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“हम आपको सब बताएंगे. हर कोई बताएगा कि उनके साथ क्या हुआ, लेकिन पुलिस के सामने कोई कुछ नहीं बोल पाता.”
ये दर्द 14 साल के अरमान के परिवार वालों के साथ-साथ पास बैठे दूसरे नाबालिग लड़कों और उनके परिवार के चेहरे पर साफ देखी जा सकती थी. पिछले साल दिसंबर में उत्तर प्रदेश के बिजनौर जिले के नगीना कस्बे में इन बच्चों को पुलिसिया यातना का कथित तौर पर शिकार बनाया गया था. सीएए के विरोध में प्रदर्शन हो रहे थे और पुलिस और प्रदर्शनकारियों के बीच हुई झड़प का शिकार इन बच्चों को होना पड़ा. जिन 21 बच्चों को बिजनौर सिविल लाइन्स में एक रात और फिर स्थानीय नगीना पुलिस स्टेशन में दो रात रखा गया, उनमें ये दोनों बच्चे भी शामिल थे. आरोप है कि इनके पांव, हाथ, कलाई और उंगलियों की गांठों पर बेरहमी से मारा गया.
इन बच्चों ने बताया कि उन्हें गालियां दी गईं, बेइज्जत किया गया और कहा गया कि अगर वे लॉकअप में सोए तो उनकी आंखों को छलनी कर दिया जाएगा. द क्विंट तब बच्चों से मिलने गया था और उसने देखा था कि वे बुरी तरह चोटिल थे. उनकी आपबीतियों को आप यहां पढ़ सकते हैं.
एक साल बाद, अपनी सीरिज ‘सीएए: ऐसा न हो कि हम भूल जाएं’ के साथ हम नगीना के उसी शाहजहीर मोहल्ले में पहुंचे और उन बच्चों से बात की. बच्चों और उनके परिवार वालों ने हमें बताया कि मीडिया से बात करने वालों को यूपी पुलिस ने कथित तौर पर धमकी दी और उन्हें बुलाकर ऐसे बयानों पर दस्तखत कराए कि बच्चों को टॉर्चर नहीं किया गया था.
एक साल बाद भी जमीनी स्तर पर खौफ कायम है. बहुत से परिवारों ने तो बात करने से भी मना कर दिया, यह कहते हुए कि वे नहीं चाहते कि उनके बच्चों को और नुकसान हो. जिन लोगों ने हमसे बात की, उनके नाम हमने बदल दिए हैं ताकि उन्हें कोई खतरा न हो.
पिछले साल 22-23 दिसंबर की बात है. बच्चों को तीन दिन हिरासत में रखने के बाद छोड़ दिया गया था. पुलिसवालों ने मोहल्ले के आने-जाने वाले रास्तों पर पैनी नजरें रखी हुई थीं. परिवारवालों ने बताया कि पत्रकारों की भीड़ जमा थी और पुलिस की निगाहें इस पर लगी थीं कि कौन कहां आ-जा रहा है.
अरमान की मां आफरीन ने कहा,
जब इस सिलसिले में खबरें छपनी शुरू हुई तो पुलिसवालों ने उन बच्चों के पिताओं को पुलिस स्टेशन आने को कहा.
इसके बाद अरमान के पिता अली ने बताया,
अरमान की मां समीना ने कहा कि पुलिसवाले बार-बार फोन कर रहे थे और इससे वह बेचैन हो रही थीं. “मैं सिर्फ चाहती थी कि मेरे बच्चा और शौहर महफूज रहें. हमने तो सिर्फ दो या तीन रिपोर्टर्स से बात की थी. फिर हमने उन्हें दरवाजे से लौटाना शुरू कर दिया.”
जब उनसे पूछा कि क्या उन्होंने उन नंबरों पर फोन लगाए जो रिपोर्टर्स ने उन्हें दिए थे, तो उन्होंने जवाब दिया, कि ऐसा करके वे अपने बच्चे को मुसीबत में नहीं डालना चाहते थे.
इखलाक (बदला हुआ नाम) के पिता इकबाल ने भी यही चिंता जाहिर की और कहा कि इसीलिए उन्होंने मीडिया से दूरी बनाए रखने का फैसला किया.
उन्होंने बताया, “लोगों ने ऐसे वीडियो बनाए जिनमें हमारे बेटे का चेहरा तो साफ नहीं दिख रहा था लेकिन हमारा मकान पहचाना जा सकता था. फिर हमने लोगों से कहना शुरू किया कि हम किसी से बात नहीं करना चाहते. हमने उन रिपोर्टर्स से भी बात करनी बंद कर दी जो हमारे पास आ रहे थे.”
शादाब (बदला हुआ नाम) कहता है कि वह टॉर्चर के शिकार लड़कों में से एक है. उसने बताया कि जिन लोगों ने मीडिया से बात की, उन्हें पुलिस ने नोटिस भेजा. वह कहता है,
कुछ दिनों बाद पुलिस अधिकारी उन बच्चों के पिता से मिले. वहां कुछ स्थानीय नेता भी मौजूद थे. वहां अली और इकबाल, दोनों बच्चों के पिता से कथित तौर पर बयानों पर दस्तखत कराए गए.
