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करीब एक महीने से उपद्रव की आग में राजस्थान झुलस रहा है. राजपूत संगठनों के दबाव में आकर सरकार ने कुख्यात अपराधी आनंदपाल सिंह पुलिस एनकाउंटर मामले की जांच केन्द्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) से कराने की सिफारिश करने का फैसला लिया है.
24 जून को चुरू जिले के एक गांव में राजस्थान पुलिस के स्पेशल आॅपरेशन ग्रुप ने आनंदपाल सिंह को एनकाउंटर में मार गिराया था. आनंदपाल के रिश्तेदारों और परिवार का कहना है कि वह सरेंडर करना चाहता था लेकिन वो राजनैतिक षडयंत्र का शिकार हो गया. 13 जुलाई को भारी पुलिस सुरक्षा व्यवस्था के बीच उसका अंतिम संस्कार किया गया.
परिवारवालों का कहना है कि अगर वह जिंदा पकड़ा जाता तो वो कई नेताओं का नाम सामने ला सकता था. उनका दावा है कि कई बीजेपी नेताओं से आनंदपाल की नजदीकी थी.
परिवार और जिस समुदाय से आनंदपाल आता था, राणा राजपूत और अन्य राजपूत समुदाय के नेता इस एनकाउंटर को लेकर सीबीआई जांच की मांग कर रहे थे. लेकिन राज्य सरकार ने एसआईटी जांच करवाने पर सहमति दी थी.
12 जुलाई को आनंदपाल के गांव सांवराद में शोक सभा आयोजित किया गया था, जिसमें हजारों लोग जुटे थे. सभा के दौरान ही हिंसा हुई, जिसमें 30 पुलिसकर्मी और इतने ही भीड़ में शामिल आम नागरिक जख्मी हो गए थे. इसके अलावा एक की जान चली गई थी.
अब एक महीने बाद सरकार जांच के लिए तैयार हुई है? क्यों? ये एक बड़ा सवाल है.
अगर राजनैतिक विश्लेषकों की मानें तो इसके पीछे दो वजहें हो सकती है. राजपूत समुदाय बीजेपी के पारंपरिक वोटर और समर्थक रहे हैं लिहाजा पार्टी वोट बैंक को गंवाना नहीं चाहेगी. इसलिए राजपूत समुदाय से आने वाले विधायकों और पार्टी आलाकमानों से फीडबैक मिलने के बाद राज्य सरकार सीबीआई जांच के लिए तैयार हो गई है.
बीजेपी को ये डर भी सता रहा है कि कांग्रेस इस मुद्दे को भुनाकर उनके पारंपरिक वोट बैंक में सेंध लगाने की कोशिश में जुट जाएगी.
कांग्रेस नेता और राज्य के पूर्व सीएम अशोक गहलोत ने कहा था कि सरकार को प्रदर्शनकारियों से मुलाकात करनी चाहिए और सीबीआई जांच की मांग होने पर इंकार नहीं करना चाहिए. उन्होंने ट्विटर पर कहा कि-
राज्य सरकार अब सार्वजनिक दबाव के तहत आनंदपाल एनकाउंटर के जांच की मांग को स्वीकार करने के लिए मजबूर हो गई है. उन्होंने इतने लंबे समय बाद जांच का फैसला क्यों दिया? क्या बीजेपी सरकार राज्य में शांति व्यवस्था भंग होने का इंतजार कर रही थी?
सीबीआई जांच से सहमत होने के पीछे दूसरा और एक प्रमुख कारण यह है कि 21 जुलाई से 23 जुलाई तक बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह जयपुर में होंगे. वहीं राजपूत समुदाय ने 22 जुलाई को एक बड़ा विरोध प्रदर्शन आयोजित करने की धमकी दी है. वसुंधरा राजे सरकार राज्य में ऐसी कोई भी स्थिति पैदा नहीं करना चाहेगी.
राज्य सरकार शाह की यात्रा के दौरान कोई भी आंदोलन नहीं होने देना चाहेगी और यह दिखाना चाहेगी कि राज्य में सब कुछ ठीक है, इसलिए भी वे जांच की मांग पर सहमत हो गए.
आनंदपाल सिंह राजस्थान का एक कुख्यात गैंगस्टर था और उसपर छह हत्या के मामले दर्ज थे. इसके अलावा 1992 और 2017 के बीच उसके खिलाफ 37 मामले दर्ज हुए थे. वह करीब डेढ़ साल पहले परबतसर की एक अदालत में पेशी के बाद अजमेर केंद्रीय कारागार जाते समय सुरक्षागार्डो की कथित मिलीभगत से फरार हो गया था.
इसके बाद 24 जून, 2017 को वह एक पुलिस मुठभेड़ में मारा गया. उसकी मौत विवादास्पद हो गई क्योंकि उसके समुदाय राणा राजपूत और राजपूतों ने आरोप लगाया कि आनंदपाल सरेंडर करना चाहता था लेकिन वसुंधरा राजे के मंत्रिमंडल के कुछ सहयोगियों, जिन्होंने कथित तौर पर उसे राजनीतिक संरक्षण प्रदान किया था, को बचाने के लिए उसे मरवा दिया गया. यही वजह रही कि फरार होने के बाद लगभग 21 महीने तक पुलिस की चंगुल से वहा बचता रहा.
बीजेपी में भी इस मामले को लेकर मतभेद शुरू हो गया.
राजपूत नेता नरपत सिंह राजवी और पूर्व उपराष्ट्रपति बीएस शेखावत के दामाद ने अमित शाह को लिखा था कि नागौर जिले के गांव में हिंसा के बाद राजपूतों के खिलाफ राजे सरकार भेदभाव कर रही है. राजपूत लड़कों को पुलिस स्टेशनों पर बुलाया जा रहा है और उन्हें अनावश्यक रूप से परेशान किया जा रहा है.
जबकि ये तथ्य है कि 90% राजपूत बीजेपी को वोट देते हैं.
बीजेपी के एक और वरिष्ठ नेता घनश्याम तिवारी ने भी राजे सरकार से सवाल किया कि वे सीबीआई जांच के लिए क्यों नहीं राजी हो रहे हैं? उन्होंने ये भी कहा कि कैसे राज्य के गृह मंत्री को मुठभेड़ के बारे में नहीं पता था? दरअसल, राजस्थान के गृह मंत्री जीसी कटारिया ने खुद कहा है कि जब उन्हें मुख्यमंत्री ने बधाई देने के लिए बुलाया तब उन्हें मामले के बारे में पता चला.
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