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चंद्रयान-2 मिशन को झटका लगने के बाद से इसरो की कई साल की मेहनत धरी की धरी रह गई है. लेकिन पूरा देश इसरो और वैज्ञानिकों के साथ खड़ा है. मिशन की सफलता को देखने के लिए वहां पहुंचे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लौटते वक्त इसरो अध्यक्ष के. सिवन अपने आंसू नहीं रोक सके और रो पड़े. जाहिर है, सिवन ने अपने सालों की मेहनत इस मिशन में झोक दी थी. चंद्रयान-2 मिशन में स्पेसक्राफ्ट की डिजाइनिंग से लेकर लैंडिंग ऑपरेशन तक हर अहम गतिविधि पर सिवन नजर बनाए हुए थे.
चंद्रयान-2 मिशन के अलावा भी सिवन की कई ऐसी उपलब्धियां हैं, जिनके लिए वो हमेशा जाने जाएंगे. साल 1982 में ही सिवन पोलर सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल (PSLV) प्रोजेक्ट का हिस्सा बनकर ISRO से जुड़ चुके थे. सिवन ने भारत के स्पेस प्रोग्राम में क्रायोजेनिक इंजनों को विकसित करने में अहम भूमिका निभाई. इसके अलावा सिवन ये सुनिश्चित करने की रणनीति भी लेकर आए कि रॉकेट मौसम और हवा की अलग-अलग स्थिति में लॉन्च हो सकें. इन योगदानों की वजह से ही सिवन को रॉकेट मैन कहा जाने लगा. फरवरी 2017 में PSLV-C37 से 104 सैटेलाइट को एक ही फ्लाइट में सफलतापूर्वक लॉन्च किया गया था. इस मिशन में सिवन का अहम योगदान था. ISRO के चेयरमैन बनने से पहले सिवन त्रिवेंद्रम में विक्रम साराभाई स्पेस सेंटर के डायरेक्टर थे.
के सिवन का जन्म 14 अप्रैल 1957 को तमिलनाडु के कन्याकुमारी जिले के एक किसान परिवार में हुआ था. उनकी शुरुआती पढ़ाई एक स्थानीय सरकारी स्कूल में तमिल मीडियम से हुई थी. सिवन के एक संबंधी के मुताबिक, वह अपने परिवार में पहले ग्रेजुएट हैं. न्यूज एजेंसी पीटीआई को सिवन के एक परिजन ने जनवरी 2018 में बताया था कि सिवन कभी भी ट्यूशन या कोचिंग क्लास नहीं गए.सिवन ने नागरकोइल के एसटी हिंदू कॉलेज से ग्रेजुएशन की.
इसके अलावा उन्होंने साल 1980 में मद्रास इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी से एयरोनॉटिकल इंजीनियरिंग में ग्रेजुएशन की. इसके बाद उन्होंने IISc, बेंगलुरु से साल 1982 में ऐरोस्पेस इंजीनियरिंग में मास्टर डिग्री ली. सिवन ने साल 2007 में ऐरोस्पेस इंजीनियरिंग में IIT बॉम्बे से PhD भी की.
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