Home Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019News Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019India Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019दक्षिण भारत के राज्य केंद्र सरकार से क्यों खफा हैं?

दक्षिण भारत के राज्य केंद्र सरकार से क्यों खफा हैं?

Fiscal Federalism: मोदी सरकार की राजकोषीय क्षमता और राज्यों को हिस्सा देने की मंशा धीरे-धीरे घटती जा रही है.

दीपांशु मोहन
भारत
Published:
<div class="paragraphs"><p>7 फरवरी को नई दिल्ली में जंतर-मंतर पर केंद्र के खिलाफ विरोध प्रदर्शन में कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया, उपमुख्यमंत्री डीके शिवकुमार और कर्नाटक कांग्रेस के दूसरे नेता.</p></div>
i

7 फरवरी को नई दिल्ली में जंतर-मंतर पर केंद्र के खिलाफ विरोध प्रदर्शन में कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया, उपमुख्यमंत्री डीके शिवकुमार और कर्नाटक कांग्रेस के दूसरे नेता.

फोटो- PTI

advertisement

केंद्र सरकार की तरफ से केरल और कुछ दक्षिणी और विपक्ष शासित राज्यों पर खामोशी से लगा दी गई “वित्तीय पाबंदी (Financial Embargo)” ने उत्तर-दक्षिण के विभाजन (North-South divide) की बहस को फिर से हवा दे दी है. इस बहस ने केंद्र और राज्यों के बीच एक नया मोर्चा खोल दिया है.

बीते कुछ सालों में वास्तविक राजकोषीय हस्तांतरण की राजनीतिक अर्थव्यवस्था में मोदी सरकार द्वारा बड़े पैमाने पर किए ‘राजनीतिकरण’ का देखा गया है.

जैसा कि हाल की एक चर्चा में पाया गया कि सरकार ने कुछ राज्यों की कर्ज लेने की वित्तीय आजादी को सीमित कर दिया है. मौजूदा समय में राज्य सरकारें जिस गंभीर वित्तीय संकट का सामना कर रही हैं, उसे देखते हुए केरल के वित्त मंत्री केएन बालगोपाल का बयान गौर करने लायक है कि उनके राज्य की शुद्ध ऋण सीमा 4,000 करोड़ रुपये कम कर दी गई है.

हाल ही में, तेलंगाना और तमिलनाडु की सरकारों ने भी राजकोषीय प्राथमिकताओं को तय करने में समर्थ होने के लिए संवैधानिक रूप से राज्यों की आजादी को बचाने की जरूरत को लेकर इसी तरह की टिप्पणियां कीं.

इसके चलते केंद्र और राज्यों के बीच आपसी भरोसे की कमी हो गई है जिससे वित्त आयोग की सिफारिशों पर अमल करना बेहद मुश्किल हो गया है.

आगे पेश किए गए आंकड़े केंद्र-राज्य फाइनेंस की मौजूदा हकीकतों को सामने रखते हैं.

केंद्र-राज्य वित्तीय संबंधों में धन का वास्तविक हस्तांतरण

ओपी जिंदल ग्लोबल यूनिवर्सिटी के सेंटर फॉर न्यू इकोनॉमिक्स स्टडीज (CNES) के इन्फोस्फीयर में हमारी रिसर्च टीम ने हाल ही में केंद्र-राज्य राजकोषीय संबंधों का गहराई से आकलन करते हुए एक अध्ययन पूरा किया है. हमारे निष्कर्षों के विस्तृत नतीजों पर यहां पहले चर्चा की गई थी.

वित्त मंत्रालय द्वारा साझा की गई फैक्टशीट मिलने के बाद हमारी टीम ने केंद्र से राज्य सरकारों को टैक्स हस्तांतरण-हिस्से पर उपलब्ध सरकारी स्रोतों से हासिल डेटा (2019 से) का अध्ययन करते हुए आगे की पड़ताल शुरू कर दी.