अली का कहना है,
अली और इकबाल बताते हैं कि पुलिस ने उन कागजों की कोई नकल उन्हें नहीं दी.
एक स्थानीय नेता इस मीटिंग में मौजूद था, लेकिन खुद का नाम नहीं बताना चाहता क्योंकि उसके खिलाफ भी ऐसा ही नोटिस आया था. उसने बताया, “इन कागजों में लिखा था कि पुलिस ने बच्चों के साथ बुरा सलूक नहीं किया. उन्हें कुछ नहीं कहा. उनमें यह भी लिखा था कि बच्चे घर के बाहर मसजिद के पास किसी काम से गए थे और भीड़ के साथ पुलिस ने उन्हें भी पकड़ लिया था.”
स्थानीय नेता ने सवाल करते हुए कहा, “उन्हें बार बार पुलिस स्टेशन बुलाया जाता था. वे घबराए हुए थे. क्या आपको लगता है कि वे पुलिस स्टेशन जाकर यह पढ़ सकते हैं कि उन कागजों में क्या लिखा था.”
अली ने आगे बताया,
शादाब के परिवार की तरह ऐसे कई लोग थे, जो अपने घरों से बाहर निकले ही नहीं, और पुलिस से पूरी तरह से दूर रहे.
सर्दियां आते ही दर्द लौट आया है. आफरीन कहती है, “अरमान ने मुझे बताया कि उसके बदन में फिर से दर्द हो रहा है.”
इस हादसे के बाद अरमान स्कूटर पर अपने कजिन्स के साथ चक्कर लगाने निकला. लेकिन दूर किसी पुलिस वाले को देखकर वह थरथराने लगा, जैसा कि उसकी मां बताती है, और उसने तुरंत तेजी से स्कूटर मोड़ दिया. वह बताती हैं, “वह इतना डर गया था कि स्कूटर संभाल नहीं पाया और वह और उसके कजिन्स स्कूटर से गिर गए और उन्हें चोट भी लग गई.”
इखलाक तो एक साल से घर के बाहर निकला ही नहीं. उसके परिवार ने क्विंट को बताया, “लॉकडाउन के समय लोगों ने पूछा कि क्या इखलाक को हमने कहीं दूसरी जगह भेज दिया है. हमने उन्हें बताया कि वह यहीं है लेकिन बाहर नहीं निकलता.”
आगे शादाब ने क्विंट को बताया,
उसने कहा, “उन्होंने मुझे दोनों तरफ से पकड़ा और मुझे लगातार जोर जोर से मारते रहे.” शादाब ने बताया कि बहुत से लोगों ने गिरफ्तारियों से बचने के लिए रातों रात शहर छोड़ दिया. “नगीना तो करीब करीब आधा खाली हो गया था.”
हमने बिजनौर के पुलिस सुपरिंटेंडेंट धर्म वीर सिंह से तीन सवाल पूछे:
सिंह ने इन आरोपों पर टिप्पणी करने से इनकार किया, “कौन क्या आरोप लगा रहा है, इस बारे में कई जांच चल रही हैं. लोग पुलिस के बारे में बहुत सी बातें करते हैं लेकिन मैं कोई प्रवक्ता नहीं, जो उन सभी का जवाब दे सकूं. जब निरीक्षण करने की जरूरत होगी, हम जांच करेंगे. वह सब खत्म हो गया है. अब आप यह स्टोरी लिख रही हैं और यह सही नहीं होगा कि मैं इस पर टिप्पणी करूं.”
जब यह कहा गया कि आरोप बिजनौर के पुलिस वालों पर हैं, उन्होंने कहा,
हमने यही सवाल डीआईजी मुरादाबाद रेंज रमित शर्मा और नगीना सर्किल ऑफिसर राकेश कुमार श्रीवास्तव से किए. शर्मा ने हमें बिजनौर के एसपी से बात करने को कहा, और नगीना के सीओ ने हमारे सवालों के जवाब दिए.
“सभी आरोप बेबुनियाद हैं. सब झूठ है, ऐसा कुछ नहीं हुआ. सारी फाइलें अदालत में जमा कर दी गई हैं. जमानत के कागज और सभी कुछ हो रहा है.”
हमने उनसे कहा कि हमने खुद लड़कों की चोटों को देखा है, उन चोटों वह क्या कहेंगे? श्रीवास्तव ने कहा,
फिर उन्होंने कहा कि नगीना सीओ के तौर पर उनका ट्रांसफर 3 अक्टूबर को हुआ है. हमने पूछा कि क्या कोई जांच हुई थी. उन्होंने कहा, “इस मामले में कोई जांच नहीं हुई.”
अब, कागज पर दस्तखत कराने, मीडिया से बात न करने के लिए कहना और नाबालिग बच्चों पर यातना के गंभीर आरोपों के साथ बिजनौर कितनी ही यादों को दफन कर चुका है. चूंकि इसी में सभी की भलाई है.
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