम जवान को लेने निकल गई थी.

मिश्रा ने द हिंदू को बताया, "हम 8 अप्रैल को सुबह 5 बजे बीजापुर से निकले और 9 बजे तक जगह पर पहुंच गए थे."

“पांच घंटों से ज्यादा इंतजार के बाद करीब 60-70 माओवादी जवान के साथ आए. उसके हाथ बंधे हुए थे. दो मध्यस्थों ने माओवादियों से एक घंटे बातचीत की और फिर गांववालों की मौजूदगी में जवान को छोड़ दिया गया.” 
पत्रकार गणेश मिश्रा

मिश्रा ने द हिंदू को बताया कि माओवादियों की एक वरिष्ठ महिला नेता ने सैनी और बोरिया के साथ बातचीत की.

महिला नेता ने बताया कि जवान को मानवीय आधार और बिना किसी शर्त के छोड़ा जा रहा है. महिला ने कथित तौर पर कहा कि जवान को नुकसान नहीं पहुंचाया गया क्योंकि वो अचेत अवस्था में मिला था और उसे नुकसान पहुंचाना 'युद्ध नीतियों' के खिलाफ होता.

माओवादियों ने मध्यस्थों को जानकारी दी कि मन्हास को पानी की कमी हुई थी, जिसका इलाज किया गया और अब उसकी सेहत ठीक है.

धर्मपाल सैनी कौन हैं?

राकेश्वर सिंह की रिहाई पर राहत जताते हुए मुख्यमंत्री भूपेश सिंह बघेल ने मध्यस्थों को मदद करने के लिए शुक्रिया कहा.

मध्यस्थों में 91 साल के सैनी को एक बार फिर तारीफें मिल रही हैं. उन्हें बस्तर का गांधी कहा जाता है.

धर्मपाल सैनी एक कोबरा कमांडो को वापस लाने में कामयाब हो गए हैं, ये इस बात को दर्शाता है कि बस्तर में नागरिकों से लेकर नक्सलियों तक उनका सम्मान करते हैं.  

विनोभा भावे के शिष्य रह चुके सैनी कई साल बस्तर में आदिवासी लड़कियों को पढ़ाते रहे हैं. उनके इस काम के लिए उन्हें पद्म श्री से सम्मानित किया गया था. द वीक ने 2012 में सैनी को 'बस्तर का बादशाह' करार देते हुए उन्हें 'मैन ऑफ द ईयर' का खिताब दिया था.

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