इससे सामने आए हुए कुछ नतीजे इस तरह हैं:

2019-24 के दौरान टैक्स हस्तांतरण

स्रोत: लेखक की गणना (इन्फोस्फेयर, CNES)

ऊपर दिए गए आंकड़े 2019 से केंद्र सरकार द्वारा सभी राज्य सरकारों को हस्तांतरित की गई कुल शुद्ध टैक्स हस्तांतरण आय (करोड़ रुपये में) के बारे में बताते हैं. इनमें केंद्र शासित प्रदेश शामिल नहीं हैं.

2019-20 से 2023-24 के दौरान केंद्र से राज्यों को कुल टैक्स हस्तांतरण

स्रोत: लेखक की गणना (इन्फोस्फेयर, CNES)

ऊपर बताए गए आंकड़े साल-दर-साल आधार पर केंद्र से टैक्स हस्तांतरण का मैक्रो-ट्रेंड दिखाते हैं. यह पिछले कुछ सालों में केंद्र सरकार की अर्जित राजकोषीय राजस्व क्षमता की बानगी है. महामारी वर्ष (2020-21) समग्र रूप से सरकार के राजकोषीय बजट के लिए मुश्किल दौर था और इसके नतीजे में केंद्र से राज्यों को टैक्स हस्तांतरण का स्तर सबसे कम था.

ऐसे में ज्यादा राज्यों को ‘उधार देने वाली संस्थाओं’ से हेल्थकेयर और महामारी से जुड़े दूसरे खर्चों को पूरा करने के लिए बड़े पैमाने पर उधार लेना पड़ा, जिससे उनके राजकोषीय घाटे-कर्ज के स्तर में और बढ़ोत्तरी हुई.

नीचे दिए आंकड़े कुछ विपक्ष-शासित की तुलना में बीजेपी-शासित राज्यों के लिए केंद्र से राज्य को टैक्स हस्तांतरण स्तर पर ‘चुनिंदा’ नजरिये की बानगी पेश करते हैं (इसके सोर्स के लिए यहां क्लिक करें).

गैर-बीजेपी शासित राज्यों में टैक्स हस्तांतरण.

स्रोत: लेखक की गणना (इन्फोस्फेयर, CNES)

बीजेपी शासित राज्यों में टैक्स हस्तांतरण.

स्रोत: लेखक की गणना (इन्फोस्फेयर, CNES)

बिहार और यूपी जैसे राज्यों को केंद्र से बहुत ज्यादा टैक्स-हस्तांतरण हिस्सा मिलता है, जिसकी खास वजह उनकी स्थानीय, भौगोलिक और सामाजिक-आर्थिक जरूरतें हैं.

लेकिन हरियाणा, पंजाब और केरल जैसे राज्यों के लिए पिछले पांच सालों में टैक्स-हस्तांतरण हिस्से में कोई उल्लेखनीय बढ़ोत्तरी नहीं हुई है.

इसके अलावा, तमिलनाडु, छत्तीसगढ़, हिमाचल और उत्तराखंड जैसे राज्यों के शुद्ध हस्तांतरण हिस्से में भी कोई बड़ा बदलाव नहीं हुआ है, हालांकि तमिलनाडु जैसे राज्य, अपने मजबूत GSDP (सकल राज्य घरेलू उत्पादन) की वजह से केंद्र सरकार के टैक्स राजस्व हिस्से में बहुत ज्यादा योगदान देते हैं.

राज्यों की राजकोषीय स्थिति और कर्ज

16वें वित्त आयोग (अरविंद पनगढ़िया की अध्यक्षता में) के लिए बड़ी  जिम्मेदारियों में से एक है- भारी कर्ज वाले राज्यों के लिए राजकोषीय खाते को दुरुस्त करने की एक उपयुक्त स्ट्रेटजी बनाना ताकि उनकी खर्च प्राथमिकताओं और जनकल्याण में संतुलन बनाते हुए उनके कर्ज के बोझ को कम किया जा सके.

