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संडे व्यू: चीन से बातचीत, पाकिस्तान से क्यों नहीं? सवालों के बीच ‘अमृतकाल’

संडे व्यू में पढ़ें टीएन नाइनन, तवलीन सिंह, पी चिदंबरम और मार्क टुली के विचारों का सार.

क्विंट हिंदी
भारत
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<div class="paragraphs"><p>संडे व्यू: चीन से बातचीत, पाकिस्तान से क्यों नहीं? सवालों के बीच ‘अमृतकाल’</p></div>
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संडे व्यू: चीन से बातचीत, पाकिस्तान से क्यों नहीं? सवालों के बीच ‘अमृतकाल’

(फोटो- क्विंट हिंदी)

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सामाजिक क्षेत्र में व्यय बढ़ा, क्या तस्वीर बदली?

टीएन नाइनन बिजनेस स्टैंडर्ड में लिखते हैं कि आम तौर पर सरकारी बजट सामाजिक क्षेत्रों की अनदेखी करता है. रोजगार गारंटी योजना और शिक्षा के बजट में ठहराव इसका उदाहरण है. 20 फीसदी बच्चे माध्यमिक शिक्षा पूरी नहीं कर पाते, फिर भी यह अनदेखी है. कई सालों से प्राथमिक और सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों की संख्या में कोई बदलाव नहीं हुआ है. वास्तविक ग्रामीण पारिश्रमिक अब भी महामारी के पहले वाले स्तर पर ही है. ध्यान देने वाली बात यह है कि कुल सरकारी व्यय में सामाजिक क्षेत्र पर होने वाला सामान्य सरकारी व्यय लगातार बढ़ रहा है.

नाइनन विरोधाभाषी आंकड़ों का भी जिक्र करते हैं. नमूना पंजीयन प्रणाली के मुताबिक 2020 में नवजात मृत्यु के मामले प्रति हजार 28 थे, जबकि राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस) के 2019-21 के आंकड़ों में यह 38.4 है. इनमें से किस पर भरोसा किया जाए? एनएफएचएस से पता चलता है कि बेहतर सफाई तक परिवारों की पहुंच 65 फीसदी से ऊपर नहीं है. इसी तरह स्वच्छ ऊर्जा केवल 43 फीसदी परिवारों को ही उपलब्ध है. यूएन के मानव विकास सूचकांक में भारत की रैकिंग कमोबेस एकसमान बनी हुई है. वियतनाम उच्च श्रेणी में पहुंच चुका है. जीएसटी चुकाने वालों के तौर पर पंजीकृत लोगों के दुगुने होने के आंकड़े को कारोबार के दुगुना होने के तौर पर बताया जाता है. मगर, जवाब यह भी देना होगा कि 28.5 करोड़ कर्मचारियों को ई-श्रम पोर्टल पर पंजीयन से फायदा कैसे हुआ?

चीन से हो सकती है बात, पाकिस्तान से क्यों नहीं?

तवलीन सिंह ने इंडियन एक्सप्रेस में लिखा है कि जावेद अख्तर की बीते हफ्ते उन लोगों ने भी तारीफ की जो अक्सर उन पर देशद्रोही होने का आरोप लगाते हैं. पाकिस्तान में उन्होंने अपने श्रोताओं को 26/11 का हमला याद दिलाया. उन्होंने कहा, “हिंदुस्तानियों को पाकिस्तान से शिकायत है, तो क्यों ना हो...हमलावर न नार्वे से आए थे न मिस्र से...और आज भी आपके बीच घूम रहे हैं.”

भारत और पाकिस्तान के बीच बातचीत बंद है. जब मोदी सरकार ने अनुच्छेद 370 को रद्द करके कश्मीर के विशेष अधिकार समाप्त कर दिए तब से बातचीत की सभावनाएं बिल्कुल समाप्त हो गयी हैं. पाकिस्तान की ओर से हो-हल्ला नजरअंदाज कर दिया गया. पश्चिम के लोकतांत्रिक देश भारत से दोस्ती बरकरार रखना चाहते हैं, चीन को रोकने के लिए.

तवलीन सिंह लिखती हें कि पिछले हफ्ते विदेश मंत्रालय के आला अधिकारी बीजिंग गये थे इस उम्मीद से कि हमारे बीच रिश्ते थोड़े अच्छे हो जाएं. चीन से बातचीत हो सकती है तो पाकिस्तान से क्यों नहीं? लेखिका का मानना है कि पाकिस्तान से रिश्ता सुधारना भारत के हित में होगा.

