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शुक्रवार 6 सितंबर की आधी रात भारत के लिए बेहद महत्वपूर्ण होने वाली है. 6 सितंबर के बाद जैसे ही घड़ी में रात के 12 बजेंगे और 7 तारीख शुरू होगी, उसके साथ ही शुरू हो जाएगा अगले कुछ घंटों का ऐसा इंतजार, जिसमें एक-एक सेकेंड निगाहें और दिल सिर्फ ‘विक्रम’ पर अटका रहेगा.
भारतीय अंतरिक्ष विज्ञान के इतिहास में सबसे बड़ी घटना घटने वाली है. भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संस्थान (इसरो) का भेजा हुआ चंद्रयान-2 आखिरकार अपनी मंजिल पर पहुंचेगा.
चंद्रयान-2 का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा है इसका लैंडर- विक्रम. लैंडर विक्रम पिछले 3 दिनों से चांद के आस-पास चक्कर लगा रहा है और अब ये चांद की सतह पर ‘सॉफ्ट लैंडिंग’ करेगा.
लैंडर विक्रम को चांद की कक्षा से सबसे नजदीकी सतह पर उतरना है, जो करीब 35 किलोमीटर की ऊंचाई पर है. विक्रम की सफलता पूर्वक लैंडिंग के लिए अगले 15 मिनट का जो सबसे जरूरी पड़ाव हैं, उसका कुछ इस तरह गुजरना जरूरी है-
ये 15 मिनट और इसकी प्रक्रिया क्यों कठिन हैं, इसको समझने के लिए ये जानना जरूरी है कि विक्रम जब लैंडिंग प्रक्रिया शुरू करेगा, तो उसकी रफ्तार (6 किलोमीटर प्रति सेकेंड) एक आम हवाई जहाज की रफ्तार से करीब 30-40 गुना ज्यादा रहेगी. महज 15 मिनट के भीतर इस रफ्तार को कम करना और जरूरी रफ्तार पर लाना बेहद चुनौतीपूर्ण होने वाला है.
लैंडर की रफ्तार को कम करने के लिए ब्रेक का काम करेंगे इसमें लगे थ्रस्टर्स.
विक्रम में कुल 4 थ्रस्टर्स लगे हुए हैं, जो एक साथ शुरू किए जाएंगे और फिर लैंडर की रफ्तार में कमी आएगी. इसके अलावा ये सभी थ्रस्टर्स बराबर ऊर्जा से चलेंगे.
विक्रम के लैंड होने के करीब 3 घंटे बाद इसके साथ भेजा गया रोवर ‘प्रज्ञान’ एक रैंप की मदद से बाहर निकलेगा और फिर अगले कुछ दिन चांद की सतह पर घूम कर जरूरी डेटा जुटाएगा.
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