नीचे दिए गए कर्ज के कुछ आंकड़े भारत के राज्यों की राजकोषीय स्थिति का हाल बयान करते हैं.

राज्य-सरकारों का ऋण स्तर: राज्य स्तर पर कर्ज और जीडीपी का अनुपात विशिष्ट वित्तीय स्थितियों और नीतियों का आकलन करने के लिए काफी कारगर है. यह स्थानीय अनुपात क्रेडिट रेटिंग, बजट निर्णय और राजकोषीय रणनीतियों को काफी हद तक प्रभावित करता है, जिससे राज्यों को दीर्घकालिक वित्तीय स्थिरता और जिम्मेदार राजकोषीय प्रबंधन बनाए रखने की ताकत मिलती है.

इसकी गणना किसी राज्य के कुल बकाया कर्ज को उसकी GDP से भाग देकर और इसे प्रतिशत के रूप में पेश करने के लिए 100 से गुणा करके की जाती है, इस अनुपात को देखकर और दुरुस्त कर राज्यों के लिए ठोस आर्थिक नीति बनाना आसान होता है.

GSDP का प्रतिशत कर्ज.

स्रोत: लेखक की गणना (इन्फोस्फेयर, CNES)

भारतीय राज्यों के GDP के अनुपात में बकाया कर्ज: हाल के बजट अनुमानों के मुताबिक, इस समय भारतीय राज्यों में मिजोरम जीडीपी के मुकाबले सबसे ज्यादा कर्ज के अनुपात से जूझ रहा है, जो कि 53% है.

क्रमशः 44% और 47% के अनुपात के साथ पंजाब और नागालैंड राज्य दूसरे पायदान पर हैं. ध्यान देने वाली बात है कि इससे बुनियादी ढांचे के विकास, सोशल वेलफेयर योजनाओं और सार्वजनिक सेवाओं में निवेश में राज्य के खजाने पर बोझ पड़ सकता है.

ADVERTISEMENT
ADVERTISEMENT
ओडिशा सख्त राजकोषीय अनुशासन पर अमल करते हुए कर्ज का स्तर कम बनाए रखता है. ओडिशा सालाना बजट घाटे की सीमा के अंदर रहता है, जिससे बढ़ी हुई ब्याज दरों से बचाव होता है और उधार के खर्चों को कम करने में मदद मिलती है. ओडिशा हालांकि धान का एक प्रमुख उत्पादक राज्य है, मगर यह पंजाब के उलट, बहुत ज्यादा सब्सिडी पर खर्च से बचता है. भारत के गेहूं की बड़ी मात्रा का उत्पादन करने वाले पंजाब में बारिश का पैटर्न अनिश्चित है.

खासतौर से आर्थिक रुकावटों के सामने समझौता किए बिना बजट खर्च को सीमा में रखने का ओडिशा का तरीका, राजकोषीय अनुशासन को कायम रखने में मददगार है. इसके उलट पंजाब तमाम वित्तीय मोर्चों पर मुश्किल का सामना कर रहा है. यह स्थिति भारत में राज्यों के विरोधाभासी वित्तीय दृष्टिकोण को उजागर करती है.

जैसा कि असम के मामले में देखा गया है. इसके बढ़ते कर्ज का कारण विकास परियोजनाओं के लिए वित्तीय संस्थानों और केंद्र सरकार से लिया गया कर्ज है. विपक्षी आलोचकों की दलील है कि सीएम हिमंत बिस्वा सरमा की लोकलुभावन नीतियां वित्तीय दबाव को बढ़ा रही हैं. ठेकेदारों का बकाया भुगतान और GSDP-कर्ज अनुपात को बढ़ाने का विधायी फैसला चिंता पैदा करने वाला है.

2021-22 से 2022-23 तक राज्यों की बाजार उधारी में प्रतिशत परिवर्तन.

