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बॉम्बे HC ने 69 चीनी नागरिकों के देश छोड़ने के आदेश को रद्द किया

रजिस्ट्रेशन ऑफिस ने चीनी नागरिकों को देश छोड़ने का नोटिस जारी किया था

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भारत
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बॉम्बे हाईकोर्ट (फोटो: Reuters)
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बॉम्बे हाईकोर्ट (फोटो: Reuters)
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बॉम्बे हाईकोर्ट ने तीन चीनी कंपनियों और 69 वर्कर्स के देश छोड़ने के आदेश को रद्द कर दिया है. ये आदेश फॉरेन रजिस्ट्रेशन ऑफिसर, दादर और नगर हवेली के द्वारा जारी किया गया था. रजिस्ट्रेशन ऑफिसर का दावा था कि ये वर्कर्स अवैध तरीके (गलत वीजा) से देश में काम कर रहे हैं.

क्या है मामला

एक भारतीय कंपनी पेसिफिक साइबर कंपनी लिमटेड का दावा है कि वे ‘मेक इन इंडिया’ कार्यक्रम के तहत काम कर रही है. यह मोबाइल क्षेत्र में काम करती है. इसका प्लांट सिलवासा में स्थित है. यहां भारत के कर्मचारियों को टेक्नोलॉजी से संबंधित ट्रेनिंग भी दी जाती है.

इन्हें ट्रेनिंग देने के लिए 69 चीनी वर्कस को बुलाया गया है.वर्कर्स को बिजनेस वीजा इशू किया गया था, जो अभी भी वैध है.

क्या है रजिस्ट्रेशन ऑफिस का दावा

रजिस्ट्रेशन ऑफिस का कहना है कि जब उन्होंने कंपनी के प्लांट पर जाकर जांच की तो पाया कि चीनी लोग ट्रेनिंग नहीं दे रहे थे, बल्कि काम कर रहे थे. उनमें से कुछ लोगों के पास तो टूरिस्ट वीजा ही था. बता दें कि टूरिस्ट वीजा या बिजनेस वीजा पर आए विदेशी लोग भारत में एंप्लायमेंट के किसी काम में शामिल नहीं हो सकते.

बेंच का फैसला...

पेसिफिक ने दो दूसरी चीनी कंपनियों के साथ एक करार किया था. इन्हीं कंपनियों ने रजिस्ट्रेशन ऑफिसर के नोटिस को कोर्ट में चैलेंज किया था. नोटिस में चीन वर्कर्स को देश छोड़ने के लिए कहा गया था. जस्टिस धर्माधिकारी और जस्टिस कोटवाल की बेंच ने अपने फैसले में कहा,

<b>जब चीनी लोगों के पास बिजनेस वीजा है, तो किसी भी केस में उन्हें बाहर भेजना, वीजा का उल्लंघन है. उन्हें देश छोड़ने के पहले उन्हें या चीनी लोगों को बुलाने वाली कंपनी को शोकॉज नोटिस दिया जा सकता था. पेटिशनर्स (पेसिफिक एंड पार्टी) की ये दलील भी सही है कि अगर ये लोग वापस जाते हैं तो उनके प्रोडक्शन को धक्का लगेगा. इसलिए इस मामले में सही तरीके से जांच जरूरी है.</b>

कोर्ट ने अधिकारियों को निर्देश दिया कि वे चीनी लोगों की बात सुनकर, उनकी स्थिति समझें. तब तक के लिए कोर्ट ने उन्हें देश छोड़ने के लिए जारी किए नोटिस को खारिज कर दिया है. कोर्ट ने अधिकारियों को दो हफ्ते का वक्त दिया है.

सोर्स: Live law

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