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Central Vista Project: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 8 सितंबर को नए सेंट्रल विस्टा एवेन्यू का उद्घाटन करेंगे. सेंट्रल विस्टा रीडेवलपमेंट प्रोजेक्ट के तहत, नया संसद भवन, पीएम का नया आवास, पीएम का ऑफिस, उपराष्ट्रपति एनक्लेव और विजय चौक से इंडिया गेट के बीच तीन किलोमीटर के राजपथ को नया चेहरा दिया गया है.
दिल्ली के दिल को नया चेहरा मिल गया है, लेकिन पुराने सेंट्रल विस्टा में कौन-कौन सी इमारतें थीं? एक नजर.
1911 में जब पांचवें किंग जॉर्ज और क्वीन मैरी ने ब्रिटिश भारत की राजधानी को कलकत्ता से दिल्ली ट्रांसफर करने का तय किया, तो सरकार के लिए नई इमारत की जरूरत पड़ी. इस जरूरत से सेंट्रल विस्टा का जन्म हुआ, जिसमें रहने के लिए वाइसरॉय हाउस (अब राष्ट्रपति भवन), किंग वे (अब राजपथ) और वॉर मेमोरियल (अब इंडिया गेट) शामिल था.
भारत के तत्कालीन वायसराय, लॉर्ड हार्डिंज ने 1912 में दिल्ली टाउन प्लानिंग कमेटी तैयार की, जिसका काम सेंट्रल विस्टा को प्लान और डिजाइन करना था. ब्रिटिश आर्किटेक्ट एडविन लुटियन्स और हर्बट बेकर को इसे बनाने का जिम्मा सौंपा गया. इनका मकसद एक ऐसा कॉम्प्लेक्स तैयार करना था, जिसमें भारत में एक कामकाजी सरकार चलाने के लिए पूरा इंफ्रास्ट्रक्चर मौजूद हो.
हालांकि, सेंट्रल विस्टा तैयार करना इतना आसान नहीं था. ब्रिटिश राज की राजधानी कलकत्ता से दिल्ली तो आ गई थी, लेकिन दिल्ली में सेंट्रल विस्टा की जमीन जांचने में आर्किटेक्ट को लंबा वक्त लगा. इसकी नींव दरबार की जमीन पर दी गई, लेकिन जांचने-परखने के बाद फैसला किया गया कि सेंट्रल विस्टा के लिए ये जगह सही नहीं है. इसके बाद दोनों आर्किटेक्ट ने दिल्ली के शहानाबाद से लेकर नारायणा और माल्चा की जमीन देखी गई, और आखिरकार रायसीना हिल्स पर जाकर दोनों की सहमति बनी.
सेंट्रल विस्टा का उद्घाटन 1931 में किया गया था. इस कॉम्प्लेक्स में राष्ट्रपति भवन, संसद, नॉर्थ और साउथ ब्लॉक और रिकॉर्ड ऑफिस (जिसे अब नेशनल आर्काइव के नाम से जाना जाता है), ऐतिहासिक इमारत इंडिया गेट और इसके अगल-बगल गार्डन शामिल थे.
जहां राष्ट्रपति भवन को लुटियन्स ने डिजाइन किया था, वहीं नॉर्थ और साउथ ब्लॉक को बेकर ने डिजाइन किया था. दोनों ब्लॉक और राष्ट्रपति भवन की हाईट को लेकर दोनों दोस्तों में विवाद भी हुआ था. कहा जाता है कि इसी वजह से दोनों की सालों की दोस्ती में खटास आ गई.
सालों पहले तैयार हुए सेंट्रल विस्टा की इन इमारतों पर भारत की पूरी छाप देखने को मिलती है. इमारतों में लाल और सफेद पत्थरों का इस्तेमाल किया गया, जो दिल्ली के आर्किटेक्चर में 13वीं सदी से इस्तेमाल किया जा रहा था. राष्ट्रपति भवन के गुंबद की प्रेरणा सांची के स्तूप से ली गई थी.
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