70 के दशक की याद करते हुए वह लिखती हैं कि जब पाकिस्तानियों को भारत आने की इजाजत मिली थी तो कई पाकिस्तानी हमारे देश से बहुत प्रभावित हुए थे. एक पाकिस्तानी महिला ने कहा था, “हमको मालूम ही नहीं था कि यहां औरतें नाइट क्लबों और मयखानों में बैठ कर खुलेआम शराब पी सकती हैं. बिकनी पहन कर समुद्र किनारे घूमने की उनको पूरी आजादी है.”

भारत-पाकिस्तान के लेखक और शायर आने-जाने लगे. जावेद अख्तर ने जब सवाल उठाया कि पाकिस्तान के हुक्मरान ने कभी लता मंगेशकर का स्वागत क्यों नहीं किया, तो तालियां बजीं. तवलीन सिंह लिखती हैं कि समस्या यह है कि अपने देश के अंदर भारतीय जनता पार्टी और मोदी भक्तों ने पाकिस्तान के खिलाफ इतनी नफरत फैलाई है पिछले आठ सालों में कि अगर दोस्ती की छोटी-सी कोशिश भी करते हैं प्रधानमंत्री, तो उनके भक्त नाराज हो जाएंगे. दूसरी समस्या है कि लोकसभा चुनाव करीब आते जा रहे हैं. बीजेपी के आला नेता मानते हैं कि लोकसभा में पूर्ण बहुमत तीसरी बार हासिल करने के लिए हिंदू-मुस्लिम दूरों का बहुत लाभ मिलता है.

सवालों के बीच ‘अमृतकाल’

पी चिदंबरम ने इंडियन एक्सप्रेस में सवालों की झड़ी लगाते हुए ‘अमृतकाल’ पर हमला बोला है. सवाल पूछते हुए ‘देशद्रोही’ होने के लिए भी क्षमा मांगी है. विकास को स्वीकार करते हुए चिदंबरम पूछना चाहते हैं कि क्या सरकार मानती है कि भारत में गरीबी बहुत अधिक है? अगर नीचे के पचास फीसद लोगों के पास सिर्फ तीन फीसद संपत्ति है तो क्या उन्हें गरीब नहीं माना जाना जाएगा? क्या सरकार मानती है कि भारत में बड़े पाने पर बेरोजगारी है? श्रम बल 47.5 करोड़ है, श्रम बल भागीदारी दर 48 फीसदी है तो लगभग 25 करोड़ लोग काम या काम की तलाश क्यों नहीं कर रहे हैं? क्या सरकार को इस बात की जानकारी है कि वैश्विक भूख सूचकांक 2022 में भारत 123 देशों में 101 वें स्थान से खिसक कर 107वें स्थान पर पहुंच गया है? क्या सरकार इस तथ्य से वाकिफ है कि महिलाओं में खून की कमी है?

पी चिदंबरम आगे सवाल करते हैं कि 2023-24 में उर्वरकों के लिए सब्सिडी में साठ हजार करोड़ रुपये की कटौती क्यों की गयी है? क्या यह सच नहीं है कि भारत में एक लाख सत्रह हजार स्कूल ऐसे हैं जिनमें केवल एक अध्यापक हैं? क्या सरकार को पता है कि केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बल में 84, 405 रिक्तियां हैं? क्या यह सही है कि तेईस भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थानों में 8,153 स्वीकृत पदों में से 3,253 शिक्षण पद रिक्त हैं? क्या यह भी सही है कि पचपन केंद्रीय विश्वविद्यालोयं में 18,956 पदो में से 6,180 शिक्षण पद रिक्त हैं? चिदंबरम हर साल लाखों लोगों के देश छोड़ कर चले जाने पर भी सवाल उठाते हैं और इसका जवाब सरकार से मांगते हैं. लेखक का मानना है कि इन सवालों के जवाब से ही लाखों लोगों के लिए अवसरों का झरोखा खुलेगा.

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कर्नाटक में हिन्दू-मुस्लिम सहअस्तित्व का अतीत, पर सियासत है अलग

रामचंद्र गुहा ने टेलीग्राफ में बेंगलुरू की चर्च स्ट्रीट पर मिली एक पुस्तक के हवाले से देश में हिन्दू-मुस्लिम सहअस्तित्व और वर्तमान में हिन्दू-मुस्लिम सियासत पर रोशनी डाली है. जैकी असायाग की पुस्तक “एट द कन्फ्लूएंस ऑफ टू रीवर्स: मुस्लिम्स एंड हिन्दूज इन साउद एशिया” में पूर्व औपनिवेशिक काल में हिन्दू-मुस्लिम संबंध की विवेचना है. इतिहास में हिन्दू और मुसलमान संघर्ष के बजाए शांतिपूर्ण सहअस्तित्व (को-एक्जिस्टेंस) के साथ जीते चले आए हैं. परस्पर आर्थिक निर्भरता सच्चाई रही है.

