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प्रधानमंत्री कार्यालय से जारी ई-मेल में बीजेपी को चंदा देने का विज्ञापन. विशेषज्ञ सवाल उठा रहे हैं कि क्या ये सही है? क्या ये सत्तारूढ़ पार्टी के हित के लिए सरकारी मशीनरी का इस्तेमाल नहीं है? क्या ये चुनाव आयोग की आदर्श आचार संहिता का उल्लंघन नहीं है?
21 अक्टूबर 2020 को प्रधानमंत्री कार्यालय ने noreply@sampark.gov.in आईडी से मेल भेजे. इसके सब्जेक्ट में लिखा था '' पीएम ने कहा -राजमाता एक निर्णायक नेता और कुशल प्रशासक थीं; ग्रामीण भारत में लोगों को उनके घरों का मिला मालिकाना हक...और जानकारी न्यूजलेटर में!'' जब हमने न्यूजलेटर पर क्लिक किया तो हमें पीएम नरेंद्र मोदी के विकास के कार्यों से जुड़े सात लेख मिले. यहां तक तो सब ठीक था.
जब हमने विज्ञापन पर क्लिक किया तो हम दूसरे पेज पर पहुंच गए, जिसपर लिखा था - ''आपका चंदा बीजेजी को सपोर्ट करने का बेहतरीन जरिया है. इससे राष्ट्र निर्माण में लगे लाखों 'कार्यकर्ताओं' का हौसला बढ़ेगा.'' और इसके नीचे 5 रुपए से लेकर 1000 रुपए तक चंदा देने के विकल्प दिए हुए थे.
तो सवाल ये है कि -
प्रधानमंत्री कार्यालय से जारी मेल में बीजेपी के लिए चंदे का विज्ञापन कैसे आ गया?
और भी गंभीर सवाल है कि
क्या ये एकदम साफ तौर से चुनाव आयोग की आदर्श आचार संहिता का उल्लंघन नहीं है?
बिल्कुल उल्लंघन है, समझिए कैसे
चुनाव आयोग ने 25 सितंबर को बिहार चुनाव का ऐलान किया था. उस दिन से ही चुनाव आयोग की आदर्श आचार संहिता (Model Code Of Conduct) लागू है. एक ऐसा कोड जिसमें राजनीतिक दलों के लिए साफ-साफ निर्देश होते हैं कि वो क्या कर सकते हैं या क्या नहीं.
ऐसे में जब पीएमओ की तरफ से sampark.gov.in के जरिए 21 अक्टूबर को मेल 2020 को भेजा गया, उस वक्त बिहार में आदर्श आचार संहिता लागू हो चुकी थी. तो ये आदर्श आचार संहिता का उल्लंघन है.
द क्विंट से बातचीत में पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त एसवाई कुरैशी का कहना है,
जबकि पूर्व सूचना आयुक्त वजाहत हबीबुल्लाह ने कहा,
क्या ये प्रधानमंत्री कार्यालय (PMO) की शक्तियों का गलत इस्तेमाल है? ये जानने के लिए हमने कुछ कानूनी विशेषज्ञों से भी बात की है. सीनियर एडवोकेट राजीव धवन ने द क्विंट से कहा है,
अब जरा पीछे चलते हैं. जून, 1975 में. जब इलाहाबाद हाईकोर्ट ने तब की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को चुनाव प्रचार के दौरान सरकारी मशीनरी के दुरुपयोग के मामले में दोषी माना था. कोर्ट ने आदेश सुनाया था कि इंदिरा गांधी ने जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 123 (7) के तहत भ्रष्ट तरीकों का सहारा लिया.
लेकिन क्यों?
वो इसलिए क्योंकि उन्होंने अपने संसदीय क्षेत्र रायबरेली में 1971 के आम चुनाव के दौरान गजटेड अधिकारी की मदद ली थी. और कोर्ट ने इंदिरा गांधी का चुनाव रद्द कर दिया और 6 साल तक चुनाव लड़ने पर रोक लगा दी. और यही एक अहम कारण था जिसकी वजह से इंदिरा गांधी ने आपातकाल लगाया था. और इसके बाद 1977 के चुनाव में उनकी हार हुई थी.
लेकिन यहां पर सवाल सिर्फ चुनाव आयोग की आचार संहिता के उल्लंघन भर का नहीं है, बल्कि ये इस बारे में भी है कि
प्रधानमंत्री का दफ्तर कैसे कथित तौर पर सरकारी मशीनरी का इस्तेमाल सत्ताधारी पार्टी के लिए फंड जुटाने के लिए कर सकता है?
और
क्या ये अनैतिक नहीं है?
हमने इस बारे में प्रधानमंत्री ऑफिस और चुनाव आयोग से जवाब मांगा है.
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