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बॉम्बे हाई कोर्ट ने 8 फरवरी को एल्गार परिषद केस के आरोपी गौतम नवलखा की उस आपराधिक अपील को खारिज कर दिया, जिसमें नवलखा ने अपनी जमानत याचिका खारिज होने को चुनौती दी थी. 12 जुलाई 2020 को स्पेशल नेशनल इंवेस्टिगेशन एजेंसी (NIA) कोर्ट ने गौतम नवलखा की डिफॉल्ट जमानत याचिका खारिज की थी.
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, बॉम्बे हाई कोर्ट ने अपने फैसले में कहा, "हमने NIA कोर्ट का आदेश पढ़ा है. हम उसमें हस्तक्षेप करने की कोई वजह नहीं देखते हैं."
गौतम नवलखा ने कहा था कि जांच एजेंसी NIA 90 दिनों की निर्धारित समय सीमा के अंदर चार्जशीट दाखिल नहीं कर पाई है और इस आधार पर उन्हें जमानत दी जाए. हालांकि, NIA ने दावा किया था कि नवलखा के 29 अगस्त से 1 अक्टूबर 2018 तक के हाउस अरेस्ट के 34 दिनों को दिल्ली हाई कोर्ट ने 'अवैध' करार दिया था और इसलिए इस पीरियड को हिरासत में शामिल नहीं किया जा सकता.
सिब्बल ने कहा, "नवलखा जब हाउस अरेस्ट थे तब भी कस्टडी में ही थे. उनकी आजादी और आना-जाना इसके तहत प्रतिबंधित और सीमित था. कस्टडी का नेचर बदल गया, लेकिन था वो अरेस्ट ही."
सिब्बल ने बताया कि हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट से जमानत याचिकाएं खारिज होने के बाद गौतम नवलखा ने पिछले साल 14 अप्रैल को दिल्ली में NIA के सामने सरेंडर कर दिया था. सिब्बल ने कहा कि NIA ने समय बढ़ाने के लिए एप्लीकेशन 29 जून 2020 को डाली थी.
हालांकि, NIA की तरफ से एडिशनल सॉलिसिटर जनरल एसवी राजू ने याचिका का विरोध करते हुए कहा कि 'हाउस अरेस्ट' का पीरियड नहीं गिना जा सकता क्योंकि आरोपी को मजिस्ट्रेट के सामने पेश करने की तारीख 90 दिन गिनने के लिए महत्वपूर्ण है, न कि गिरफ्तारी की तारीख.
राजू ने कहा कि दिल्ली हाई कोर्ट ने नवलखा की 29 अगस्त से 1 अक्टूबर 2018 तक हिरासत को 'अवैध' करार दिया था और इसलिए इस पीरियड को नहीं गिना जा सकता है.
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