पुस्तक के एक हिस्से में लिखा गया है कि उत्तर कर्नाटक स्थित दरगाहों में हिन्दू और मुसलमान दोनों का लगातार आना जाना रहा है. सड़क पर स्थित एक दरगाह का जिक्र है जहां ग्रामीण एक मुस्लिम संत के पास हिन्दू-मुस्लिम जाया करते थे. इसमें 12वीं सदी के सुधारक बासवन्ना का भी जिक्र है. हिन्दू और मुसलमान दोनों ही बासवन्ना का स्वरूप बैलों में देखते आए हैं.

रामचंद्र गुहा पुस्तक के हवाले से लिखते हैं कि राजाबग सवर को हिन्दू गुरू मानते हैं और मुसलमान फकीर. एक ही व्यक्ति विष्णु के अवतार माने जाते हैं और अलालह की अक्स भी उनमें ही ढूंढ़ा जाता है. लेखक इस पुस्तक को आगामी विधानसभा चुनाव से जुड़े वातावरण से भी जोड़ते हैं.

भारतीय जनता पार्टी ने चुनाव अभियान को हिन्दू बनाम मुस्लिम के तौर पर बनाया है. हिजाब और हलाल मीट विवाद इसके उदाहरण रहे हैं. टीपू सुल्तान विवाद भी इसी की कड़ी है. जैकी असायग का अनुसंधान कहता है कि हिन्दुओं और मुसलमानों के बीच ‘युद्ध’ वास्तव में मूल दस्तावेजी सबूतों से अलग तथ्यों को विकृत रूप से पेश करना है. प्रोफेसर असायाग ने 1980 और 1990 के दशक में अपने अनुसंधानों को अंजाम दिया है. तब उत्तर और पश्चिम भारत में सांप्रदायिक दंगों का दौर था. प्रधानमंत्री और आरएसएस के प्रमुख लोगों ने समय-समय पर मुसलमानों तक पहुंच बनाने की बात करते रहे हैं. लेकिन, वास्तव में कर्नाटक में बीजेपी के नेता खुलकर हिन्दू-मुस्लिम आधार पर वोटों के ध्रुवीकरण को अंजाम दे रहे हैं.

विवाद से दूर रहने का साहस होना जरूरी

मार्क टुली ने हिन्दुस्तान टाइम्स में लिखा है कि बीते हफ्ते दिल्ली में दो पुस्तकों का एक साथ एक समय पर एक ही हॉल में ऊपर और नीचे विमोचन समारोह हुआ. एक समारोह था ‘न्यू हिस्ट्री ऑफ इंडिया’ के विमोचन का. इसके लेखक रूद्रांग्शु मुखर्जी और शोभिता पुंजा थे. दूसरा समारोह इरफान हबीब की पुस्तक के विमोचन से जुड़ा था जो मौलाना अबुल कलाम आजाद पर केंद्रित थी. लेखक दोनों ही समारोहों में शरीक हुए और खुद को किसी असमंजस से दूर रखा. पहली पुस्तक धर्म पर चर्चा पर जोर देती है, धर्म को नकारती नहीं. वहीं दूसरी पुस्तक में अबुल कलाम आजाद को भारतीय विविधता के जनक के तौर पर मजबूत बनाती है.

मार्क टुली लिखते अपने ट्यूटर रॉबर्ट रून्सी को याद करते हैं. वे बाद में आर्क बिशप हो गये. महिलाओं के मसले पर जब चर्च में विवाद बढ़ा तो रॉबर्ट रून्सी ने किसी का पक्ष लेने के बजाए विवाद की परिधि से बाहर खड़े होगये. उनके शब्दों को लेखक भुला नहीं पाते, “मैं चर्च को ठीक करने के लिए बिशप बना था, इसे तोड़ने के लिए नहीं.” भारत सरकार से बीबीसी के विवाद के मामले में लेखक मार्क टुली ने यही रास्ता अपनाया. उन्होंने बीबीसी से अपने अतीत के जुड़े रहने के बावजूद बीबीसी का पक्ष नहीं लिया. मार्क लिखते हैं कि एक पत्रकार के रूप में मैंने किसी का पक्ष नहीं लिया है. वे लिखते हैं कि ऐसे मौके जरूर आते हैं जब हर किसी को संघर्ष करना पड़ता है. लेकिन, ऐसे मौके जीवन में बहुत कम आते हैं.

(हैलो दोस्तों! हमारे Telegram चैनल से जुड़े रहिए यहां)

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