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सेंट्रल बोर्ड ऑफ सेकेंडरी एजुकेशन (CBSE) ने एक बार फिर 12वीं पास कर चुके लाखों छात्रों को मॉडरेशन यानी मानकीकरण के नाम पर निष्पक्ष मार्किंग सिस्टम से दूर रखा है. बता दें कि पिछले साल ही मानव संसाधन मंत्रालय ने साफ किया था कि वो मॉडरेशन सिस्टम को खत्म करने जा रहा है, लेकिन ऐसा हुआ नहीं.
बता दें कि करीब 13 महीने पहले, 24 अप्रैल 2017 को सीबीएसई और देश के 31 दूसरे बोर्ड ने ये तय किया था कि एग्जाम में छात्रों को नंबर बढ़ाकर (मॉडरेशन पॉलिसी) नहीं दिए जाएंगे. इस पॉलिसी को 2017 में ही बंद कर दिए जाने का फैसला किया गया था लेकिन एक याचिका पर सुनवाई करते हुए दिल्ली हाईकोर्ट ने साल 2017 के लिए मॉडरेशन पॉलिसी को जारी रखने का निर्देश दिया था. 2018 से इसे बिलकुल हटा देने की बात थी.
पिछले साल खुद केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री प्रकाश जावडेकर ने बोर्ड के इस तरीके के मार्किंग सिस्टम की आलोचना की थी, उन्होंने ये भी कहा था कि इसे खत्म करने की जरूरत है.
ऐसे में CBSE के अपने बयान और केंद्र सरकार के भरोसे के बाद 2018 में बिना मॉडरेशन पॉलिसी के नतीजे जारी करने चाहिए थे. लेकिन 26 मई को आए CBSE के कक्षा 12 के नतीजे का विश्लेषण कुछ और कहानी बयां कर रहा है. डेटा एनालिसिस के मुताबिक, मॉडरेशन प्रक्रिया अब भी जारी है और पहले की ही तरह छात्रों को निष्पक्ष मार्किंग सिस्टम से दूर रखा गया है.
आगे बढ़ने से पहले समझ लीजिए कि आखिर मॉडरेशन सिस्टम है क्या?
मॉडरेशन सिस्टम के तहत परीक्षा में पाए गए छात्रों के नंबर को बढ़ाकर एक निश्चित अंक तक किया जाता था.
पिछले कई सालों में हुए मॉडरेशन पॉलिसी पर नजर डाले तो कई चीजें सामने आती हैं. जैसे किसी एक खास सब्जेक्ट में अविश्वसनीय तरीके से बहुत सारे छात्रों को '95' नंबर ही दे देने से सीबीएसई के मॉडरेशन सिस्टम का सिक्रेट समझ में आता है.
इस साल भी बोर्ड ने ऐसा ही किया है. नीचे दिए ग्राफ पर नजर डालिए, ये ग्राफ गणित के क्लास 12 में बैठे छात्रों का है. ग्राफ दिखाता है कि 5 लाख से भी ज्यादा छात्रों ने इस साल गणित का पेपर दिया था.
ग्राफ को ध्यान से देखने पर समझ आता है कि '95 नंबर' किसी भी दूसरे नंबर से ज्यादा बार छात्रों को दिया गया है. ध्यान से देखने पर पता चलता है कि करीब 39 हजार छात्रों को 100 में से 95 नंबर दिया गया है. ये संख्या 0 से लेकर 100 नंबर तक के बीच में सबसे ज्यादा छात्रों को दी गई है. मतलब सबसे ज्यादा छात्रों को 95 नंबर ही दिया गया है. आखिर क्यों 95 नंबर ही सबसे ज्यादा बार दिया गया है? यानी मॉडरेशन प्रणाली बंद नहीं हुई?
अकाउंटेंसी के पेपर में भी देखिए, 60 से 100 नंबर के बीच में सबसे ज्यादा छात्रों को 95 नंबर ही दिया गया है.
आईआईटी कानपुर के प्रोफेसर धीरज सांघी का कहना है-
अगर मान लें कि दो छात्र A और B हैं. उनके दो सब्जेक्ट में पाए गए नंबर के आधार पर ही कॉलेज में प्रवेश मिलेगा. सब्जेक्ट 1 में अगर A 95 अंक हासिल करता है और B 85 अंक तो मॉडरेशन के बाद B के अंक 95 कर दिए जाते हैं.
वहीं अगर सब्जेक्ट 2 में A, 95 अंक हासिल करता है और B, 96 अंक, तो एडमिशन के दौरान वास्तव में B, A से कुल 9 अंकों से पीछे हैं लेकिन वो मॉडरेशन के बाद 1 अंक आगे हो जाता है और B को कॉलेज की सीट मिल जाएगी. खामियाजा इतना बड़ा है.
मॉडरेशन की ये समस्या पिछले कई सालों से लगातार चलती आई है. साल 2009 से 2017 की बात करें तो ‘95 नंबरों’ का ये गड़बड़झाला CBSE के कई सब्जेक्ट्स में दिखता है.
दिल्ली हाईकोर्ट के पिछले साल के ऑर्डर के बावजूद साल 2017 में भी ये 95 नंबर का ‘स्पाइक’ देखने को मिला था.
ऐसे में साफ है कि CBSE ने साल 2018 में एग्जाम देने वाले लाखों छात्रों के साथ सही नहीं किया है. CBSE को अपने इस रवैये के लिए छात्रों को जवाब देना ही चाहिए, क्योंकि इससे उन लाखों छात्रों का एडमिशन प्रभावित होता है. द क्विंट ने इस संबंध में CBSE और केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय से प्रतिक्रिया मांगी है.
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