स्रोत: लेखक की गणना (इन्फोस्फेयर, CNES)

जैसा कि ऊपर देखा गया है, हिमाचल प्रदेश की बाजार उधारी में 250% की बढ़ोत्तरी हुई है, जो पिछले बीजेपी प्रशासन में राजकोषीय कुप्रबंधन की मिसाल है. बीजेपी सरकार ने संसाधन बढ़ाने के बजाय बड़े पैमाने पर उधार को बढ़ावा दिया.

उपमुख्यमंत्री मुकेश अग्निहोत्री राज्य की खस्ता आर्थिक हालत के लिए केंद्र सरकार द्वारा अतिरिक्त संसाधन उपलब्ध नहीं कराने और मदद के उपायों से इन्कार को जिम्मेदार मानते हैं. मौजूदा सरकार को काफी सीधी देनदारियां विरासत में मिलीं हैं, खासतौर से कर्ज, जिसकी वजह से भारतीय रिजर्व बैंक ने हिमाचल प्रदेश को सबसे ज्यादा कर्ज-तनाव वाले राज्यों में पांचवें पायदान पर रखा है.

जैसा कि पहले चर्चा की गई है, मध्य प्रदेश और पंजाब भी अपने राज्य के खर्च को पूरा करने के लिए बाजार की ज्यादा उधारी से जूझ रहे हैं.

निष्कर्ष

केंद्र सरकार ने, जिसे कानून टैक्स-आधारित राजस्व संसाधन जुटाने और खर्च करने के लिए ज्यादा राजकोषीय ताकत और विवेकाधिकार देता है, खर्च के माध्यम से राज्यों की मदद करने में क्या भूमिका निभाई?

  • जब राज्यों को उनकी जरूरत की चीजें देने की बात आती है तो केंद्र सरकार ने केवल यथास्थिति बनाए रखी, उसने राज्य की जनकल्याण और राजस्व जरूरतों को पूरा करने के लिए ज्यादा टैक्स राजस्व हस्तांतरित नहीं किया है या ज्यादा हस्तांतरण की व्यवस्था नहीं की.

  • मोदी शासन में केंद्र सरकार (पिछले कुछ सालों से, हमारे आंकड़ों के 2019 से आगे पढ़ें) ने अपनी राजकोषीय क्षमता और उन राज्यों को मदद देने की इच्छाशक्ति में धीरे-धीरे कमी आई है, जिन्हें विकास और जनकल्याण के लिए ज्यादा राजस्व की जरूरत है.

  • खराब गुणवत्ता वाला सरकारी डेटा किसी के लिए भी आवंटित टैक्स-हस्तांतरण आय से होने वाले संभावित लाभ/हानि का असरदार ढंग से विश्लेषण करना बेहद मुश्किल बना देता है.

यह एक ‘आर्थिक रूप से कमजोर’ और ‘असुरक्षित’ केंद्र सरकार की साफ निशानी है, जो सिर्फ झूठे आर्थिक ‘आशावाद’ के खोखले नारे लगाकर संतुष्ट है.

(दीपांशु मोहन इकोनॉमिक्स के प्रोफेसर और सेंटर फॉर न्यू इकोनॉमिक्स स्टडीज (CNES), जिंदल स्कूल ऑफ लिबरल आर्ट्स एंड ह्यूमैनिटीज, ओपी जिंदल ग्लोबल यूनिवर्सिटी के निदेशक हैं. यह एक ओपिनियन पीस है और यह लेखक के अपने विचार हैं. द क्विंट इनके लिए जिम्मेदार नहीं है.)

(द क्विंट में, हम सिर्फ अपने दर्शकों के प्रति जवाबदेह हैं. सदस्य बनकर हमारी पत्रकारिता को आगे बढ़ाने में सक्रिय भूमिका निभाएं. क्योंकि सच का कोई विकल्प नहीं है.)

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

Published: undefined

ADVERTISEMENT
SCROLL FOR NEXT