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झारखंड और दिल्ली विधानसभा चुनाव में हार के बाद भारतीय जनता पार्टी चुनावी रणनीति की समीक्षा कर रही है. पार्टी अब राज्यों में वोट प्रतिशत बढ़ाने पर जोर दे रही है. बीजेपी पचास फीसदी वोट हासिल करने के लिए लोकप्रिय स्थानीय नेतृत्व को बढ़ावा देने और समान विचारधारा वाले क्षेत्रीय दलों के साथ गठजोड़ पर गंभीरता से विचार कर रही है. झारखंड में JVM के नेता बाबूलाल मरांडी की बीजेपी में वापसी को इसी नजरिये से देखा जा रहा है.
पिछले सप्ताह दिल्ली में हुई समीक्षा बैठकों में मौजूद सूत्रों ने न्यूज एजेंसी ‘भाषा’ को बताया कि झारखंड और दिल्ली में पार्टी को समर्थन न मिलने का एक कारण उसके पास लोकप्रिय मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार न होना भी था. झारखंड में मुख्यमंत्री रघुवर दास के नेतृत्व में पार्टी ने चुनाव लड़ा था, जिनके खिलाफ कार्यकर्ताओं में नाराजगी की खबरें आलाकमान को भी मिली थीं. जबकि दिल्ली में बीजेपी ने किसी को भी मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित नहीं किया.
बीजेपी सूत्रों के अनुसार, नेतृत्व की चिंता लोकसभा और विधानसभा चुनावों में उसे मिल रहे मत प्रतिशत के अंतर से बढ़ी है. पिछले दो लोकसभा चुनावों में बीजेपी को गठबंधन के सहयोगियों सहित 17 राज्यों में पचास फीसदी से अधिक वोट मिले. लेकिन राज्यों के विधानसभा चुनावों में वो काफी पीछे रही. बिहार, पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश, ओडिशा, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, तमिलनाडु और पूर्वोत्तर के कई राज्यों में बीजेपी का मुकाबला क्षेत्रीय दलों से है.
बीजेपी के एक वरिष्ठ नेता ने ‘भाषा’ से कहा, ‘‘हम समीक्षा कर रहे हैं. हमें देशभर में 51 प्रतिशत वोट शेयर तक जाने के लिए योजनाबद्ध ढंग से बढ़ना है. इसके लिए प्रदेश नेतृत्व को बढ़ावा देने के साथ ही क्षेत्रीय दलों से गठजोड़ की रणनीति का विकल्प भी पार्टी के सामने है.’’
बहरहाल, इसके बाद हरियाणा और झारखंड में पार्टी बहुमत का आंकड़ा हासिल नहीं कर सकी. हरियाणा में बीजेपी का मत प्रतिशत 36 रहा जबकि झारखंड में यह 33.37 प्रतिशत रह गया. दिल्ली में 2019 में हुए लोकसभा चुनाव में बीजेपी को 56.58 फीसद वोट मिले थे और हाल के विधानसभा चुनाव में यह घटकर 38.5 प्रतिशत रह गए.
‘सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ डेवलपिंग सोसायटी' (सीएसडीएस) के निदेशक संजय कुमार का मानना है कि मतदाता अब देश और राज्य के आधार पर अलग-अलग सोचविचार कर मतदान करता है.
कुमार ने कहा कि बीजेपी ने राज्यों के चुनावों में सशक्त चेहरा नहीं दिया जिसका बेशक कुछ ना कुछ उसे नुकसान उठाना पड़ा है. उन्होंने कहा ‘‘इसमें कोई शक नहीं है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी देश में सबसे लोकप्रिय नेता हैं लेकिन प्रदेशों के चुनाव में उनकी सीमाएं हैं .’’
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