चंद्रयान-2 Vs चंद्रयान-1: वाकई बहुत आगे निकल आए हैं हम

जानिए चंद्रयान-1 से किस तरह अलग है मिशन चंद्रयान-2

क्विंट हिंदी
भारत
Updated:
चांद पर सॉफ्ट लैंडिंग के लिए तैयार लैंडर ‘विक्रम’
i
चांद पर सॉफ्ट लैंडिंग के लिए तैयार लैंडर ‘विक्रम’
(फोटो: इसरो) 

advertisement

भारत के ऐतिहासिक मिशन चंद्रयान-2 पर दुनियाभर की नजरें टिकी हुई हैं. यह भारत का दूसरा चंद्र मिशन है. इससे पहले भारत ने अपने पहले चंद्र मिशन चंद्रयान-1 से कई उपलब्धियां हासिल की थीं. चलिए, इन उपलब्धियों से लेकर चंद्रयान-2 के अब तक के सफर और चंद्रयान-2 की खास बातों पर एक नजर दौड़ाते हैं.

मिशन चंद्रयान-1 और इसकी उपलब्धियां

  • चंद्रयान-1 22 अक्टूबर 2008 को आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन स्पेस सेंटर से भारत के पोलर सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल, PSLV-C11 से लॉन्च हुआ था
  • चंद्रयान-1 29 अगस्त 2009 तक 312 दिन के लिए ऑपरेशनल था
  • चंद्रयान-1 ने चांद पर पानी की मौजूदगी का पता लगाया था, जो इसरो के लिए काफी बड़ी उपलब्धि थी
  • चंद्रयान-1 ने चांद के उत्तरी धुव्रीय क्षेत्र पर वॉटर आइस का भी पता लगाया था. इसके अलावा इसने चांद की सहत पर मैग्नीशियम, एल्युमिनियम और सिलिकॉन का भी पता लगाया था
  • चांद की ग्लोबल इमेजिंग भी इस मिशन की एक उपलब्धि थी
चंद्रयान-1 का स्पेसक्राफ्ट भारत, अमेरिका, ब्रिटेन, जर्मनी, स्वीडन और बुल्गारिया में बने 11 उपकरण ले गया था. इस स्पेसक्राफ्ट ने चांद की केमिकल, मिनरलॉजिकल और फोटो-जियोलॉजिक मैपिंग के लिए उसकी सतह से 100 किलोमीटर की दूरी पर चक्कर लगाए थे. मिशन के सभी बड़े उद्देश्य पूरे हो जाने के बाद यह दूरी 200 किलोमीटर कर दी गई थी. 
ADVERTISEMENT
ADVERTISEMENT

चंद्रयान-1 से किस तरह अलग है मिशन चंद्रयान-2

चंद्रयान-1 का लिफ्ट-ऑफ भार 1370 किलोग्राम था, जबकि चंद्रयान-2 का 3850 किलोग्राम है. इसरो ने PSLV के बजाए भारत के हेवी लिफ्ट रॉकेट जियोसिंक्रोनस सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल GSLV MkIII-M1 की मदद से (22 जुलाई को) चंद्रयान-2 का प्रक्षेपण किया है. चंद्रयान-2 स्पेसक्राफ्ट के 3 सेगमेंट हैं-ऑर्बिटर (वजन 2,379 किलोग्राम, 8 उपकरण), लैंडर 'विक्रम' (1,471 किलोग्राम, 3 उपकरण) और एक रोवर 'प्रज्ञान' (27 किलोग्राम, 2 उपकरण).

मिशन चंद्रयान-2 भारत के पहले चंद्र मिशन से इसलिए भी अलग है क्योंकि इस मिशन में चांद की सतह पर लैंडर 'विक्रम' की सॉफ्ट लैंडिंग कराई जाएगी. यह 'सॉफ्ट लैंडिंग' चांद के दक्षिणी धुव्रीय क्षेत्र में कराई जानी है. इसरो को अगर इस ‘सॉफ्ट लैंडिंग’ में सफलता मिलती है तो रूस, अमेरिका और चीन के बाद भारत ऐसा करने वाला दुनिया का चौथा और चांद के दक्षिणी ध्रुवीय क्षेत्र में पहुंचने वाला दुनिया का पहला देश बन जाएगा.

स्पेस एजेंसियों ने अब तक 38 बार चांद पर ‘सॉफ्ट लैंडिंग’ की कोशिश की है. इन कोशिशों में सक्सेस रेट 52 फीसदी रहा है.

बता दें कि ‘सॉफ्ट लैंडिंग' में लैंडर को आराम से धीरे-धीरे सतह पर उतारा जाता है, जिससे लैंडर, रोवर और उनके साथ लगे उपकरण सुरक्षित रहें. 'विक्रम' की सॉफ्ट लैंडिंग के बाद इसके अंदर से 6 पहियों वाला रोबोटिक व्हीकल (रोवर 'प्रज्ञान') निकलेगा. 'प्रज्ञान' चांद की सतह पर एक चंद्र दिन (पृथ्वी के 14 दिन) तक वैज्ञानिक प्रयोग करेगा.

चांद की सतह, वायुमंडलीय संरचना, भौतिक स्वभाव और भूकंपीय गतिविधियों के बारे में जानकारी जुटाने के लिए लैंडर और रोवर में कुल 5 तरह के उपकरण मौजूद हैं.

लैंडर 'विक्रम' 2 सितंबर को दोपहर 1 बजकर 15 मिनट पर ऑर्बिटर से अलग हुआ था. बात ऑर्बिटर की करें तो यह चांद की कक्षा में चक्कर लगाकर अपने अध्ययन का काम करेगा. ऑर्बिटर एक साल तक अपने मिशन को अंजाम देता रहेगा. बता दें कि मिशन चंद्रयान-2 को सितंबर 2008 में कैबिनेट की मंजूरी मिली थी.

क्यों खास है चांद का दक्षिणी धुव्रीय क्षेत्र

  • इसरो के मुताबिक, चांद का दक्षिणी ध्रुवीय क्षेत्र बेहद रुचिकर है क्योंकि यह उत्तरी ध्रुवीय क्षेत्र के मुकाबले काफी बड़ा है और अंधकार में डूबा रहता है
  • चांद पर स्थायी रूप से अंधकार वाले क्षेत्रों में पानी मौजूद होने की संभावना है. चंद्रयान-1 के जरिए चंद्रमा की सतह पर पानी की मौजूदगी का साक्ष्य पहले ही जुटाने वाले इसरो की योजना अब नए मिशन के जरिए वहां जल की उपलब्धता के वितरण और उसकी मात्रा के बारे में पता कर प्रयोगों को आगे बढ़ाने की है.
  • चांद के दक्षिणी ध्रुवीय क्षेत्र में ऐसे गड्ढे हैं जहां कभी धूप नहीं पड़ी है. इन्हें ‘कोल्ड ट्रैप’ कहा जाता है और इनमें पूर्व के सौर मंडल का जीवाश्म रिकॉर्ड मौजूद है

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

Published: 06 Sep 2019,02:55 PM IST

ADVERTISEMENT
SCROLL FOR NEXT