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सुप्रीम कोर्ट ने एससी-एसटी एक्ट संबंधी अपने फैसले पर रोक लगाने का केंद्र सरकार का अनुरोध खारिज कर दिया. हालांकि कोर्ट ने कहा कि वह इन समुदायों के अधिकारों के संरक्षण और उनके ऊपर अत्याचार करने के दोषी लोगों को दंडित करने का सौ फीसदी हिमायती है. लेकिन ऐसे मामलों में गिरफ्तारी को बहुत आसान नहीं बनाया जा सकता. कोर्ट ने अपने 20 मार्च के फैसले को न्यायोचित बताया.
केन्द्र सरकार की तरफ से से अटॉर्नी जनरल के के वेणुगोपाल ने इस मामले में न्यायालय के फैसले पर रोक लगाने का अनुरोध किया. उन्होंने कहा कि शीर्ष अदालत ऐसे नियम या दिशानिर्देश नहीं बना सकती जो विधायिका द्वारा पारित कानून के विपरीत हों.
वेणुगोपाल ने अनुसूचित जाति-जनजाति कानून से संबंधित मामले में कोर्ट के फैसले को किसी बड़े बेंच को सौंपने का अनुरोध किया. साथ ही कहा कि इस व्यवस्था की वजह से जानमाल का नुकसान हुआ है.
केन्द्र सरकार ने एससी-एसटी एक्ट, 1989 के तहत तत्काल गिरफ्तारी के प्रावधानों में कुछ सुरक्षात्मक उपाय करने के शीर्ष अदालत के 20 मार्च के फैसले पर पुनर्विचार के लिये 2 अप्रैल को न्यायालय में याचिका दायर की थी.
सर्वोच्च अदालत ने 27 अप्रैल को केन्द्र की पुनर्विचार याचिका पर सुनवाई करने का फैसला किया था, लेकिन कोर्ट ने यह साफ कर दिया था कि वह इस मामले में और किसी याचिका पर विचार नहीं करेगी.
यही नहीं, न्यायालय ने केन्द्र की पुनर्विचार याचिका पर फैसला होने तक 20 मार्च के अपने फैसले को स्थगित रखने से इनकार कर दिया था. इस फैसले के बाद अनुसूचित जाति और जनजातियों के अनेक संगठनों ने देश में 2 अप्रैल को भारत बंद का आयोजन किया था जिसमें 8 लोगों की जान चली गयी थी.
(इनपुटः PTI)
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Published: 04 May 2018,09:54 AM IST