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सुप्रीम कोर्ट में पिछले कुछ दिनों से सुदर्शन टीवी के एक विवादित कार्यक्रम को लेकर सुनवाई चल रही है. इस बीच कोर्ट के साथ-साथ देशभर में मीडिया रेगुलेशन को लेकर बहस तेज हो गई है. इस बहस के बीच केंद्र सरकार ने कहा है कि टीवी और प्रिंट से पहले डिजिटल मीडिया पर कंट्रोल की जरूरत है. सरकार का एक तर्क ये है कि चूंकि प्रिंट और टीवी पहले से ही नियम कायदे के अंडर आते हैं इसलिए उसेस ज्यादा डिजिटल पर रेगुलेशन की जरूरत है. ऐसे में आइए समझते हैं कि भारत में टीवी और प्रिंट मीडिया को कौन और कैसे कंट्रोल करता है?
पहले प्रेस आयोग की सिफारिश पर, प्रेस की आजादी को सुरक्षित रखने, भारत में प्रेस के मानकों को बनाए रखने और सुधारने के मकसद से संसद ने साल 1966 में प्रेस काउंसिल का पहली बार गठन किया था. मौजूदा प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया (PCI), प्रेस काउंसिल एक्ट 1978 के तहत काम करती है. यह एक सांविधिक (statutory), अर्ध-न्यायिक अथॉरिटी है जो, प्रेस के लिए और प्रेस की ओर से प्रेस के एक वॉचडॉग (प्रहरी) की तरह काम करती है. यह क्रमशः एथिक्स और प्रेस की आजादी के उल्लंघन के लिए, प्रेस के खिलाफ और प्रेस की ओर से दर्ज शिकायतों के न्याय-निर्णय करती है.
काउंसिल में 28 अन्य सदस्य होते हैं, जिनमें से 20 प्रेस का प्रतिनिधित्व करते हैं और मान्यता प्राप्त प्रेस संगठनों / समाचार एजेंसियों की ओर से नामित किए जाते हैं.
5 सदस्य संसद के दोनों सदनों की ओर से नामित किए जाते हैं और तीन सदस्य साहित्य अकादमी, विश्वविद्यालय अनुदान आयोग और बार काउंसिल ऑफ इंडिया के नामित के रूप में सांस्कृतिक, साहित्ययिक और विधिक क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व करते हैं.
PRS के मुताबिक, PCI के पास किसी संपादक या पत्रकार द्वारा पत्रकारिता की नैतिकता के उल्लंघन या प्रफेशनल मिसकंडक्ट की शिकायतें रिसीव करने का अधिकार है. इन शिकायतों को लेकर पूछताछ के लिए PCI जिम्मेदार है. वो गवाहों को समन कर सकती है और शपथ के तहत सबूत ले सकती है, सार्वजनिक रिकॉर्ड की कॉपी पेश करने की मांग कर सकती है, चेतावनी जारी कर सकती है और अखबार, न्यूज एजेंसी, संपादक या पत्रकार की भर्त्सना कर सकती है. यह किसी अखबार को इन्क्वायरी की डीटेल्स पब्लिश करने को कह सकती है. PCI के फैसले अंतिम होते हैं और उनको लेकर कोर्ट में अपील नहीं की जा सकती.
भारत में अभी न्यूज चैनल सेल्फ रेगुलेशन यानी आत्म नियमन के मैकेनिज्म के आधार पर काम करते हैं. ऐसा ही एक मैकेनिज्म न्यूज ब्रॉडकास्टर्स एसोसिएशन (NBA) की ओर से बनाया गया है.
NBA ने टेलीविजन कॉन्टेंट को रेगुलेट करने के लिए एक आचार संहिता तैयार की है. NBA की न्यूज ब्रॉडकास्टिंग स्टैंडर्ड्स अथॉरिटी (NBSA) को आचार संहिता के उल्लंघन पर चेतावनी देने, निंदा करने, भर्त्सना करने, अस्वीकृति जाहिर करने और ब्रॉडकास्टर पर 1 लाख रुपये तक का जुर्माना लगाने का अधिकार है.
इस तरह के अन्य संगठन ब्रॉडकास्ट एडिटर्स एसोसिएशन (BEA), न्यूज ब्राडकास्टर्स फेडरेशन (NBF) भी है.
इतना ही नहीं, सुप्रीम कोर्ट ने सुझाव दिया था कि इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के सेल्फ रेगुलेशन में मदद के लिए एक समिति गठित की जा सकती है. उसने कहा, ‘‘हमारी राय है कि हम पांच प्रबुद्ध नागरिकों की एक समिति गठित कर सकते हैं जो इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के लिए मानक तैयार करेगी. हम राजनीतिक विभाजनकारी प्रकृति नहीं चाहते और हमें ऐसे सदस्य चाहिये, जिनकी प्रतिष्ठा हो.’’
NBA ने सुप्रीम कोर्ट को सुझाव दिया है कि उसकी आचार संहिता को केबल टीवी नियमों के तहत कार्यक्रम संहिता का हिस्सा बनाकर वैधानिक मान्यता दी जानी चाहिए, जिससे ये संहिता सभी समाचार चैनलों के लिए बाध्यकारी बने.
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